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जिन्ना का जिन्न: उत्तर प्रदेश में जिन्ना का जिन्न किसका खेल बनाएगा, किसका बिगाड़ेगा
Meerut News: अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पटेल, नेहरू और गांधी के साथ लिया था। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा भी जिन्ना के जरिये सपा के अखिलेश यादव पर हमलावर हो गए हैं।
Meerut News: भाजपा (BJP) के मेरठ बूथ सम्मेलन (Meerut Booth Conference) में जिस तरह से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा (BJP National President Jagat Prasad Nadda) के भाषण का पूरा फोकस जिन्ना (speech on jinnah) पर रहा उससे तो लगता है कि भाजपा ने इसको अपना प्रमुख मुद्दा बना दिया है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जिन्ना ( Jinnah) के जिन्न को बोतल में बंद करने की बात कह कर इस बात का साफ इशारा कर दिया है कि भाजपा कार्यकर्ता जिन्ना के जिन्न को लेकर अब-घर-घर घूमने वाले हैं। मतलब साफ है बीजेपी (BJP) ने मूड बना लिया है कि इस मसले को वो चुनाव ( Uttar Pradesh Election 2022) का बड़ा मुद्दा बनाकर अखिलेश (Akhilesh Yadav) की किरकिरी करेगी। पश्चिमी क्षेत्र की राजनीति (Politics of Western Uttar Pradesh) के जानकारों की मानें तो जिस तरह से जिन्ना का जिन्न समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) से लिपट गया है उसका नुकसान सपा-रालोद गठबंधन (SP-RLD alliance) को हो सकता है।
अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पटेल, नेहरू और गांधी के साथ लिया था
दरअसल, सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती (Sardar Vallabhbhai Patel's birth anniversary) के मौके पर एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पटेल, नेहरू और गांधी के साथ लिया था। उन्होंने कहा था कि इन सभी ने एक ही कॉलेज से बैरिस्टरी की और देश को आजाद कराने में योगदान दिया था। उनके इस बयान के बाद से विवाद छिड़ गया था और जिन्ना का नाम लिए जाने पर भड़की भाजपा ने उनकी मानसिकता को तालिबानी बता दिया था। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस पर हमला बोलते हुए कहा था कि भारत में जिन्ना वाली सोच नहीं चलेगी। यही नही डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने तो अखिलेश यादव का नाम बदलकर अखिलेश अली जिन्ना कर दिया।
जेपी नड्डा भी जिन्ना के जरिये सपा के अखिलेश यादव पर हमलावर हो गए
राजनीतिक विश्लेषकों (political analysts) की मानें तो जिन्ना का मुद्दा भाजपा को उसकी ध्रुवीकरण की कोशिशों में मददगर साबित हो सकता है। यही वजह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) से लेकर तमाम छोटे-बड़े नेता ही नही बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा भी जिन्ना के जरिये सपा के अखिलेश यादव पर हमलावर हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ध्रुवीकरण की स्थिति में भाजपा को तो लाभ मिलेगा ही। लेकिन इसका लाभ सपा को भी मिलेगा।
इसकी वजह यह है कि भले ही जिन्ना के नाम से भारतीय मुस्लिमों को कोई मतलब न हो, लेकिन उनके नाम पर यदि ध्रुवीकरण होता दिखता है तो उसका असर काउंटर पोलराइजेशन के तौर पर जरूर दिख सकता है। ऐसे में कहा यह भी जा रहा है कि शायद मुस्लिमों का ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी ने यह रणनीति बनाई है।
उत्तर प्रदेश में क़रीब 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं
दरअसल, उत्तर प्रदेश में क़रीब 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) हैं। कुल 145 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इनमें करीब 30-35 सीटें ऐसी हैं जहां पर 40-50 प्रतिशत तक मुस्लिम मतदाता हैं। यानी, यहां मुसलमान अपने दम पर जीतने की स्थिति में हैं बशर्ते इन सीटों पर अकेला मुस्लिम उम्मीदवार हो। इनमें से करीब 15 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। इनमें ज़्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटें आती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रामपुर में 50 प्रतिशत मुसलमान मतदाता है। उसके बाद मुरादाबाद में 45, बिजनौर, बरेली और अमरोहा में 40 प्रतिशत मुसलमान हैं। इनके अलावा 30-35 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले ज़िलों में कुछ सीटों पर 40 प्रतिशत तक मुसलमान हैं।
जिन्ना पर जंग क्यों?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां के सहारनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर, शामली, अलीगढ़, आगरा, एटा, मैनपुरी, इटावा, फिरोज़बाद, शाहजहांपुर, ज़िलों में मुसलमानों की आबादी 25 से 35 प्रतिशत तक है। इन ज़िलों की 40-45 सीटों पर 30-35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। प्रदेश में 70 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम मतदाता 20-25 प्रतिशत तक हैं। तो क्या जिन्ना पर जंग इस वोट बैंक की वजह से हो रही है। अब जिन्ना का नाम किस पार्टी का खेल बनाएगा और किसका बिगाड़ेगा यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे।
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