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UP Election 2022: मेरठ में BJP को ध्रुवीकरण का आसरा, वहीं विपक्ष के लिए भी उलझा हुआ चुनाव

UP Election 2022: मेरठ को लेकर उसके नेताओं की पेशानी पर बल हैं। भाजपा को जहां सोतीगंज की पुलिस कार्रवाई और मुस्लिम वोटों का बंटवारा ही उनकी आखिरी उम्मीद है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Divyanshu Rao
Published on: 9 Feb 2022 8:07 PM IST
UP Election 2022
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यूपी विधानसभा चुनाव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

UP Election 2022: पिछले चुनाव में मेरठ जनपद की सात में से छह विधानसभा सीटे जीतने वाली भाजपा को इस बार ध्रुवीकरण का सहारा है। चुनाव में मेरठ की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा को विपक्ष से कड़ी टक्कर मिल रही है। हालांकि विपक्ष भी मजबूत नही है लेकिन,2017के मुकाबले इस बार विपक्ष बेहतर स्थिति में दिख रहा है।

मेरठ को लेकर उसके नेताओं की पेशानी पर बल हैं। भाजपा को जहां सोतीगंज की पुलिस कार्रवाई और मुस्लिम वोटों का बंटवारा ही उनकी आखिरी उम्मीद है। वहीं विपक्ष के लिए मुस्लिम वोटों के बंटवारे को रोकने की कड़ी चुनौती है। फिलहाल मेरठ की सात में से छह सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। भाजपा मेरठ में सोतीगंज में कबाड़ियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई को चुनाव में मुद्दा बना रही है। इस कार्रवाई को एक प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। हालांकि दलित वोटों की चुप्पी कोई और ही कहानी रच रही है।

मेरठ शहर विधानसभा सीट की बात की जाए तो आमतौर पर यहां के मतदाता राजनीतिक दलों की हवा के साथ नहीं बहते। चुनाव में मुद्दे चाहे जो हों, पर इस सीट पर बूथ तक जाते-जाते मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण हो ही जाता है। 2017 के चुनाव को ही देख लीजिए। इस चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर थी।

यूपी विधानसभा चुनाव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

अमित शाह ने बड़ी रैली भी की, इसके बावजूद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहते लक्ष्मीकांत वाजपेई सपा के रफीक अंसारी से चुनाव हार गए। डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेई यहां से आठ बार चुनाव लड़े। 1989, 1996, 2002 और 2012 में जीते भी। जब-जब यहां मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, तब-तब भाजपा की राह मुश्किल हुई।

इस चुनाव की बात करें तो भाजपा ने इस बार वाजपेई के बेहद करीबी रहे नए चेहरे कमलदत्त शर्मा पर दांव लगाया है, तो रालोद के साथ गठबंधन में उतरी सपा ने मौजूदा विधायक रफीक अंसारी पर ही भरोसा जताया है। रफीक की मुश्किल यह है कि बसपा ने यहां दिलशाद शौकत, तो एआईएमआईएम ने भी मुस्लिम प्रत्याशी इमरान अहमद को उतार दिया है। वहीं, कांग्रेस ने रंजन शर्मा और आप ने कपिल शर्मा को प्रत्याशी बनाकर भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। ऐसे में जो भी अपने खेमे के मतदाताओं को लामबंद करने में कामयाब हो जाएगा, जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा।

मेरठ जनपद की किठौर विधानसभा मेरठ जनपद की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है। इसे मुस्लिम राजनीति की जिले भर की धुरी समझा जाता है। यहां 31 फीसद मुस्लिम के साथ दलित, गुर्जर और त्यागी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। यहां बीजेपी ने पिछले चुनाव के विजेता रहे सतवीर त्यागी को एक बार फिर मैदान में उतारा है।

सपा ने शाहिद मंजूर को अपना प्रत्याशी बनाया

सपा ने भी एक बार फिर से शाहिद मंजूर पर भरोसा करते हुए चुनावी मैदान में उतारा है। बीएसपी(कुशलपाल मावी) और कांग्रेस(बबिता गुर्जर) दोनों गुर्जर प्रत्याशी लड़ा रहे हैं। किठौर विधानसभा सीट से शाहिद मंजूर कई बार विधायक रह चुके हैं। उनके पिता मंजुर अहमद भी यहां से विधायक चुनकर जाते रहे थे। जाट मतदाता इस सीट पर शाहिद मंजूर की ताकत को बहुत अधिक बढ़ा रहे हैं। इसलिए यहां मुकाबला भाजपा और सपा के बीच के बीच ही माना जा रहा है।

