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Meerut News: जब उपजाऊ जमीन ही नहीं रहेगी, किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी?

Meerut News: जांच में मुख्य पोषक तत्व माने जाने वाले एनपीके में फॉस्फोरस और पोटैशियम की भी कई जिलों में कमी मिली है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Monika
Published on: 5 Dec 2021 9:03 AM GMT
farming in fertile land
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उपजाऊ जमीन में खेती (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Meerut News: उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग (krishi vibhag up) द्वारा कराई गईं खेतों की जांच में कार्बन (Carbon)और नाइट्रोजन (Nitrogen) औसत स्तर पर मिला है। कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ खेती के लिए इसे चिंताजनक स्थिति मान रहे हैं। कृषि विभाग सूत्रों के अनुसार 2017 से 2019 के बीच प्रदेश के 75 जिलों में मिट्टी के कुल एक करोड़ 72 लाख 41 हजार नमूने लिए गए थे। इसकी रिपोर्ट में इसकी रिपोर्ट में केवल श्रावस्ती की मिट्टी में ही कार्बन और नाइट्रोजन औसत स्तर पर मिला है।

जांच में मुख्य पोषक तत्व माने जाने वाले एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) में फॉस्फोरस और पोटैशियम की भी कई जिलों में कमी मिली है। शामली (Shamli), मेरठ (Meerut), मैनपुरी (Mainpuri), बरेली (Bareilly), बिजनौर (Bijnor) आदि जिलों में फॉस्फोरस न्यूनतम मिला। मुजफ्फरनगर और पीलीभीत में पोटैशियम की कमी पाई गई। इसमें सबसे गंभीर बात वेस्ट यूपी की जमीन का उर्वरा शक्ति खोना(lose fertility) है। बता दें कि एक समय था कि वेस्ट यूपी की जमीन को सबसे ज्यादा पैदावर वाली भूमि माना जाता था। गंगा और यमुना नदियों का दोआब होने के कारण यहां सिचाई के लिए पानी की कोई कमी नहीं होती है। इस कारण यहां के किसान हमेशा अपने हाथों से तकदीर लिखते आएं हैं, पर आज कि स्थिति एक दम उलट हो चुकी है। वेस्ट यूपी में सबसे अधिक पैदावर वाली मेरठ की ही बात करें तो मेरठ की ताकतवर धरतीके पोशक तत्व गायब हो चुके हैं।

गांवों की आबादी पर सीधा असर

इसका सीधा असर गांवों की आबादी पर पड़ा है जो कि गांवों से शहरों की तरफ पलायन करने लगी है। आजादी के 100 साल पहले जिस मेरठ की आबादी 29014 थी, वो 2011 की जनगणना में बढ़कर 3443689 हो गई। आंकड़ों के मुताबिक इन वर्षो में मेरठ की आबादी कई गुना बढ़ गई, लेकिन संसाधन उसी अनुपात में सिमटते गए। खास बात यह कि इस दौरान गांवों से शहर में तेजी से पलायन बढ़ा है। जिले के कृषि विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आया है कि मेरठ की मिट्टी से काफीमात्रा में पोशक तत्व गायब हो चुके हैं।

उर्वरा शक्ति खोने के कारण

कृषि वैज्ञानिक उर्वरा शक्ति खोने की कई वजहें गिनाते हैं। जैसा कि क्षेत्रीय भूमि परीक्षण प्रयोगशाला के वैज्ञानिक डॉ.प्रदीप भारद्वाज कहते हैं, पहले खेतों में गोबर, हरी और केंचुआ खाद प्रयुक्त होती थी। अब सिर्फ रासायनिक खाद इस्तेमाल हो रही है। इससे उर्वरा शक्ति घटी है। प्रयोगशाला में 102 रुपये में मिट्टी की संपूर्ण जांच कराई जा सकती है। वहीं सहायक निदेशक(कृषि) डॉ. प्रबोध कुमार इसकी वजह किसानों द्वारा बार-बार एक फसल उगाने की बताते हैं। वे कहते हैं, किसान गन्ने की फसल को अधिक महत्व देते हैं। बार-बार एक ही फसल से उर्वरा शक्ति कम होती है। मूंग, उड़द और अरहर की खेती भी करनी चाहिए इनसे। इससे उर्वता बढ़ती है। गोबर खाद, हरी खाद प्रयुक्त की जानी चाहिए।

उर्वरा शक्ति खोने की मुख्य वजह

वहीं दूसरी तरफ कई वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन के धीरे-धीरे अपनी उर्वरा शक्ति खोने की मुख्य वजह ईंट भट्टे और अवैध खनन हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर जरूरत से ज्यादा बढ़ रहे ईंट भट्टों पर लगाम नहीं लगाई गई तो एक समय आएगा मिट्टी बंजर में तब्दील हो जाएगी। बहरहाल,कारण कोई भी हो लेकिन, जिस तरह गांवों की जमीन में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा घटती जा रही है वों अपने आप में चिंता का विषय जरुर है। क्योंकि अगर गिरावट लगातार ऐसे ही जारी रही तो मिट्टी खराब हो जाएगी और फसल उत्पादन पर भी इसका असर पडेगा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब उपजाऊ जमीन ही नहीं रहेगी तो किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी?

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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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