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UP Election 2022: पश्चिमी यूपी के जाट किसकी खड़ी करेंगे खाट, किसकी कराएंगे सियास ठाठ

Up Election 2022 : पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय जिसकी तरफ भी गये हैं सियासत में उसी की ठाठ रही है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Ragini Sinha
Published on: 8 Feb 2022 2:35 PM IST (Updated on: 8 Feb 2022 2:35 PM IST)
BJP UP Election 2022
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BJP UP Election 2022

UP Election 2022 : पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) की सियासत में जाट समाज (Jat society) की अहमियत इन दिनों अपने चरम पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले चरण में ज्यादातर सीटों पर इनके मतो को लेकर घमासान है। भाजपा (bjp) अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती है तो सपा-रालोद गठबंधन (sp rld alliance) सिंहासन का मुंह अपनी ओर मोड़ना चाहता है।

जाट समुदाय पर कांग्रेस का साथ था

1937 से अब तक कि सियासत का इतिहास यही रहा है कि पश्चिमी यूपी में जाट जिसकी तरफ भी गये हैं, सियासत में उसी की ठाठ रही है। मसलन, 1937 से 1977 तक चौधरी चरण सिंह कांग्रेस में थे। तब जाट समुदाय कांग्रेस का साथ था। चौधरी साहब ने कांग्रेस छोड़ी तो यह कांग्रेस से अलग हो गया। नतीजा यह निकला कि जहां पहले कांग्रेस का एकछत्र राज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होता था, वहां बाद में कांग्रेस एक सीट को भी तरसने लगी। यह स्थिति आजतक बनी हुई है।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ही नही किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की सियासत में ठाठ की बड़ी वजह भी जाटों को ही माना जाता है। किसानों की पार्टी कहे जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल की सियासत में ठाठ भी तब तक रही है जब तक जाट उसके साथ थे।

मसलन,चौधरी चरण सिंह की विरासत चौधरी अजित सिंह ने संभाली और केंद्र में कई बार मंत्री बने और जाट वोटों की बदौलत किंगमेकर भी रहे। चौधरी चरण सिंह के वारिस के तौर पर अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी हैं, जो मौजूदा समय में आरएलडी के अध्यक्ष हैं। वहीं, महेंद्र सिंह टिकैत की सियासी विरासत नरेश टिकैत और राकेश टिकैत ने स्थापित किया है।

चौधरी चरण सिंह कभी भी खुद को जाट नेता कहलवाना पसंद नहीं करते थे

चौधरी चरण सिंह,अजित सिंह या फिर चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत इन नेताओं ने 'जाटलैंड' में सत्ता का अपना सियासी समीकरण बनाया। अजगर यानी अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत। उनकी सारी सफलता इसी पर केंद्रित रही।

बाद में मजगर भी इसमें जुड़ गया-यानी मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत। चौधरी चरण सिंह कभी भी अपने को जाट नेता कहलवाना पसंद नहीं करते थे। यही बात भाकियू के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की भी थी। उनके साथ सर्वसमाज जुड़ा था,लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे ने सारे सियासी समीकरण को ध्वस्त कर दिया।

जाट और मुस्लिमों के बीच बढीं दूरियों ने आरएलडी की सियासत के लिए भी संकट खड़ा कर दिया। चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी भी चुनाव हार गए। यानी जाटों ने पाला बदला तो राष्ट्रीय लोकदल अर्स से फर्श पर आ गिरा।

बीजेपी प्रत्याशी प्रचार करने से भी घबरा रहे

पश्चिमी यूपी में जाटो के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी जाटो को साधने के लिए जाट नेताओ के साथ बैठक करती है औऱ मनाने में लगी है, यहां तक की बीजेपी प्रत्याशी प्रचार करने से भी घबरा रहे है क्योकि भाजपा उम्मीदवारों को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

जाटों में बीजेपी के प्रति नाराजगी का आलम ये है कि पश्चिमी यूपी में कई जगहों पर भाजपा के उम्मीदवारों और नेताओं का विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कहीं पर भाजपा नेताओं को काले झंडे दिखाए जा रहे हैं तो कहीं पर लोग उन्हें घेरकर नारेबाजी करते नजर आ जाते हैं।

जनता ने संगीत सोम, संजीव बालियान और बबिता फोगाट जैसे शीर्ष बीजेपी नेताओं को भी नहीं बख्शा। अब तक भाजपा नेताओं के विरोध की करीब ढाई दर्शन घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। अब तक गठबंधन पर सवाल खड़े करने वाली भाजपा अब जयंत चौधरी को मनाने में लगी है यहां तक की पार्टी में आने का न्योता तक दे चुकी है। क्योकि कही ना कही भाजपा जानती है कि किसान आदोलन कि वजह से जाट भाजपा से खफा है जिसका सीधा फायदा जाट नेता कहे जाने वाले जयंत को मिला है और जाट रालोद के पाले में आ गये है।

30 सीटें ऐसी हैं जिनपर जाट वोटों को निर्णायक माना जाता

उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय भले ही 6 से 8 फीसदी के बीच हों लेकिन पश्चिम यूपी में जाट वोट करीब 17 फीसदी हैं। लोकसभा की 18 और विधानसभा की 120 सीटों पर इनका प्रभाव है। पश्चिमी यूपी में 30 सीटें ऐसी हैं जिनपर जाट वोटों को निर्णायक माना जाता है।

सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, और फिरोजाबाद जिले में जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है यहां की पूरी राजनीति जाट, जाटव, मुस्लिम, गुर्जर और वैश्य जाति के इर्द-गिर्द घूमती है।

जाट और मुस्लिम मिल जाएं तो पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर क्लीन स्वीप कर सकते हैं। जैसे- मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, बागपत, सहारनपुर और गाजियाबाद के सात जिलों में दोनों की आबादी मिलाकर 40 प्रतिशत से ज्यादा है। कई जगहों पर तो 50% तक हैं।

बीजेपी के तीन जाट सांसद हैं और विधानसभा की बात करें तो फिलहाल 14 जाट विधायक हैं. 2017 के चुनाव में सपा, बसपा, कांग्रेस से एक भी जाट विधायक नहीं बन सका था जबकि रालोद से जीते एकलौते विधायक ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया था।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की शुरुआत इसी जाटलैंड इलाके से हो रही है, जहां किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी यूपी के जाट वोटों पर सभी की निगाहें लगी हैं, क्योंकि बीजेपी भी जाट वोटों पर दांव खेल रही है। जयंत चौधरी सपा के साथ हाथ मिलाकर उतरे हैं। बहरहाल अब 10 मार्च को ही इस बात का खुलासा होगा कि आखिर जाट किसकी खड़ी करेंगे खाट और किसी कराएंगे ठाठ।

Ragini Sinha

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