Meerut News: मेरठ में कौड़ियों के दाम बेची जा रही गांधी आश्रम की जमीन

रेणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड की रेनु गुप्ता पत्नी पकंज गुप्ता के नाम 24 मई 2021 सेल डीड गांधी आश्रम के सचिव पृथ्वी सिंह रावत द्वारा की गई है। इसमें 3271 वर्ग मीटर जमीन, जिसकी बाजार की कीमत 50 करोड़ से अधिक बताई जाती है

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Shashi kant gautam
Published on: 10 Sep 2021 12:17 PM GMT (Updated on: 10 Sep 2021 5:09 PM GMT)
Gandhi Ashram land being sold for a penny, while the price is more than 50 crores
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 मेरठ: गांधी आश्रम की जमीन कौड़ियों के दाम बेची जा रही

Meerut News: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1920 में गांधी आश्रम की स्थापना स्वदेशी की परिकल्पना को साकार करने के लिए की थी। 1920 से आज 2021 तक के इस लंबे सफर में गांधी आश्रम की स्थिति आज बिल्कुल सौ साल के बुजुर्गो वाली होकर रह गई है। सरकारें आती रहीं और जाती रहीं। राष्ट्रपिता के नाम पर भाषणबाजी होती रही। लेकिन गांधी का सपना गांधी आश्रम दिनों-दिन अपनी पहचान खोता गया। आज हालत यह हो गई है कि गांधी आश्रम की जमीन कौड़ियों के दाम पर बेची जा रही है।

मेरठ में गढ़ रोड स्थित करीब 50 करोड़ की जमीन की सेल डीड का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। बता दें कि 3271 वर्ग मीटर की इस जमीन की सेल डीड एक बिल्डर की कंपनी को कर दी गई है। गांधी आश्रम की ओर से बेशकीमती जमीन कौड़ियों के भाव देने के साथ ही किराया वसूली में भी बड़ी राहत दी गई। यानी भूमि का स्वामित्व कंपनी को इसके के एवज में मात्र एक लाख 80 हजार रुपये सालाना देंने होंगे।

बाजार की कीमत 50 करोड़ से अधिक है

यही नही, यह किराया भी एमडीए से नक्शा स्वीकृत होने के एक साल बाद से देय होगा। सूत्रों के अनुसार रेणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड की रेनु गुप्ता पत्नी पकंज गुप्ता के नाम 24 मई, 2021 सेल डीड गांधी आश्रम के सचिव पृथ्वी सिंह रावत द्वारा की गई है। इसमें 3271 वर्ग मीटर जमीन, जिसकी बाजार की कीमत 50 करोड़ से अधिक बताई जाती है । उसके लिए कंपनी की ओर से तीन करोड़ के पोस्ट डेटेड चेक दिए गए जबकि दो करोड़ रुपये को आरटीजीएस से दिए हुए दर्शाए गए।

इस मामले में अमन शर्मा की ओर से मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत के साथ जिला प्रशासन से शिकायत की गई। शिकायतकर्ता के अनुसार रेणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड असौड़ा हाउस के नाम 21 साल 11 महीने की सेल डीड गांधी आश्रम की ओर से कर दी गई है। इसके लिए दो करोड़ की राशि का आरटीजीएस के ज़रिये हस्तांतरण दिखाया गया बाद में सिक्योरिटी मनी भी रिफंड कर ली गई।

गांधी आश्रम समिति को बिक्री का अधिकार ही नही

उधर खादी एवं ग्रामोद्योग के अफसरों का कहना है कि गांधी आश्रम समिति को बिक्री का अधिकार ही नही है। केवीआईसी के क्षेत्रीय निदेशक राजेश श्रीवास्तव कहते हैं,गांधी आश्रम की किसी संपत्ति, जमीन को बेचने, लीज करने का अधिकार नही है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) की ओर से रोक लगाई गई है। आश्रम की कोई भी संपत्ति आयोग के बिना पूर्व स्वीकृति बिक्री अथवा लीज आदि पर नही दी जा सकती है। यदि आयोग की बिना अनुमति गांधी आश्रम की किसी संपत्ति ,जमीन बिक्री,लीज की जाती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाए।

यहां बता दें कि शहर के बीच अरबों की जमीन पर वर्षो पूर्व गांधी आश्रम को जमीन दान में मिली है। इस जमीन को बेचने का अधिकार गांधी आश्रम समिति को भी नहीं है। अब वह सार्वजनिक संपत्ति हो गई है। पूर्व में कई बार गांधी आश्रम की जमीन को बेचने की नीयत से नीलामी में भी लगाया गया था। गांधी आश्रम की जमीन पर शहर के बड़े-बड़े लोगों की नजर रही। औने-पौने रेट में जमीन को नीलामी में लेकर उसका व्यावसायिक उपयोग किये जाने की कई बार कोशिश हो चुकी है। कुछ अर्सा पहले भी गांधी आश्रम की एक जमीन को नीलामी में रखा गया था। गढ़ रोड की इस व्यावसायिक जमीन की कीमत करोड़ों में है।

