Meerut News: उत्तर प्रदेश के मेरठ में वृद्धा आश्रम में रह रहे अधिकांश बुजुर्गों का यही दर्द है कि जब उन्हें सबसे ज्यादा अपनों की जरुरत थी तभी उनके अपनों ने ही उन्हें दूर कर दिया। इससे भी बड़े दर्द की बात यह है कि अपनों से ठुकराए ऐसे बुजुर्गों के मन में आज भी कथित अपनों को लेकर कोई गिला-शिकवा तक नहीं है। यहां तक कि ऐसे बुजुर्ग काफी कुरेदनें के बाद भी अपनी पहचान इसलिए सार्वजनिक करने से डरते हैं कि कहीं उनका नाम आने के बाद उनके कथित अपने दुनिया के सामने बदनाम ना हो जाएं। न्यूजट्रैक से बातचीत में करीब 65 वर्षीय एक बुजुर्ग ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए रुआंसे स्वर में बताया कि उनके बेटे और बहुएं हैं, लेकिन वह उनको अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं। वह दो वर्ष से यहां रह रहे हैं। दोनों ही इस उम्र में भी नौकरी करने का हौसला रखते हैं। 60 वर्षीय दिल्ली निवासी एक ने बताया कि उनकी शादी नहीं हुई है। छोटे भाई का निधन हो चुका है। दो बहनें हैं, जिसने उनकी संपत्ति हड़प कर उन्हें घर से निकाल दिया। दिल्ली के ही एक अन्य 70 वर्षीय महिला बुजुर्ग जिनके दो पुत्र हैं ने बताया कि पति सरकारी नौकरी में थे। रिटायर होने के एक साल बाद ही उनकी मौत हो गई। कुछ दिन तक तो ठीक चला। लेकिन बाद में बड़े बेटे-बहू ने छोटे बेटे के घर भेज दिया। छोटे बेटे के घर पर भी कुछ दिन तक ही बात बनी। बाद में छोटा बेटा भी वृद्धा आश्रम छोड़ कर चला गया। मेरठ निवासी 61 वर्षीय महिला बुजुर्ग ने बताया कि उनका एक बेटा है, लेकिन वह घर में नहीं रखना चाहता है। व्यवहार सही न होने के कारण वह वृद्धा आश्रम में आ गईं। ।
मेरठ में गंगानगर स्थित दादा-दादी आश्रम में 20 से अधिक बेसहारा बुजुर्गों को आश्रय मिला हुआ है। सभी 60 साल से अधिक आयु के हैं। अधिकांश वह हैं जिन्हें उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया या ठुकरा दिया। कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके बच्चे विदेश चले गए। धन-संपत्ति कुछ भी पास ना होने के कारण यह बुजुर्ग अपना अंतिम समय कहां काटे, इसलिए उन्होंने आश्रम में शरण ले ली। 2 अप्रैल 2017 को नम्रता शर्मा ने इस आश्रम को शुरू किया था। वह कहती हैं आश्रम के भवन का मासिक किराया, रसोइया का वेतन, भोजन, दवा, कपड़े सहित साफ सफाई व अन्य पर कुल मिलाकर 70 हजार तक मासिक खर्च होता है। कोई सरकारी अनुदान भी नहीं मिलता। समाज सेवा से आश्रम संचालित है।
आश्रम संचालिका के अनुसार अभी कोरोना काल में संवेदनहीनता की एक शर्मनाक घटना देखने को मिली। स्कूटी सवार दो युवक बीमार करीब 70 वर्षीय वृद्धा को विवि रोड पर जज कंपाउंड के सामने सड़क पर छोड़कर चले गए। सूचना पर पहुंची पुलिस ने वृद्धा को घर पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन घर पर कोई नहीं मिला। पुलिस ने फिलहाल वृद्धा को गंगानगर स्थित वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है। वृद्धा रोते हुए बताती है कि वह मेरठ के प्रभात नगर में किराये के मकान में अकेली रहती हैं और पति की पेंशन के सहारे जीवन काट रही हैं। वुद्धा की दो बेटियां भी हैं, जो विदेश में रहती हैं। जब वृद्धा से पूछा गया कि क्या तुम अपनी बेटियों के खिलाफ पुलिस कार्यवाही चाहती हो। वृद्धा ने साफ मना कर दिया। वृद्धा का कहना था कि मेरी बेटी ऐसी नही हैं। उनकी कोई बहुत बड़ी मजबूरी होगी। वैसे, वृद्धा को अपनी बेटियों से यह उम्मीद अभी भी है कि उनकी बेटियां एक दिन उसे वृद्धा आश्रम से अपने घर लेकर चली जाएगी।
अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना जैसे हीरों के साथ फिल्म निर्माता के रूप में काम कर चुके मेरठ के रमेश भाटिया भी उन अभागे लोंगो में से हैं जिन्हें कि अपनों के होते हुए भी मेरठ के वृद्धा आश्रम में जिंदगी के आखरी लम्हें गुजारने को मजबूर होना पड़ा था। करीब 83 वर्ष की उम्र में उनकी बीमारी के कारण वृद्धा आश्रम में ही मृत्यु हो गई थी। उनके दो बेटे थे, जो मुंबई में अपने परिवार के साथ रहते हैं। परिवार से अलग होने के बाद से वह वृद्धा आश्रम में रह रहे थे। रमेश भाटिया ने उस 1967-68 के दौर में फिल्मों में काम किया है। उस दौर में फिल्म में काम करने के लिए 300 या फिर 400 रुपये मिलते थे।
मूल रूप से मेरठ के मिशन कंपाउंड के रहने वाले रमेश भाटिया ने मौत से कुछ ही महीने पहले इस संवाददाता के साथ बातचीत में बताया था कि जिस समय अमिताभ फिल्म इंडस्ट्री में नए आए तो उन्होंने 1972 में उनके साथ बंशी बिरजू फिल्म में निर्माता का काम किया। इसी तरह से आंचल फिल्म में भी वह निर्माता की भूमिका निभा चुके थे। इस फिल्म के हीरो राजेश खन्ना थे। रमेश भाटिया के दो बेटे सुमित और परीक्षित हैं। दोनों बेटों से करीब 11 माह पूर्व विवाद होने के बाद वह मेरठ आ गए थे। पहले वह दिल्ली रोड स्थित एक वृद्धा आश्रम में रहते थे। इसके बाद वह गंगानगर के दादा-दादी वृद्धा आश्रम में आकर रहने लगे। रमेश भाटिया थे। उनके पिता गणपत राय शहर के बड़े वकील थे। रमेश भाटिया ने मेरठ कॉलेज से 1957 से बीए किया था। आश्रम में उनके साथ रहे साथी बुजुर्गो की मानें तो वह बेहद खुश थे, लेकिन परिवार की तरफ से दुखी थे। वह हमेशा अपने परिवार को याद करते थे।