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जर्जर पुलिस चौकी: खौफ के साये में खाकी

raghvendra
Published on: 12 Oct 2018 1:09 PM IST
जर्जर पुलिस चौकी: खौफ के साये में खाकी
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रजनीश

गाजीपुर: जिले के थाना क्षेत्र बरेसर के अधीन आने वाली पुलिस चौकी बाराचवर का स्टाफ इन दिनों खौफ के साए में जी रहा है। यह खौफ किसी अपराधी या आतंकी का नहीं है बल्कि पुलिस चौकी की जर्जर हो चुकी इमारत की छत से टपकते पानी व दीवारों में पड़ी दरार का है। लेकिन विडंबना यह है कि इसकी जानकारी विभाग के उच्चाधिकारियों को नहीं है जबकि चौकी इंचार्ज का कहना है कि इस बाबत उच्चाधिकारियों से मौखिक तौर पर बताया जा चुका है।

बाराचवर ब्लॉक मुख्यालय पर करीब 22 साल पहले बने डाक बंगले में लगभग 19 साल पहले लोगों की सुविधा के लिए पुलिस चौकी स्थापित की गई थी क्योंकि बाराचवर दो थाना क्षेत्रों करीमुद्दीनपुर व बरेसर की सरहद पर पड़ता है। बाराचवर ब्लॉक मुख्यालय, पशु अस्पताल व बस स्टैंड थाना बरेसर क्षेत्र में पड़ता है वहीं पुराने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का आधा हिस्सा व गांव करीमुद्दीनपुर क्षेत्र में पड़ता है। यह तो रही यहां की सीमांकन की स्थिति। बाराचवर पुलिस चौकी में तैनात पुलिस कर्मियों के लिए मुख्य समस्या की वजह चौकी की जर्जर इमारत है जो कभी भी हादसे का कारण बन सकती है। उसके सभी कमरों की खिडक़यों के ग्रिल उखड़ चुके हैं और कांच टूट चुके हैं। यहां तक कि गुसलखाने और हमाम तक में दरवाजे नहीं है। जब किसी पुलिस कर्मी को शौचालय जाना होता है तो उसके सामने दो ही विकल्प होते हैं या तो शौचालय के दरवाजे पर टाट का पर्दा लटकाए या फिर डिब्बा लेकर खेतों की ओर जाए।

सारे कमरों की टपकती है छत

यहां तैनात पुलिस कर्मियों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि यहां मूलभूत सुविधाओं का इतना अभाव है कि बताने में भी झीझक महसूस होती है। इन कर्मियों ने कहा कि क्या करें साहब! नौकरी है तो करनी ही पड़ेगी। उनका कहना है कि गर्मी में तो ठीक रहता है कि रात को बाहर चारपाई डालकर सो जाते हैं, लेकिन सबसे विकट समस्या बरसात के दिनों में होती है। पुलिस चौकी का एक भी कमरा ऐसा नहीं है जिसकी छत न टपकती हो।

यहां चौकी इंचार्ज सहित कुल 12 लोग तैनात हैं। इन 12 जवानों पर कुल 20 गांवों की सुरक्षा का जिम्मा है। अब सवाल यह उठता है कि दूसरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले पुलिस कर्मी ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो वह औरों की सुरक्षा क्या कर पाएंगे। पुलिस मुलाजिमों का कहना है कि कमरों की स्थिति देखने पर ऐसा लगता है कि जबसे यह इमारत बनी है तबसे इसकी सफेदी तक नहीं कराई गई है। बहरहाल स्थिति यह है कि जर्जर इमारत में रह रहे पुलिस मुलाजिमों को हर वक्त यह खौफ बना रहता है कि कब किस कमरे की छत बैठ जाए।

हमें किसी ने बताया नहीं

थाना बरेसर के प्रभारी इंस्पेक्टर श्याम जी यादव का कहना है कि उन्हें इस बारे में कभी किसी मुलाजिम में कभी कुछ बताया ही नहीं। उनका कहना है कि उन्होंने अभी हाल ही में थानाध्यक्ष का चार्ज संभाला है और तबसे तीन चार बार बाराचवर चौकी का दौरा कर चुके हैं। यह समस्या उनके ध्यान में नहीं थी। थानाध्यक्ष ने कहा कि जैसे-जैसे बजट आ रहा है वैसे-वैसे थाने और पुलिस चौकियों की मरम्मत व निर्माण करवाया जा रहा है। बारचवर पुलिस चौकी भी मरम्मत करवाकर वहां तैनात जवानों की समस्याएं जल्द दूर कर दी जाएंगी। जब उन्हें यह बताया गया कि यह पुलिस चौकी उधार की इमारत यानी डाक बंगले में बनी है तो फिर आप इसकी मरम्मत पुलिस महकमे के फंड से कैसे करवा सकते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि वहां की जो भी समस्या होगी उसे दूर किया जाएगा।

समस्या तो है पर क्या करें

चौकी इंचार्ज देवेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं कि डर तो बना ही रहता है पर क्या करें। चौकी का एक भी कमरा ऐसा नहीं है जिसकी छत न टपकती हो। बरसात के दिनों में खतरा और बढ़ जाता है। जवानों को बैठने व सोने तक में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। चौकी की मरम्मत के लिए मौखिक तौर पर उच्चाधिकारियों से कहा जा चुका है। हां यह बात अलग है कि समस्या लिखित में नहीं दी गई है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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