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काशी नगरी में विकास का हाल बदहाल, पुल निर्माण पर हो रहा पंगा, निराश लोग
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में विकास का हाल बेहाल है। योगी सरकार बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि अधूरी पड़ी योजनाओं को पंख लगेंगे। योजनाएं जमीनी स्तर पर रफ्तार पकड़ेंगी,
आशुतोष सिंह
वाराणसी: प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में विकास का हाल बेहाल है। योगी सरकार बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि अधूरी पड़ी योजनाओं को पंख लगेंगे। योजनाएं जमीनी स्तर पर रफ्तार पकड़ेंगी, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। निर्माण कार्य से जुड़ी कार्यदायी संस्थाओं को ना तो जिला प्रशासन की परवाह है और न ही योगी सरकार के मंत्रियों की। आलम यह है कि गंगा नदी पर बनने वाले सामने घाट पुल का निरीक्षण करने के लिए खुद सीएम योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे थे। उन्होंने अधिकारियों को बकायदा तय समय में काम पूरा करने का आदेश दिया था, लेकिन उनका फरमान भी हवा-हवाई साबित होता दिख रहा है।
सरकार के लिए नाक का सवाल बन गया है पुल
वाराणसी और रामनगर को जोडऩे वाला यह पुल इन दिनों जिला प्रशासन के लिए नाक का सवाल बन गया है। मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने बनारस के कमिश्नर को लखनऊ बुलाया था और उनसे काशी में चल रहे निर्माण कार्यों पर चर्चा की थी। उसी वक्त उन्होंने कमिश्नर से कहा था कि सामने घाट गंगा पुल का निर्माण 27 जून तक हो जाए। बैठक से लौटकर आए कमिश्नर ने सेतु निगम के अधिकारियों को बुलाकर सीएम की भावना से अवगत करा दिया। इसके बाद 14 मई को डीएम योगेश्वर राम मिश्र ने मौका मुआयना किया। उन्होंने भी सेतु निगम के अधिकारियों को सख्त हिदायत दी कि सामने घाट-रामनगर गंगा पुल हर हाल में 27 जून तक पूरा हो जाए। डीएम ने सेतु निगम के अधिकारियों को अल्टीमेटम तक दिया। कहा कि निर्धारित अवधि तक काम पूरा न होने पर कोई बख्शा नहीं जाएगा। उनका कहना था कि पुल का लोकार्पण 27 जून को होना है और इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आएंगे।
डीएम ने भी दिखाए थे कड़े तेवर
जिलाधिकारी ने सामने घाट सेतु के एप्रोच मार्ग एवं पुल के निरीक्षण के दौरान पुल को बीच में जोड़े जाने के कार्य में और तेजी लाने के लिए श्रमिकों की सख्या बढ़ाकर रात-दिन 24 घंटे कार्य करने का निर्देश दिया था। इस पुल के लिए 2005 में मंजूरी मिली व 2006 में शिलान्यास हुआ। 15 मीटर लंबे इस पुल की लागत लगभग 4508.90 लाख रुपये है। दो बार इसके बजट में बढ़ोतरी हो चुकी है। अब इसे 27 जून तक पूरा किया जाना है। मुख्यमंत्री 27 मई को जब बनारस दौरे पर आए थे, तब वह सामने घाट भी गए थे। उन्होंने इस पुल को हर हाल में 27 जून तक पूरा करने की हिदायत दी थी।
कंपनी ने खड़े किए हाथ
इसके बाद पांच जून को कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने बैठक की और कहा कि सामनेघाट-रामनगर गंगा पुल का लोकार्पण 27 जून को होना है। कमिश्नर ने संबंधित संस्था के अधिकारियों को साफ लफ्जों में चेतावनी दी थी कि यदि समय से काम पूरा नहीं हुआ तो वे जेल जाएंगे। पुल निर्माण की धीमी प्रगति पर उन्होंने गहरी नाराजगी जताई ।
उन्होंने सेतु निर्माण का कार्य करा रहे जेसीएल कम्पनी के प्रतिनिधि को कड़ी चेतावनी दी थी। दूसरी तरफ पुल का निर्माण करने वाली कंपनी ने तय समय में काम पूरा करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। कंपनी के मुताबिक सामनेघाट एवं बलुवाघाट सेतु के निर्माण कार्य में पैसे की कमी आड़े आ रही है।
इस मसले को कंपनी ने जिला प्रशासन के सामने भी उठाया, लेकिन कमिश्नर नितिन गोकर्ण ने किसी तरह की बहानेबाजी को मानने से इनकार कर दिया। कमिश्नर ने फिर कार्यदायी संस्था के प्रतिनिधि की सख्त क्लास ली और कहा कि कार्य के सापेक्ष शत-प्रतिशत धनराशि सेतु निगम द्वारा कम्पनी को उपलब्ध कराई जा चुकी है। ऐसे में कंपनी पैसों को लेकर ब्लैकमेलिंग न करे।
काम पूरा होना मुश्किल
इस पुल की तफ्तीश की तो पता चला कि अभी तक तो एप्रोच मार्ग ही तैयार नहीं है। गंगा के ऊपर पुल पर एक गर्डर को जरूर जोड़ दिया गया है,लेकिन उसके आसपास का सारा काम बाकी है। एप्रोच मार्ग की बात करें तो लंका से जाते वक्त एप्रोच मार्ग का शुरुआती हिस्सा तो समतल कर दिया गया है, लेकिन उसके आगे गहरा गड्ढा है। मिट्टी के ढूहे पड़े हैं। संपर्क मार्ग को पुल से जोड़ा तक नहीं जा सका है। संपर्क मार्ग पर मिट्टी है और उसे पक्का करने की कवायद अभी शुरू भी नहीं हो सकी है। ऊपर से होने वाली बारिश से काम और पिछडऩे लगा है। पूरी तस्वीर देखने के बाद यह साफ है कि सामनेघाट पुल 27 जून तक पूरा हो पाना मुश्किल है।
विरोधी दे रहे हैं ताने
तय समय पर पुल न बनने की सूरत में विरोधी पार्टी अब हमलावर हो गई है। कांग्रेस और सपा के नेता अब सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। कांग्रेस नेता कृष्णकांत शर्मा के मुताबिक केंद्र की राह पर अब राज्य सरकार भी चल पड़ी है। पिछले कई महीने में बनारस में विकास के नाम पर अब तक सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। सिर्फ राजनेता ही नहीं स्थानीय लोग भी कार्यदायी संस्था के अडिय़ल रवैये से खफा हैं। सामने घाट निवासी संजीव बताते हैं कि इस पुल को सालभर पहले ही बन जाना चाहिए था, लेकिन कार्यदायी कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के चलते स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।