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Meerut News: उत्तर प्रदेश में चाचा-भतीजे के मिलन पर लगी सबकी निगाहें

उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दल अपने सियासी समीकरण साधने में जुट गए हैं।

Sushil Kumar
Published on: 8 Sept 2021 8:01 PM IST (Updated on: 8 Sept 2021 9:20 PM IST)
Akhilesh Yadav & Shivpal Yadav
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शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की फाइल तस्वीर (फोटो-न्यूजट्रैक)

Meerut News: उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दल अपने सियासी-सामाजिक समीकरण दुरुस्त करने में जुटे हैं तो नेता अपने सियासी भविष्य के लिए सुरक्षित ठिकाने तलाशने में जुट गए हैं। इन्हीं में एक बड़ा नाम समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव का भी है। जोकि समाजवादी पार्टी में वापस लौटना चाहते हैं। उन्होंने पिछले दिनों अपनी पुरानी पार्टी के प्रति लगाव दिखाते हुए कहा कि किसी बाहुबली या आपराधिक छवि के नेता को समाजवादी पार्टी में नहीं लिया गया था। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि अगर उनको सम्मान मिलता है तो वे सपा में लौटने को तैयार हैं। उनके भतीजे यानी अखिलेश यादव का रुख भी चाचा को लेकर पहले के मुकाबले काफी नरम हो चुका है।

ध्यान रहे अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के बाद हुए टकराव की वजह से ही शिवपाल ने पार्टी छोड़ी थी। लेकिन इससे उनको कोई फायदा नहीं हुआ। उलटे पार्टी के अंदर अखिलेश यादव का एकछत्र वर्चस्व कायम हो गया। अब शिवपाल या कोई भी नेता उनको चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। अपने कोर वोटरों और ताकतों को बटोरकर 2022 के चुनाव की तैयारी में लगी एसपी और अखिलेश यादव को भी विनम्र दिख रहे शिवपाल से बहुत दिक्कत होने के आसार नहीं है। इसलिए बयानों में दिख रही यह नजदीकी विधानसभा चुनाव आने तक हकीकत में भी बदल सकती है।


हालांकि, दोनों ही पार्टी के अधिकृत प्रवक्ता इस मामले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। यह विवाद 2016 में शुरू हुआ था। पार्टी पर एकाधिकार को लेकर शिवपाल और अखिलेश यादव के झगड़े ने खूब किरकिरी कराई। 2017 में अखिलेश यादव को सत्ता भी गंवानी पड़ी। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के नाम से अपनी पार्टी भी बना ली। शिवपाल की पार्टी ने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन उसे कोई भी सफलता हासिल नहीं हुई।

बता दें कि समाजवादी पार्टी ने अपने दरवाजे जिताऊ नेताओं के लिए खोल दिए हैं। अब पार्टी में वह नेता भी वापस हो रहे हैं। जो यादव परिवार की कलह में पार्टी से खेमेबाजी के चलते निकाल दिए गए थे। 2017 के बाद से अब तक पार्टी में ऐसे कई नेताओं ने वापसी की है। बड़े नामों में पूर्व मंत्री आरके चौधरी, पूर्व मंत्री जय नारायण तिवारी, पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह, नारद राय, अंबिका चौधरी, बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी शामिल हैं। इनके अलावा जनवरी 2021 से अब तक लगभग 100 से ज्यादा नेता समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर चुके हैं।


पिछले दिनों माफिया विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी के सपा में शामिल होने पर बीजेपी ने निशाना साधा है। बीजेपी ने ट्वीट कर लिखा कि सत्ता पाने के लिए कुछ भी करेगा की तर्ज पर चल रहे हैं अखिलेश। माफिया मुख्तार के परिवार को सपा में शामिल कर आखिर कौन से समाजवाद की बात कर रहे हैं, जनता सब देख रही है। गुंडों से गलबहियां एक बार फिर भारी पड़ने वाली हैं।

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मेरठ क्षेत्र के सिवालखास विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार अमित जानी कहते हैं, उत्तर प्रदेश में अगर चाचा-भतीजे एक हो जाते हैं तो प्रदेश से बीजेपी का जाना तय है। बहरहाल अब सबकी निगाहें चाचा-भतीजे के पर टिकी हैं कि भविष्य में वह क्या फैसला लेते हैं।

Raghvendra Prasad Mishra

Raghvendra Prasad Mishra

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