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Meerut News: यूपी राज्य सड़क परिवहन निगम में एक साल से पूर्णकालिक एमडी नहीं, जानें क्या है वजह

Meerut News : पिछले करीब एक साल से परिवहन निगम का पहियां बिना प्रबन्ध निदेशक के ही चल रहा है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Shraddha
Published on: 6 Oct 2021 7:59 AM GMT
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम
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उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Meerut News : उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (State Road Transport Corporation) को लेकर राज्य सरकार कितनी गंभीर है इसका पता इसी बात से चलता है कि पिछले करीब एक साल से परिवहन निगम का पहियां बिना प्रबन्ध निदेशक(एमडी) के ही यानी कि रामभरोसे चल रहा है। बता दें कि जुलाई 19 में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक के पद पर डॉ.राजशेखर (Dr.rajasekhar) की तैनाती की गई थी। करीब साल भर बाद ही सितम्बर 20 मध्य में उनकी कानपुर मंडल के कमिश्नर पद तैनाती कर दी गई। जबकि परिवहन आयुक्त धीरज साहू को प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। तब से धीरज साहू ही परिवहन निगम के प्रबन्ध निदेशक पद का अतिरिक्त कार्यभार संभाले हुए हैं। रोडवेज से जुड़े कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि क्योंकि सरकार की नीयत जल्द से जल्द परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने की है इसलिए सरकार निगम को लेकर गंभीर नहीं है।

बिना प्रबन्ध निदेशक (एमडी) के उत्तर प्रदेश परिवहन निगम(यूपी रोडवेज) की हालत यह है कि हो गई है कि कलपुर्जों से लेकर टायर तक की कमी से प्रदेश के सभी रीजन हलकान हैं। रोडवेज की कमाई का पीक सीजन भी आ चुका है। लेकिन आए दिन बसों के टायर धोखा दे रहे हैं। इससे यात्री भी इन बसों में सफर करने से डरने लगे हैं। परिवहन निगम के महाप्रबंधक (तकनीकी स्थापना/ए एफ डब्ल्यू) संजय शुक्ल ने कहा, "कलपुर्जों और टायरों की सप्लाई का व्यवधान दूर करने की कोशिश की जा रही है। आने वाले समय में टायर और कलपुर्जों के अभाव में वर्कशॉपों में खड़ी बसें चलने लगेंगी।"

रोडवेज यूनियन से जुड़े कर्मचारी नेता इस स्थिति के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। कर्मचारी नेताओं के अनुसार सरकार परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने का पूरा इरादा बना चुकी है। यही वजह है कि सरकार ऐसे हालात पैदा करने में लगी है ताकि निगम को भारी घाटे में दिखा कर निजी हाथों को सौंपा जा सके। यही वजह है कि परिवहन निगम को लेकर सरकार गंभीर नही है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि परिवहन निगम में पिछले एक साल से पूर्णकालिक एमडी तक की तैनाती नही की गई है। कार्यवाहक एमडी के जरिये परिवहन निगम का कार्य चलाया जा रहा है। देश भर के ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश का ही परिवहन निगम सबसे ज्यादा बस बेड़े वाला निगम है। ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की फ्लीट में 12000 से ज्यादा बसें शामिल हैं जो हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं।


यूपी राज्य सड़क परिवहन निगम(कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ के मेरठ से जुडे नेता राजीव त्यागी कहते हैं, "डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है । बावजूद इसके परिवहन निगम ने पिछले डेढ़ साल से अपनी बसों का किराया नहीं बढ़ाया है। अगर परिवहन निगम बसों का किराया बढ़ा दें तो निश्चित तौर पर निगम के बजट में और भी सुधार हो जाएगा। लेकिन पूर्ण कालिक एमडी नही होने की वजह से यह बात ऊपर सरकार तक तक नही पहुंच पा रही है। . यात्रियों के किराए से ही उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का काम चल पाता है। इनमें बसों के रख-रखाव से लेकर अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन और भत्ते के अलावा बिजली के खर्चे और अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं। वर्तमान में रोडवेज की आय का काफी हिस्सा महंगे ईंधन पर ही खर्च हो रहा है। डीजल की बढ़ती कीमतें रोडवेज के बस संचालन को महंगा कर रही हैं।।" इसी किराए से ही परिवहन निगम प्रशासन यात्रियों को बस स्टेशन पर यात्री सुविधाएं भी प्रदान करता है। इनमें स्टेशन पर साफ-सफाई, हवा और पानी की खास तौर पर व्यवस्था की जाती है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य में यात्री सड़क परिवहन सेवा 15 मई, 1947 को लखनऊ-बाराबंकी मार्ग पर बस सेवा का संचालन कर प्रारंभ की गयी थी। तत्पश्चात, चौथी पंच वर्षीय योजना के दौरान राज्य के निवासियों को पर्याप्त, किफायती एवं प्रभावी सड़क परिवहन सेवा प्रदान करने के मकसद से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रोडवेज़ का नाम 1 जून , 1972 को सड़क परिवहन अधिनियम, 1950 के अधीन परिवर्तित कर उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) कर दिया गया। इसके पीछे सरकार का प्रमुख उद्देश्य सड़क परिवहन सेक्टर का विकास जिससे व्यापार एवं उद्योग का भी समग्र विकास भी था।

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