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छपरौली: छोटे चौधरी अजित सिंह की रस्म पगड़ी में उमड़ी भारी भीड़, रालोद नेता हुए गद-गद

मुजफ्फरनगर महापंचायत के बाद आज जिस तरह छपरौली में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की श्रद्धांजलि सभा व रस्म पगड़ी कार्यक्रम में भीड़ उमड़ी है। उसके बाद इस क्षेत्र के राजनीतिक जानकार यह मानने लगे हैं कि जाट एक बार फिर से रालोद में वापस लौट चुके हैं।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Ashiki
Published on: 19 Sep 2021 12:34 PM GMT
Ajit singh ki rasam pagri
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 छोटे चौधरी अजित सिंह की रस्म पगड़ी में उमड़ी भारी भीड़ 

मेरठ: उत्तर प्रदेश के बागपत में छपरौली के श्री विद्या मंदिर इंटर कालेज में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की श्रद्धांजलि सभा व रस्म पगड़ी कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ को लेकर एक तरफ जहां राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के नेता गद-गद हैं, वहीं भाजपा की पेशानियों पर बल पड़ गए हैं। दरअसल, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी मुश्किलों का सामना कर रही है। खासकर के जाट बहुल इलाकों में जहां पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में भाजपा को जाटों का भारी समर्थन मिला था। इसी समर्थन के बलबूते भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जीत का परचम लहराया था।

जाट भाजपा के बहुत प्रतिबद्ध मतदाता रहे हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरी निष्ठा के साथ भाजपा की मदद की थी। लेकिन उसके बाद कई कारणों से उनका मोहभंग हुआ है। मुजफ्फरनगर महापंचायत के बाद आज जिस तरह छपरौली में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की श्रद्धांजलि सभा व रस्म पगड़ी कार्यक्रम में भीड़ उमड़ी है। उसके बाद इस क्षेत्र के राजनीतिक जानकार यह मानने लगे हैं कि जाट एक बार फिर से रालोद में वापस लौट चुके हैं। भाजपा से जाटों का मोहभंग का ही नतीजा रहा कि इस क्षेत्र के सोरम,शामली आदि कई गांवों में भाजपा के नेताओं को स्थानीय ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को भी ग्रामीणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है।


यहां बता दें कि एक दौर था जब पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की तूती बोलती थी। 1979-80 में देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह न सिर्फ़ स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हुए नेताओं में से थे बल्कि उनका शुमार किसानों के बड़े लीडर के तौर पर होता था। भूमि सुधारों में किए गए अपने कार्यों के लिए उन्हें उन नेताओं में गिना जाता है, जिन्होंने गांधीवादी अर्थनीति को देश में लागू करने की सफ़ल कोशिश की। चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनकी विरासत चौधरी अजित सिंह ने संभाली थी। अब अजित सिंह की मृत्यु के बाद विरासत जयंत चौधरी ने संभाली है।

जयंत चौधरी इस मामले में भाग्यशाली कहे जाएंगे कि वे ऐसे समय में विरासत संभाल रहे हैं जब रालोद से दूर जा चुके जाट एक बार फिर से अपने पुराने घर यानी रालोद में वापस लौट रहे हैं। भाजपा से जाटों की नाराजगी से भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी अंजान नही है। भाजपा नेतृत्व इस सच्चाई से भी वाकिफ है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को जाट वोटों की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि यहां सिर्फ़ पिछड़ों और दलितों के वोटों के सहारे सीटें नहीं जीती जा सकती हैं।


यही वजह है कि भाजपा नेतृत्व इस क्षेत्र के लोंगो की विशेषकर जाटों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश में लगातार जुटा है। पिछले दिनों जाटों को लुभाने के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर ऐन चुनाव से पहले यूनिवर्सिटी की नींव रखने का फैसला किया गया। ध्यान रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1957 के लोकसभा चुनाव में मथुरा सीट पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी चौथे नम्बर पर आए थे। अब देखना यही है कि आने वाले समय में जाटों का रुख क्या और किस तरफ रहता है।

Ashiki

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