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गैर-तकनीकी एवं गैर-संवर्गीय अधिकारियों/कार्मिकों की तैनाती पर बिफरा पीएमएस संघ

चिकित्सकों के पद पर MBA एवं अन्य गैर तकनीकी अधिकारियों की तैनाती ना केवल वर्तमान में चिकित्सकों को हतोहत्साहित करेगी वरन उनकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करेगी।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shashi kant gautam
Published on: 7 Jun 2021 5:15 PM IST (Updated on: 7 Jun 2021 5:17 PM IST)
Deployment of MBA and other non-technical officers on the post of doctors
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पीएमएस संघ: डिजाईन फोटो-सोशल मीडिया 

लखनऊ: प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ सचिन वैश्य एवं महामंत्री डॉ अमित सिंह ने राज्य केंद्रीय कार्यकारिणी के पदाधिकारियों से विस्तृत विमर्श के पश्चात संयुक्त रूप से आज निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा करते हुए अवगत कराया है कि संवर्ग में चिकित्सकों के पद पर MBA एवं अन्य गैर तकनीकी अधिकारियों की तैनाती ना केवल वर्तमान में चिकित्सकों को हतोहत्साहित करेगी वरन उनकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करेगी।

पीएमएस संवर्ग के दोनो डॉक्टरों का कहना है सभी चिकित्सक इस महामारी से राज्य की जनता को मुक्त कराने के लिए परिश्रम कर रहे है जिसकी चर्चा विश्वस्तर पर हो रही है। ऐसे में किसी भी परिवर्तन का होना उचित प्रतीत नहीं होता। बल्कि ऐसी दशाओं में तो चिकित्सकों को और ज्यादा अधिकार प्रदान कर देने चाहिए।

दोनों चिकित्साधिकारियों ने कहा कि पूर्व में चेचक तथा पोलियो जैसी बड़ी बीमारियों का उन्मूलन के अतिरिक्त वर्तमान में दिमागी बुखार तथा अन्य संचारी रोगों पर नियंत्रण तथा वर्तमान में ही कोरोना महामारी के संक्रमण काल में प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सकों द्वारा युद्धस्तर पर जो भी अनवरत कार्य किए गए हैं उससे खुद ही परिलक्षित है कि ये सभी कार्य एक बेहतर प्रबंधन एवं संचालन से संभव हो सके।

मैनेजर तथा कंसल्टेंट्स प्रत्येक जनपद में तैनात हैं

संवर्ग में पूर्व से ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में NHM के अंतर्गत बड़ी संख्या में मैनेजर्स एवं कंसल्टेंट्स तैनात हैं- डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर/डिस्ट्रिक्ट कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर/डिस्ट्रिक्ट एकाउंट मैनेजर्स/डिस्ट्रिक्ट डेटा मैनेजर/डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर मैनेजर/डिस्ट्रिक्ट क्वालिटी कंसलटेंट/डिस्ट्रिक्ट मैटरनल हेल्थ कंसलटेंट/मॉनिटरिंग एवं इवैल्यूएशन ऑफिसर/फैमिली प्लानिंग कंसलटेंट/वैक्सीन कोल्ड चैन मैनेजर/डिस्ट्रिक्ट कंसलटेंट मैटरनल हेल्थ इत्यादि। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मैनेजर तथा कंसल्टेंट्स प्रत्येक जनपद में तैनात हैं।

डॉ. सिंह व डॉ. वैश्य का कहना है कि संवर्ग के चिकित्सकों के लिए सेवा शर्तें एवम उनकी नियमावली पहले से ही प्रतिस्थापित है। संवर्ग के चिकित्सक अपनी सेवा काल में अपने कार्य दशाओं से प्राप्त अनुभव एवम निश्चित कार्य काल के ही पश्चात उच्च पद को प्राप्त करते है। ऐसे में उनके समक्ष इस क्षेत्र में एक MBA एवं अन्य गैर-तकनीकी अधिकारी को जो चिकित्सकीय जिम्मेदारियों के प्रति अनुभवहीन है, को पदभार देना उचित नहीं है।

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग एक तकनीकी संघ है। शासन स्तर पर तकनीकी विमर्श हेतु दो विशेष सचिव के पद सृजित हैं परंतु आश्चर्य की बात है कि उन पदों को ना भरते हुए एक समानांतर व्यवस्था की जा रही है।

तकनीकी स्थानों पर गैर तकनीकी व्यक्तियों का प्रयोग ना किया जाए

प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया था कि तकनीकी स्थानों पर गैर तकनीकी व्यक्तियों का प्रयोग ना किया जाए। यदि प्रशासनिक पदों की परिभाषा इतनी सरल होती तो अन्य विभागों के उच्चाधिकारियों की जगह गैर तकनीकी कार्मिकों को और बिज़नेस मैनेजर्स को तैनात कर दिया जाता।

चिकित्सकीय संवर्ग पूरे विश्व में आवश्यक एवं आकस्मिक सेवाओं में आता है। वर्तमान समय में चिकित्सक,विशेष रूप से सरकारी चिकित्सक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं। मरीजों की सेवा में अपनी जान दे रहे हैं। दिवंगत शहीद साथियों को मरणोपरांत भी सरकार द्वारा घोषित उनका अधिकार नहीं दिया गया है। उनके परिवार आज भी आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