फोटो- सोशल मीडिया

गांधी आश्रम की स्थापना 30 नवंबर 1920 में हुई

गांधी आश्रम की स्थापना 30 नवंबर, 1920 में हुई। यह वह समय था जब स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आचार्य जेबी कृपलानी के नेतृत्व में काशी हिंदू विवि के तमाम छात्रों ने विश्वविद्यालय छोड़ लड़ाई में कूद पड़े। सुविधा और कार्य की दृष्टि से गांधी आश्रम का प्रधान कार्यालय बनारस से वर्ष 1926 में मेरठ लाया गया। लाला अयोध्या प्रसाद की कोठी 60 रुपये मासिक किराए पर ली गई। बाद में असौड़ा के जमींदार चौधरी रघुवीर नारायण सिंह ने कोठी 35 हजार रुपये में खरीद ली थी। साथ ही गांधी आश्रम को समर्पित कर दिया गया। करीब 40 साल बाद सन् 1969 में मात्र 35 हजार ही वापस करके यह कोठी आश्रम के नाम कर ली गई। मेरठ में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को सफल बनाने के लिए जिमखाना और कैसल व्यू में जनसभा की थी। वहीं इस आश्रम के इतिहास में तेजी से कर्मचारियों की संख्या घटती रही।

कभी आश्रम में 600 कर्मचारी काम करते थे, आज मात्र 71 लोग हैं

गांधी आश्रम की स्थापना के समय जिन लोगों का समर्पण हुआ, उसमें मुख्य रूप से आचार्य जेबी कृपलानी के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरु, बाबू शिवप्रसाद गुप्त, जमना लाल बजाज, चौ.रघुवीर नारायण सिंह शामिल रहे। गांधी आश्रम के मंत्री पृथ्वी सिंह रावत कहते हैं, गांधी आश्रम के इतिहास में तेजी से कर्मचारियों की संख्या घटती रही। कभी आश्रम में 600 कर्मचारी काम करते थे। आज यह संख्या मात्र 71 रह गई। वहीं, कारीगरों में सूत कातने वाले 650 और 48 बुनकर हैं। उन्होंने बताया कि हर वर्ष गांधी आश्रम चार करोड़ की आय सरकार को देता है। वहीं, जिले में छह स्थानों पर गांधी आश्रम का सामान बिकता है। जिसमें गढ़ रोड, घंटाघर, आपका बाजार, सुभाष बाजार, साबुन गोदाम, मवाना, किठौर, खरखौदा, सरधना में दुकानें खोली गईं हैं। पृथ्वी सिंह रावत का यह भी कहना है कि गांधी आश्रम पर वर्तमान में चार करोड़ रुपये बैंक लोन है, जबकि दो करोड़ के करीब कर्मचारियों की देनदारी है। कोरोना काल में गांधी आश्रम का कारोबार पूरी तरह प्रभावित हो चुका है।

गांधी आश्रम की एक-एक ईंट वीरता की साक्षी है

गढ़ रोड स्थित श्री गांधी आश्रम की एक-एक ईंट वीरता की साक्षी है। शहादत की साक्षी भर रही है। गोरी हुकूमत को मार भगाने के लिए इसी आश्रम में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनीं। आजादी की लड़ाई और मुल्क के स्वाधीन होने पर भी गांधी आश्रम में कई महान विभूतियां पधारीं। इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, जेबी कृपलानी, संत विनोबा भावे, जय प्रकाश नारायण, श्रीमती प्रभावती, इंदिरा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री, अलगू राय शास्त्री व चंद्रशेखर का नाम मुख्य है। इसके अलावा सरहदी गांधी, बादशाह खान, अब्दुल गफ्फार खान का भी नाम है। आचार्य जेबी कृपलानी को बेंगलुरु में 20 मार्च, 1947 में मिला अभिनंदन पत्र भी गांधी आश्रम में सुरक्षित है। गांधी आश्रम के सचिव पृथ्वी सिंह रावत ने बताया कि उस समय वह इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे। मैनेजर संजीव कुमार सिंह ने बताया कि आचार्य जी के मेरठ प्रवास के दौरान लंदन में बनी सिगार भी गांधी आश्रम में अभी मौजूद है।

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