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इलाहाबाद यूनिवर्सिटीः परेशानजी का निधन, जो कभी परेशान नहीं रहे
इलाहाबाद यूनिवर्सिटीः परेशान जी संसार की परेशानियों को छोड़ कर कल स्वर्ग लोक सिधार गए। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। परेशान केवल उनका नाम था। लेकिन वह कभी परेशान नहीं दिखे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय: परेशान जी का सम्मान करते कुलपति हांगलू: Photo- Newstrack
Lucknow: परेशान जी संसार की परेशानियों को छोड़ कर कल स्वर्ग लोक सिधार गए। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। परेशान केवल उनका नाम था। लेकिन वह कभी परेशान नहीं दिखे। आखिर कौन थे ये परेशानजी (Pareshan ji) कवि, लेखक, साहित्यकार या शिक्षाविद। तो आपको बता दें कि वह इनमें से कोई भी नहीं थे। वह राजनीतिक शख्सियत भी नहीं थे। लेकिन 40 साल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गौरवपूर्ण ढंग से सम्मान के साथ रहे।
वास्तव में परेशान जी का छात्रों के बीच बहुत सम्मान था लोग काका या चाचा जैसे संबोधनों से पुकारते थे। देश के कोने कोने से पढ़ने आने वाले छात्रों के लिए वह सरल ह्रदय गार्जियन थे। मित्र थे और साथी थे। ख्याति इतनी कि प्रोफेसरों से लेकर कुलपति तक उनका सम्मान करते थे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित सीनेट हाल में कुलपति हांगलू ने उनका सम्मान किया।
कौन थे परेशानजी
परेशानजी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दूरदराज के छोटे बड़े शहरों और गांवों से आने वाले छात्रों के जूते चप्पलों की मरम्मत का काम करते थे। सिर्फ इतनी सी उनकी पहचान थी। लेकिन उनके न रहने पर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का हर शख्स दुखी था। सब को ऐसा लग रहा था जैसे उनका कोई करीबी रिश्तेदार, मित्र, साथी उनसे बिछड़ गया हो।
सरल सहज व्यक्तित्व थे परेशानजी
विश्वविद्यालयों को प्रोफेसर, अध्यापक और छात्रों के बीच उनके संस्मरण सुनाए जाते रहे। जैसे वह कोई बहुत बड़ी शख्सियत हों। उनका यह सम्मान उनके कर्मयोगी जीवन का सम्मान था या फिर उनके सरल सहज व्यक्तित्व का जिसमें कोई परेशानी नहीं दिखती थी। एक निर्मलता दिखती थी। जैसे संत रैदास की कठौती, मन चंगा तो कठौती में गंगा। और परेशानजी उसकी गंगा में विलीन हो गए।