ग्रामीण इलाके की सरधना मुस्लिम बहुल सीट है। संगीत सोम ठाकुर और बीजेपी के परम्परागत वोट बैंक के सहारे हैं। मगर मुस्लिमों के साथ ही जाट और गुर्जर मतदाताओं का रुझान सपा के अतुल प्रधान की तरफ दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी के फायरब्रांड नेता ठाकुर संगीत सोम की राह भी पहले की तरह इस बार आसान नही लग रही है।

यहां उन्हें समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान से कड़ी टक्कर मिल रही है। हालांकि सपा ने यहां जाट नेता संजीव धामा को टिकट दिया है। लेकिन,सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार होने की वजह से इस बार जाट मतदाताओं का रुझान भी अतुल प्रधान की तरफ दिख रहा है। अतुल प्रधान जो कि गुर्जर हैं यहां से दो बार चुनाव हार चुके हैं।गुर्जर मतदाताओं में यहां उनके प्रति सहानुभूति है। भाजपा के लिए यहां कांग्रेस उम्मीदवार सैयद रैनुद्दीन से उम्मीदें है।

क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में पड़ने वाली मुसलमान वोंटे सपा उम्मीदवार को कमजोर और भाजपा को मजबूत करेंगी। ,लेकिन जो हालात हैं उसमें लगता नही है कि मुसलमान वोंटो का ध्रुवीकरण कांग्रेस की तरफ होगा। पिछले दो विधानसभा चुनाव में अतुल प्रधान चुनाव हार गए थे। ऐसा मुस्लिम वोटों के बंटवारे से हुआ था।

हस्तिनापुर सीट

सरधना से बिल्कुल मिली हुई हस्तिनापुर सीट पर भाजपा की तरफ से राज्यमंत्री दिनेश खटीक चुनावी मैदान में है। इस सुरक्षित सीट का इतिहास है कि जो भी यहां से विधायक बनता है, सूबे में सरकार उसी दल की बनती है। टकराव इस सीट पर भी सीधे गठबंधन और भाजपा में दिखाई दे रहा है।

कांग्रेस ने यहां फिल्म अभिनेत्री अर्चना गौतम को टिकट दिया है, जो आर्कषण का केंद्र हैं। सपा यहां योगेश वर्मा को लड़ा रही है। योगेश वर्मा इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। उनकी पत्नी सुनीता वर्मा मेरठ शहर की मेयर हैं। हस्तिनापुर, किठौर और सरधना में गठबंधन प्रत्याशी का गणित जोरदार दिख रहा है। इन सीटों पर दलित, मुस्लिम और गुर्जर मतदाता कहानी बदलने में सक्षम हैं। बीजेपी ने इस गणित का जवाब ठाकुर, खटीक और त्यागी गठजोड़ से दिया है, जो अपेक्षाकृत कमजोर दिख रहा है।

मेरठ शहर, दक्षिण और कैंट तीनों सीट पर बीजेपी मुस्लिम वोटों के बंटवारे के सहारे है। मेरठ दक्षिण विधानसभा सीट पर सपा, बसपा और मजलिस के प्रत्यशियों के मुस्लिम होने के कारण बीजेपी के सोमेंद्र तोमर की स्थिति बेहतर दिख रही है। सपा यहां आदिल चौधरी को लड़ा रही है, जबकि बसपा ने दिलशाद शौकत को प्रत्याशी बनाया है।

जबकि बसपा की तरफ कुंवर दिलशाद अली और कांग्रेस की तरफ से नफीस सैफी चुनावी मैदान में हैं। मजलिस ने भी मुसलमान प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। मेरठ कैंट पर तीन दशक से भाजपा का कब्जा है। सत्यप्रकाश अग्रवाल 2002 से लगातार चार बार चुनाव जीते। अब भाजपा ने वयोवृद्ध नेता सत्यप्रकाश अग्रवाल की जगह पूर्व विधायक अमित अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतारा है। सपा-रालोद गठबंधन से मनीषा अहलावत, बसपा से अमित शर्मा, कांग्रेस से अवनीश काजला चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर परचम लहराना विपक्षी दलों के लिए चुनौती माना जा रहा है।

सिवालखास विधानसभा सीट पर भाजपा ने मनेंद्र पाल सिंह को मैदान में उतारा है। उनके सामने समाजवादी पार्टी (सपा) और और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) गठबंधन से गुलाम मोहम्मद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से मुकर्रम अली उर्फ नन्हें खान, कांग्रेस से जगदीश शर्मा ताल ठोक रहे हैं। पिछले चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने कब्जा किया था। लेकिन इस बार भाजपा के लिए इस सीट पर जीत दोहरानी आसान नही लग रही है। वैसे भी इस सीट का पुराना इतिहास यही रहा है कि इस विधानसभा सीट से कोई भी लगातार दो बार विधानसभा नहीं पहुंच सका है।



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Divyanshu Rao

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