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आचार्य चतुरसेन शास्त्रीः वैशाली की नगरवधू केवल मेरे एक काम के रूप में जानी जाए

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के चांदोख में हुआ था...

Ragini Sinha
Published By Ragini SinhaWritten By Ramkrishna Vajpei
Published on: 26 Aug 2021 6:20 AM GMT
Acharya Chatursen Shastri profile
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री की जीवनी (social media)

आचार्य चतुरसेन शास्त्री : शायद ही हिन्दी के क्षेत्र का कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो इस नाम से परिचित न हो। हालांकि, इनका निधन हुए छह दशक बीत चुके हैं। इनके उपन्यास आज भी मील का पत्थर कहे जाते हैं। गोली, सोमनाथ, वयं रक्षाम और वैशाली की नगरवधू जाने माने नाम हैं। 'आभा', इनकी पहली रचना कही जाती है।

चतुरसेन शास्त्री का जन्म चांदोख में हुआ था

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के चांदोख में हुआ था। उनके पिता का नाम केवलराम ठाकुर तथा माता का नाम नन्हीं देवी था। और उन्होंने अपने बच्चे का नाम चतुर्भुज रखा था। चतुर्भुज की प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव के पास स्थित सिकन्दराबाद के एक स्कूल में हुई। फिर इस होनहार किशोर ने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में प्रवेश किया। यहाँ से उन्होंने सन 1915 में आयुर्वेद में आयुर्वेदाचार्य तथा संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की। चतुरसेन का शुरुआती जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। इसकी मूल वजह उनकी भावुक प्रकृति, संवेदनशील स्वभाव और स्वाभिमानी होना था। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पहले वैद्यकी करनी चाही और आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में कार्य करने के लिए दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने अपनी खुद की आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी खोली, लेकिन यह काम वह ठीक से कर नहीं पाए और इसे बन्द करना पड़ा। हालात इस कदर बिगड़े कि उन्हें अपनी पत्नी के जेवर तक बेचने पड़ गए। इसके बाद वह 25 रुपये प्रति माह वेतन पर एक धर्मार्थ औषधालय में काम करने लगे।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री की वैशाली की नगर वधू (Social media)

लाहौर में आयुर्वेद के वरिष्ठ प्रोफेसर बने

सन 1917 में, 26 साल की उम्र में वह डीएवी कॉलेज, लाहौर में आयुर्वेद के वरिष्ठ प्रोफेसर बने लेकिन यहाँ के प्रबन्धन से उनकी पटरी नहीं बैठी और स्वाभिमान के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अपने ससुर के कल्याण औषधालय अजमेर में आकर काम करने लगे। आर्थिक स्थिति सुधरने पर उन्होंने लिखना शुरू किया और जल्द ही एक कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

इनका लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित

चतुरसेन शास्त्री के लेखन को किसी विशिष्ट विधा में सीमित नहीं किया जा सकता है। लगभग पचास वर्ष के लेखकीय जीवन में सृजित उनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है। इनका अधिकांश लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित रहा। इनके उपन्यास रोचक और दिल को छूने वाले होते है। पहला उपन्यास "हृदय की परख" कहा जाता है। चतुरसेन ने 1921 में सत्याग्रह और असहयोग विषय पर गांधीजी पर केन्द्रित आलोचनात्मक पुस्तक लिखी, जो काफी चर्चित रही। साढ़े चार सौ कहानियां और बत्तीस उपन्यास के साथ इन्होंने अनेक नाटक लिखे। साथ ही गद्य, इतिहास, धर्म, राजनीति, समाज, स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि विभिन्न विषयों पर लेखनी चलाई। आचार्य चतुरसेन के उपन्यासों में ग्रामीण, नगरीय, राजसी जीवनशैली की झलक मिलती है । उन्होंने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विषयों पर बड़ी गम्भीरता और ईमानदारी से कलम चलायी है। उन्होंने "यादों की परछाई" अपनी आत्मकथा में 'राम' को ईश्वर रूप में न बताकर मानव रूप में बताया। समाज और मनुष्य के कल्याणार्थ लिखा गया उनका साहित्य सभी के लिए उपयोगी रहा है।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री की देवांगना (social media)

हिंदी के महानतम लेखकों में से एक हैं चतुरसेन

नारीवाद और महिला सशक्तिकरण के रूप में मिसोगिनी एक ऐसा शब्द है, जिसे इन दिनों काफी लापरवाही से प्रयोग किया जाता है, लेकिन चतुरसेन शास्त्री की "वैशाली की नगरवधु", एक ऐसी महिला की कहानी है, जो पितृसत्ता का शिकार होने के बावजूद सामाजिक-राजनीतिक आइकन बन जाती है। "आम्रपाली", जिसकी दिव्य सुंदरता केवल देवी-देवताओं के साथ तुलनीय है, को "नगरवधु" होने के लिए मजबूर किया गया, जो सेक्स वर्कर का एक रूप थी। इस उपन्यास को लिखने के वर्षों के शोध के बाद चतुरसेन की इच्छा थी कि इसे उनके जीवन में अब तक के एकमात्र कार्य के रूप में मान्यता दी जाए। आचार्य चतुरसेन शास्त्री, जिन्हें हिंदी के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है, यदि तथाकथित "धर्म के रक्षक" आज उनके काम को पढ़ते हैं, तो उनका सम्मान नहीं होता।

पुस्तक राजनीति जैसे मुद्दों को व्यावहारिक बनाने का लक्ष्य रखती है

यह पुस्तक न केवल जाति, स्त्री द्वेष, खान-पान की वर्जनाओं और यहां तक कि एक अलग समय की राजनीति जैसे मुद्दों को व्यावहारिक बनाने का लक्ष्य रखती है, बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों की जड़ों को भी समझने की कोशिश करती है जो आज भी कायम हैं। पुस्तक के कुछ पन्ने और यह हमें उन दो पात्रों की प्रकृति के बारे में बताते हैं, जिनकी कहानी हम शेष पुस्तक में पढ़ने जा रहे हैं। एक तो स्वयं बुद्ध हैं, बुद्ध हैं और दूसरी इतना अथाह सौन्दर्य है कि परमात्मा को भी जलन होगी। पुस्तक अपने प्रारंभिक अध्यायों में आध्यात्मिक ज्ञान और कामुक इच्छाओं के बीच एक सीधी तुलना करने की कोशिश करती है, प्रत्येक हमारे नायक की प्राथमिक विशेषता है। इस पुस्तक का उद्देश्य जातिवादी, पितृसत्तात्मक और धार्मिक हठधर्मिता को समाप्त करना है, जिसका हम आज भी किसी न किसी रूप में पालन कर रहे हैं या अपने साथियों द्वारा पालन करने के लिए मजबूर किये जा रहे हैं। पुस्तक एक मजबूत संदेश के साथ समाप्त होती है।

Ragini Sinha

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