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UP Election 2022: पश्चिमी यूपी में मुस्लिम नेताओं का टोटा बना मायावती के लिए चिंता का सबब
UP Election 2022: बहुजन समाज पार्टी पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी, ऐसे में आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा में मायावती को मुस्लिम वोटर्स मिलने मुश्किल लग रहे हैं।
Meerut News: कभी यूपी में बीजेपी (BJP) को 51 सीटों पर सिमेट देने वाली बीएसपी (Bahujan Samaj Party) आज खुद सूबे की सियासत में हाशिए पर दिख रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह मुस्लिमों (Muslim Voters) का बसपा से छिटकना माना जा रहा है। मायावती (Mayawati) के कई मुस्लिम कद्दावर नेताओं के दूसरी पार्टियां ज्वाइन करने के बाद से बसपा में मुस्लिम चेहरा का टोटा पड़ गया है।
पश्चिमी यूपी (Western UP) बसपा के लिए सबसे मुफीद रहा हैं। वजह, वह स्वयं पश्चिमी यूपी से आती हैं और जिस जाटव बिरादरी से वो हैं उनका वोट बैंक भी यहीं पर सर्वाधिक है। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी दिक्कत मुस्लिमों को लेकर हैं जो कि उनसे छिटकते दिख रहे हैं।
बसपा में मुस्लिम नेताओं की कमी
हाल यह है कि मायावती के कई मुस्लिम कद्दावर नेताओं के दूसरी पार्टियां ज्वाइन करने के बाद से बसपा में मुस्लिम (Muslim leader in BSP) चेहरा का टोटा पड़ गया है। नतीजन उन्हें मजबूरन पूर्व राज्य सभा सदस्य मुनकाद अली को पश्चिमी यूपी के मेरठ मंडल की जिम्मेदारी देनी पड़ी है। अभी तक पार्टी ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में तीन मंडलों की जिम्मेदारी दी हुई थी।
लखनऊ सत्ता का रास्ता पश्चिमी यूपी से होकर जाता है
कहते हैं जिस तरह दिल्ली सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है उसी तरह लखनऊ सत्ता का रास्ता पश्चिमी यूपी से होकर जाता है। पश्चिमी यूपी के 23 जिलों में कुल 136 विधानसभा सीटें हैं। पश्चिमी यूपी ने जब-जब जिस पार्टी का साथ दिया उसे सत्ता नसीब हुई। वर्ष 2007 में बसपा ने यहां बेहतर प्रदर्शन किया और सरकार बनी। अगर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को सर्वाधिक सीटें यहीं से मिली। इसीलिए मायावती पश्चिमी यूपी को लेकर चिंता में है।
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन गिरा
दरअसल, 2012 के विधानसभा चुनाव (Vidhansabha Electon 2012) बाद से बसपा का सियासी ग्राफ नीचे गिरता जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला और 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे निराशाजनक प्रदर्शन करते हुए महज 19 सीटें ही जीत सकी थी, लेकिन उसके बाद से यह आंकड़ा घटता ही जा रहा है। बसपा के साथ 7 विधायक ही बचे हैं और विधायक बागी हो गए।
मायावती के कई मुस्लिम कद्दावर नेताओं के दूसरी पार्टियां ज्वाइन करने के बाद से बसपा में मुस्लिम चेहरा का टोटा पड़ गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर तीन मुस्लिम सासंद जीते हैं, जिनमें सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान और अमरोहा से कुंवर दानिश अली जबकि गाजीपुर से अफजाल अंसारी है। इन तीनों नेताओं को छोड़कर बाकी तमाम मुस्लिम नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं, जिसके चलते मुस्लिम चेहरे कमी पार्टी को महसूस होने लगी है।
दलित वोट में भी बसपा के साथ सिर्फ जाटव ही बचा है
मुस्लिम नेताओं को बसपा में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नही लग रहा है तो इसकी वजह, मुस्लिम मतदाताओं का बसपा से छिटकना है। वहीं दलित वोट में भी बसपा के साथ सिर्फ जाटव ही बचा है, जिस पर भीम आर्मी के चंद्रशेखर (Chandrashekhar of Bhim Army) की भी नजर है। ऐसे में किसान आंदोलन से आरएलडी को मिली संजीवनी और अब सपा से हो रहे गठबंधन के चलते बसपा के मुस्लिम नेताओं को अपनी जीत की उम्मीद यहीं नजर आ रही है। इसी के चलते वो सपा और आरएलडी में शामिल हो रहे हैं। मुजफ्फरनगर जिले के कद्दावर मुस्लिम नेता और पूर्व सांसद कादिर राणा बसपा छोड़ सपा में शामिल हो चुके हैं। कादिर राणा के बसपा छोड़ने के साथ ही पार्टी के पास जिले में कद्दावर मुस्लिम चेहरों से पूरी तरह से कमी हो गई है।
बसपा के पूर्व सांसद हाजी याकूब कुरैशी पहले ही बसपा से बाहर हैं
मेरठ की बात करें तो पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी राजनीति में इन दिनों सक्रिय नही हैं। याकूब कुरैशी बकायदा 2022 का चुनाव नही लड़ने का एलान भी कर चुके हैं। मुस्लिमों के दूसरे बड़े नेता बसपा के पूर्व सांसद हाजी याकूब कुरैशी पहले ही बसपा से बाहर हैं। ऐसे ही सियासी हालात बिजनौर और हापुड़ और पश्चिमी यूपी के दूसरे जिलों का है, जहां मुस्लिम नेताओं का बसपा से मोहभंग हुआ है और उन्होंने दूसरी पार्टी का दामन थामा।
मायावती ने शमसुद्दीन राईनी को पश्चिमी यूपी की कमान सौंप रखी है जो खुद झांसी के रहने वाले हैं। इनका पश्चिमी यूपी में अपना कोई वजूद नही है। बहरहाल,अगले चुनावों में मायावती के सामने जाटवों के वोटों को एकजुट रखने के साथ साथ मुसलमानों के समर्थन को भी एकसाथ रखने की चुनौती होगी।
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