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अब ओंकार अखाड़े की तगड़ी दस्तक, देश भर से संतों ने भेजी शुभकामनाएं
अखाड़ा परिषद ने दर्ज कराया विरोध, आचार्य कुशमुनि ने दी शास्त्रार्थ की चुनौती
आरबी त्रिपाठी की स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ। अखाड़ा परिषद की हठधर्मिता पर संत समाज की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है। अखाड़ा परिषद, किन्नर अखाड़ा और परी अखाड़ा का विवाद अब तक सुलझा नहीं पाया कि एक और अखाड़े ने तगड़ी दस्तक दी है। यह ओंकार अखाड़ा है जिसकी स्थापना प्रयाग में ही की गई है, जहां अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि रहते हैं।
ओंकार अखाड़े की स्थापना आचार्य कुशमुनि स्वरूप ने की है। इन्हें अखाड़ा परिषद ने नकली संत घोषित कर रखा है। ओंकार अखाड़ा अबकी प्रयाग के कुंभ मेले में बड़ा आयोजन भी करने की तैयारी में है। इसके लिए देश भर के जाने माने संतों को सूचित करते हुए बुलावा भेजा जा रहा है। संतों की शुभकामनाएं भी ओंकार अखाड़े के संस्थापक आचार्य महामंडलेश्वर आचार्य कुशमुनि को मिलने लगी हैं।
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ओंकार अखाड़े के संस्थापक ने कहा है कि उन्हें देश भर के वरिष्ठ संतों का आशीर्वाद और शुभकामनाएं मिल रही हैं। संत समाज को जोडऩे के लिए एक और अखाड़े की स्थापना आवश्यक हो गई थी। हालांकि इस अखाड़े को लेकर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनका कहना है कि अखाड़ा परिषद में केवल तेरह अखाड़े हैं। उन्हीं की मान्यता है। हम अन्य किसी भी अखाड़े का अस्तित्व नहीं मानते हैं।
ऋषि परंपरा का पोषण : आचार्य कुशमुनि ने कहा है कि हम ऋषि परंपरा के हैं। ऋषि-मुनि विवाहित रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा समृद्ध रही है और सनातम धर्म को अभिसिंचित, पल्ल्वित पुष्पित करने में उन्हीं का योगदान रहा है। ओंकार अखाड़े में ऋषि परंपरा को ही प्रमुखता दी जाएगी। इसका ध्वज और मुख्यालय जल्द ही तय किया जाएगा। ओंकार अखाड़े के जरिए हम किसी को चुनौती नहीं दे रहे, बल्कि परंपरा को मजबूत ही कर रहे हैं। आचार्य कुशमुनि ने बताया कि नरेंद्र गिरि ने कहा है कि ओंकार अखाड़ा भोगियों का अखाड़ा है। ऐसा कहकर वह अपने माता-पिता का अपमान ही कर रहे हैं क्योंकि वह भी किसी की संतान ही हैं।
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शास्त्रार्थ की चुनौती : कुशमुनि का कहना है कि जहां तक नए अखाड़े की स्थापना का प्रश्न है तो आदि शंकराचार्य ने केवल चार अखाड़े ही स्थापित किए थे। कालान्तर में बढ़ते हुए अब 13 अखाड़े हो गए हैं। तो 14वां, 15वां और 16वां अखाड़ा क्यों नहीं हो सकता। या तो फिर 4 अखाड़े ही होते, अगर शंकर परंपरा का यथावत निर्वाह करना था। समय और आवश्यकता के हिसाब से जरूरी है कि ओंकार अखाड़ा बने, इसीलिए बनाया गया है। अगर नरेंद्र गिरि को आपत्ति है तो वह सार्वजनिक रूप से मुझसे शास्त्रार्थ करें।
पहले से भी विवाद : उज्जैन के कुंभ मेले में किन्नर अखाड़ा और परी अखाड़ा की स्थापना हुई थी। तभी से अखाड़ों का विवाद चल रहा है। चूंकि अखाड़ा परिषद ने 14 संतों को नकली करार दे दिया जिस पर संत समाज ने भारी प्रतिक्रिया दी है क्योंकि जिन संतों के नाम सूची में शामिल हैं, उनके भी अपने अनुयायियों की भारी संख्या है। आशाराम व कुछ और संतों के अनुयायियों ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि का पुतला तक फूंका है। किन्नर अखाड़ा प्रमुख लक्ष्मी नारायण और परी अखाड़ा प्रमुख त्रिकाल भवंता अखाड़ा परिषद के खिलाफ पहले से ही हैं। ऐसे में अगर ओंकार अखाड़े के बारे में भी अखाड़ा परिषद ने हठधर्मी रवैया अपनाया तो उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।