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पंजाब में चन्नी का सीएम बनना, कांग्रेस की यूपी समेत कई राज्यों में बढ़त लेने की कोशिश
Meerut News: अकाली दल के साथ पंजाब में गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी BSP सुप्रीमो मायावती भी भड़की हुई हैं।
Meerut News: चरणजीत सिंह चन्नी (punjab Cm Charanjit Singh Channi) को पंजाब में सीएम बनाकर कांग्रेस (Congress) ने पंजाब, उत्तर प्रदेश (uttar pradesh), हरियाणा समेत एक साथ कई राज्यों में बढ़त लेने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश में विरोधी दल कांग्रेस को अब तक गंभीरता से नहीं ले रहे थे। लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब सरकार (Punjab Government) का मुखिया बनाकर कांग्रेस ने पंजाब, हरियाणा के साथ ही उत्तर प्रदेश में राजनीतिक बहस को नई दिशा देने की कोशिश की है। दरअसल, पंजाब में जहां 32 फीसदी दलित वोट हैं। वहीं यूपी में 21 फीसदी दलित वोट चुनाव में किसी की किस्मत बदलने में बहुत मायने रखता है।
'कांग्रेस का यह चुनावी हथकंडा'
यही वजह है कि चन्नी के पंजाब का सीएम बनने से जहां पंजाब में अपनी जमीन तलाशती आम आदमी पार्टी घबराई हुई है, वहीं अकाली दल के साथ पंजाब में गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी भड़की हुई हैं। मायावती की घबराहट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के कुछ ही मिनट बाद ही बहुजन समाज पार्टी प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को कांग्रेस का 'चुनावी हथकंडा' बताने में देर नहीं की। मायावती ने कहा, "यह बेहतर होता कि कांग्रेस पार्टी इनको पहले ही पूरे पांच साल के लिए पंजाब का मुख्यमंत्री बना देती। किंतु कुछ ही समय के लिए इनको पंजाब का मुख्यमंत्री बनाना, इससे तो यह लगता है कि यह इनका कोरा चुनावी हथकंडा है इसके सिवा कुछ नहीं है।"
दलितों का सबसे ज़्यादा वोट BSP को हासिल होता रहा
दरअसल, पंजाब में अकाली-बीएसपी गठजोड़ की कामयाबी के लिए दलित वोटों को ही सबसे अहम माना जा रहा है। लेकिन मायावती की पार्टी का असल दांव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगा होगा, जहां बीते करीब तीन दशक से दलितों का सबसे ज़्यादा वोट उनकी पार्टी बीएसपी को हासिल होता रहा है। इस बार प्रबुद्ध (ब्राह्मण) सम्मेलन के जरिए बीएसपी ब्राह्मण और दलित वोट बैंक को साथ लाने का वह फॉर्मूला आजमाने की कोशिश में है, जिसने साल 2007 में मायावती की पार्टी को पहली बार अकेले दम पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत दिलाया था। मायावती की घबराहट पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर भी है , जहां पंजाब के पंथों की तरह मानने वाले दलित हैं। वह मूलतः जाटव यानी चमार हैं। उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में जो दलित हैं वो अन्य पंथों को मानने वाले दलित हैं। सेंट्रल और ईस्ट यूपी में शायद इसका उस तरह असर ना हो। लेकिन जाटव बिरादरी में इसका प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के प्रति एक सकारात्मक रुख जरूर आने की संभावना है।
चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से BJP में कम हलचल
भारतीय जनता पार्टी में भी चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से कम हलचल नही है। इस हलचल को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सोमवार को एक के बाद एक किये गये कई ट्वीटों से समझा जा सकता है। अपने ट्वीट में योगी ने हालांकि इनमें चन्नी, पंजाब या कांग्रेस का कोई ज़िक्र तो नही किया। लेकिन केंद्र और प्रदेश की बीजेपी सरकारों के 'दलितों के हित' में किए गए काम जरुर गिनाए। गौरतलब है कि भाजपा साल 2014 के बाद से दलितों को साथ लाने के जी तोड़ प्रयास में जुटी है। पिछले चुनावी नतीजों पर गौर करें तो पार्टी को इसमें काफी हद तक कामयाबी मिली भी है। राजनीतिक विश्लेषकों के "साल 2009 से पहले तक बीजेपी के पास दलित वोट 10-12 फ़ीसदी थे। साल 2014 में बीजेपी के पास दलित वोट 24 फ़ीसदी हो गए. यानी दोगुने। साल 2019 में बीजेपी के खाते में 34 फ़ीसद दलित वोट आए।"
दलित समुदाय एक बड़ी ताकत है
दरअसल, देश की सियासत में दलित समुदाय एक बड़ी ताकत है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में दलितों की आबादी करीब 17 फीसदी है। ऐसे में देश की कोई भी पार्टी हो उसकी नजर दलित मतदाताओं पर अवश्य रहती है। बहरहाल,यह तय है कि अगर चन्नी के हिस्से थोड़ी भी कामयाबी आई तो वो दलित चेहरे के तौर पर दूसरे राज्यों में भी पार्टी का ग्राफ ऊंचा कर सकते हैं। जिस तरह कांग्रेस नेता रविवार शाम के बाद से कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू से ज़्यादा चर्चा चरणजीत सिंह चन्नी और उनके दलित समुदाय से जुड़े होने की कर रहे हैं, उससे यही संकेत मिल रहा है।