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हर साल उजड़ना-बसना बन गई है नियति, और हाकिम हैं कि चुप्पी साधे हैं

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Published on: 13 July 2017 11:46 AM IST
हर साल उजड़ना-बसना बन गई है नियति, और हाकिम हैं कि चुप्पी साधे हैं
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बहराइच: 'बहिया मा धन धान गंवावा, अंसुवन मा जिंदगानी पावा। हाकिम चुप्पी साधे बइठे, फिर से दु:ख कै दिन है आवा। कृपा करौ भगवान सहारा तुमरै है, जीवन कै सरकार सहारा तुमरै है।' कुछ यही हालात हैं जिले के बाढ़ क्षेत्रों के। महसी तहसील क्षेत्र में बाढ़ की विभीषिका दो दिन से मुसीबत का सबब बनी हुई है। लेकिन अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।

वहीं ग्रामीण बेहाल हैं। जो ग्रामीण बाढ़ के इलाकों से निकल रहे हैं। उनको नए सिरे से गृहस्थी बसाने के लिए जमीन नहीं मिल रही है। सड़क के किनारे डेरा डाले हुए हैं। खुले आसमान तले गुजर-बसर करना सभी की मजबूरी बन गई है। परेशान ग्रामीणों का कहना है कि हर साल उजड़ना और बसना नियति है। हाकिम कोई इंतजाम कर नहीं रहे हैं। ऐसे में जब तब जिंदगी रहेगी, संघर्ष करेंगे।

घाघरा नदी का कहर एकबार फिर बहराइच के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बरप रहा है। दो दिन से खतरे के निशान से ऊपर पहुंची घाघरा नदी की लहरें महसी के इलाके में मुसीबत का सबब बनी हुई हैं। अब तक २० गांव बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। इनमें गोलागंज, भागवतपुरवा, कायमपुर, जरमापुर, बरुआ कोड़र और फक्कड़पुरवा गांव की स्थिति काफी बदहाल है। इन गांवों में बाढ़ का पानी घुस चुका है। यहां पर नाव की व्यवस्था नहीं है। जिन लोगों के पास निजी नावें हैं, वह जैसे-तैसे अपने परिवार को निकाल रहे हैं।

गोलागंज निवासी बालकराम जान जोखिम में डालकर अपनी गृहस्थी समेट कर बेलहा-बेहरौली तटबंध के निकट किसानगंज के पास सड़क के किनारे खुले आसमान तले गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि हर साल यही स्थिति बनती है। अधिकारियों को सूचना दी जाती है। लेकिन मदद नहीं मिलती। इस बार भी बिना मदद के परिवार और गृहस्थी को बाहर लाए। वहीं भागवतपुरवा निवासी शिवकुमार पड़ोसी की नाव से गृहस्थी का सामान किनारे तक लाए। फिर ठेलिया का इंतजाम कर बेलहा-बेहरौली तटबंध पर डेरा डाला है।

बोले कि जिला प्रशासन की नाव अब तक नहीं पहुंची है। गांव में 150 से अधिक लोग फंसे हुए हैं। यही हालत अन्य ग्रामीणों का है। जरमापुर निवासी हनुमान, रज्जब, सोनी और निर्मला का कहना है कि एकबार फिर जीवन भिखारियों की तरह हो गया है। अब तक मदद नहीं मिली है। आगे मदद मिलेगी या नहीं, पता नहीं। जैसे-तैसे जिंदगी बचा रहे हैं। जब तक संघर्ष कर पाएंगे, करेंगे।

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