आश्चर्य की बात है कि आखिर यह प्रबंधन किस स्तर पर नाकाम हुआ है? जिलों में लगातार प्रशासनिक पदों पर बैठे हुए अधिकारियों द्वारा चिकित्सकों का शोषण और अपमान किया जा रहा है। अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद भी चिकित्सकों ने इस स्थिति की कभी कल्पना भी नहीं की होगी। अगर कल्पना की होती तो सरकारी सेवा में नहीं आए होते।

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ,उत्तर प्रदेश ने अपने साथियों के लंबे अनुभव और व्यवहारिक ज्ञान की सहायता से एक दृष्टि पत्र पहले ही सरकार को दिया था, जिसमें संवर्ग की समस्याओं के साथ साथ नए चिकित्सकों को संवर्ग के प्रति आकर्षित करने हेतु उपाय मौजूद थे परंतु उसका संज्ञान शायद ही किसी भी स्तर पर लिया गया होगा,ऐसा प्रतीत नही होता।

आज भी संघ की दीर्घकालिक मांगों के पत्रों पर कोई भी संज्ञान नही लिया जा रहा। तथाकथित प्रशासनिक पद और उन पर कार्यरत अनुभवी और वरिष्ठ चिकित्सकों जिनकी संख्या उंगली पर गिनी जा सकती है, जिनको चिकित्सीय कार्य में लगा कर चिकित्सकों की कमी नहीं पूरी की जा सकती क्योंकि विभिन्न स्तरों पर स्थित चिकित्सा इकाइयों में 24 * 7 विशेषज्ञ सेवाएं देने के लिए लगभग 33000(तेंतीस हज़ार) विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है और 14000 (चौदह हज़ार) प्लेन एम.बी.बी.एस चिकित्सकों की आवश्यकता है।

सभी प्रयोगों के बावजूद(पुनर्नियोजन/वॉक-इन-इंटरव्यू/सेवा विस्तार/संविदा पर चिकित्सकों की भर्ती bid माध्यम से)चिकित्सकों को सेवाओं के प्रति आकर्षित करने के सारे प्रयास निरंतर विफल होते जा रहे हैं। ऐसे में गैर-चिकित्सक एवं अनुभवहीन बिजनेस मैनेजर को कार्य एवं दायित्व सौंपने की विचारधारा अनुचित प्रतीत होती है।

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ,उत्तर प्रदेश ने विगत कई वर्षों में उच्चाधिकारियों को ना केवल इस संवर्ग पर अनुसंधान करते हुए पाया है वरन उन निर्णयों से दीर्घकालिक परिणाम ना प्राप्त होते हुए इस संवर्ग को पतन की ओर अग्रसारित होते हुए एवम संवर्ग के प्रति चिकित्सकों को विमुख होने की निरंतर प्रक्रिया का अवलोकन किया है।

इसी क्रम में पूर्व में चिकित्सकों के बहुत से अधिकार दूसरे संवर्गों को सौंप दिए गए उदाहरण के लिए:

A) वर्ष 2008 में फ़ूड एवं ड्रग विभाग अलग बना दिया गया।

B) वर्ष 2004 में किया गया संवर्ग विभाजन का प्रयोग केवल विसंगतियों को उत्त्पन्न करने के पश्चात अपने मूल रूप में वापस आया।

C) वर्ष 2011 में मुख्य चिकित्सा अधिकारी परिवार कल्याण जैसे पद की परिणीति NHM घोटाले के रूप में हुई।

चिकित्सकों की उपयोगिता तो केवल इसी बात से सिध्द हो जाती है कि इस संवर्ग की अधिवर्शिता आयु सर्वप्रथम 58 वर्ष से बढ़कर 60 वर्ष एवं पुनः 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गयी। राज्य के हर संवर्ग में स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति(VRS) का लाभ लेने के लिए प्रत्येक कार्मिक स्वतंत्र है,पर केवल चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में ही इस पर रोक लगाते हुए नया प्रयोग किया गया। भविष्य के दृष्टिकोण से इस पर लगाई गई बाध्यता को तात्कालिक प्रभाव से समाप्त कर देना चाहिए। परिस्थितियां बदल सकती हैं परंतु कोई भी चिकित्सक इस संवर्ग की अनिश्चितताओं के दृष्टिगत आकर्षित नही हो पा रहा।

संवर्ग में सृजित पदों (लगभग 18700)के सापेक्ष लगभग 5000(पांच हज़ार) चिकित्सकों के पद आज भी रिक्त हैं। ये पद लंबी अवधि से रिक्त हैं। इससे ये स्वयं ही परिलक्षित है कि जो परिस्थितियां इन चिकित्सकों को इस संवर्ग में आने के लिए उत्साहित करनी चाहिए थी,वो परिस्थितियां उत्पन्न ना करते हुए नए नए प्रयोगों के माध्यम से इस क्षेत्र में क्रांति लाने के सभी उपायों को विफल कर दिया गया। किसी भी अन्य संवर्ग के व्यक्तियों से दूसरे संवर्ग की भरपाई करना केवल लघुकालिक तो हो सकता है परंतु दीर्घकालिक कभी नही हो सकता।



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Shashi kant gautam

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