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Allahabad Poetry: दुनिया का हर 'वाद' है इलाहाबाद में
इलाहाबाद... एक राष्ट्र है, जिसका राष्ट्रीय भोजन दाल भात चोखा और राष्ट्रीय पेय चाय है।
Allahabad Poetry: इलाहाबाद... आठ बाई दस का एक कमरा है,
जिसमें निवास करता है विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ जो अमेरिकी राष्ट्रपति का अगला कदम उसके सोचने से पहले जान जाता है।
जो अमेरिका-रूस, भारत-पाकिस्तान, इजराइल-फिलिस्तीन से लेकर इराक-ईरान तक, हर किसी की जानकारी रखता है।
इलाहाबाद
जीवन का सामंजस्य है, जहाँ आठ बाई दस के कमरे में होते हैं,
तीन बाई छः के दो तख्त,
एक किचन और एक स्टडी रूम
समय के साथ इसमें कभी कभी गेस्ट रूम भी बना दिया जाता है।
आठ बाई दस के इस महल में कुकर की सीटी और किशोर दा एक साथ सुर चढ़ाते हैं।
इस महल में रहने वाला पार्टनर होता है 'अर्धांगिनी'
हर चीज में आधा
श्रम में भी, धन में भी और जीवन के हर सुख - दुःख में भी।
इलाहाबाद
एक राष्ट्र है,
जिसका राष्ट्रीय भोजन दाल भात चोखा
और राष्ट्रीय पेय चाय है।
जहाँ सबसे बड़ा पद 'मठाधीश' का है।
जहाँ की हवाओं में ऑक्सीजन से अधिक ज्ञान है।
जहाँ की सड़कें किताबों से बनी हुई है।
जहाँ का हर नागरिक एक 'सिद्ध डीलर' है और सिद्ध ज्योतिष भी।
इलाहाबाद
'गुनाहों का देवता' और 'मधुशाला' है।
संगम किनारे, आज़ाद पार्क की कुर्सियों , ख़ुसरो बाग की सीढ़ियों और सीनेट हाल ग्राउंड में हर रोज
कहीं खुलता है एक नया प्रेमग्रंथ
कहीं किसी पेड़ के नीचे पढ़ा जा रहा होता है पहले स्पर्श का अध्याय और खाई जा रही होती हैं।
जन्म जन्म के साथ की सौगंध
और कहीं चिल्लाते, झल्लाते भरी आँखों से फाड़ दिया जाता है ये प्रेमग्रंथ।
इलाहाबाद
संगम है,
हॉस्टल और डेलीगेसी का,
वेज और नानवेज का,
अमीरी और ग़रीबी का,
यूपीएससी और एसएससी का,
गंगा और यमुना का भी।
इलाहाबाद के हॉस्टल और लॉजों में बसता है
पूर्वांचल, बुन्देल, अवध और बिहार।
इलाहाबाद दुनिया का हर 'वाद' इलाहाबाद में है।
इलाहाबाद
दिलों की नींव पर बना है, दलों के दलदल में नहीं।
यहां फलाने छात्र संगठन वाले कट्टर मनीषी,
अपने छात्रावास के सीनियर के लिए उतार फेंकते हैं अपनी कट्टरता
और नारा लगाते हैं सीनियर का
'सौ में साठ हमारा है .. बाकी में बटवारा है '
'हमारा हॉस्टल चौड़े से... बाकी सब... से'
'भैया जीत के अइहे... जय हो'
इलाहाबाद
बड़े हनुमान जी के दरबार में मंगलवार को जुटी भीड़ है,
जिसकी सुबह दही जलेबी से होती है.
शाम देहाती के रसगुल्ले से
और दोपहर कभी-कभी कल्लू और नेतराम की कचौरी से भी।
किसी रात भूखे पेट सोने का नाम भी इलाहाबाद है।
इलाहाबाद के सिविल लाइंस में हनुमान जी एकदम टाइट खड़े हैं
और संगम किनारे लेटे मुद्रा में
मानो वो हिन्दू हॉस्टल से दाल भात चोखा खाकर चले
और संगम पहुँचते पहुँचते निंदिया के ओलर गए।
इलाहाबाद
जहां पेट और बाल कब हाथ से निकल जाये पता नहीं चलता।
पता नहीं चलता कि कब हाथ से निकल गई प्रेमिका
थाम के किसी सरकारी नौकर का हाथ।
इलाहाबाद
के महलों का सम्राट
सब जानता है,
सिवाय इसके कि कब होगा
उसका सलेक्शन
- मित्र की Facebook wall से आभार