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Meerut News: जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमे, सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेशों से माननीयों में हलचल
जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक केस राज्य सरकारें अब मनमाने तरीके से वापस नहीं ले सकेंगी।
Meerut News: जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक केस राज्य सरकारें अब मनमाने तरीके से वापस नहीं ले सकेंगी। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस आदेश के बाद माननीयों में हलचल तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश में मेरठ की ही बात करें तो यहां एमपी-एमएलए कोर्ट में करीब दर्जनभर माननीयों पर 63 मुकदमे विचाराधीन हैं। हालांकि अभी तक कोई केस वापस नहीं हुआ है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद इन मुकदमों के आसानी से वापस होने की उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है।
राजनीति के अपराधीकरण की तेज होती प्रक्रिया के मद्देनजर आए मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली बेंच के ताजा निर्देशों के अनुसार मौजूदा या पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई भी आपराधिक केस राज्य सरकारें अपने स्तर पर वापस नहीं ले सकतीं। उन्हें इसके लिए हाईकोर्ट से इजाजत लेनी होगी। यह निर्देश जारी करने का फैसला जल्दबाजी में इसलिए लेना पड़ा क्योंकि अमाइकस क्यूरी (कोर्ट मित्र) की रिपोर्ट के मुताबिक, कई राज्य सरकारें ऐसे मामले वापस लेने की कोशिश में हैं।
सूत्रों के अनुसार मेरठ जिले में स्थित विशेष न्यायाधीश एमपी/एमएलए कोर्ट में वर्तमान में करीब 63 केस नेताओं से संबंधित लंबित हैं। अदालत में करीब 15-16 साल पुराने मुकदमे भी लंबित हैं। सांसद राजेन्द्र अग्रवाल से लेकर पूर्व विधायक चंद्रवीर का भी मुकदमा लंबित है। चंद्रवीर सिंह पर एक, याकूब कुरैशी के तीन मुकदमे, कादिर राणा का 2006 का एक मुकदमा, राजेंद्र अग्रवाल के तीन मुकदमे, सत्यवीर त्यागी का एक मुकदमा, संगीत सोम के दो मुकदमे, गोपाल काली के तीन, विजय कुमार मिश्रा का एक, रफीक अंसारी का एक और सबसे ज्यादा 18 मुकदमे योगेश वर्मा के अदालत में विचाराधीन हैं।
वैसे, ज्यादातर मुकदमे चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन को लेकर हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब नेताओं में अपने मुकदमे को लेकर हलचल है। क्योंकि पूर्व में कई नेताओं ने अपने विरुद्ध दर्ज मुकदमे वापस करा लिए, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब हाईकोर्ट के आदेश के बिना मुकदमे वापस नहीं हो सकेंगे।