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Political families: आपसी कलह के चलते राजनीतिक परिवारों का होता रहा है नुकसान, अब इनका क्या होगा ?
Political families: यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक इन दिनों राजनीति के बडे़ परिवारों में कलह मची हुई है। राजनीतिक परिवारों में कलह थमने का नाम नही ले रही है।
Political Families: उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक इन दिनों राजनीति के बडे़ परिवारों में कलह मची हुई है। पार्टी को बनाने से लेकर उसे सजाने संवारने में अपना जीवन खपाने वाले पार्टी सुप्रीमों के सक्रिय न होने से कई राजनीतिक परिवारों में कलह थमने का नाम नही ले रही है। जिसके कारण पार्टी समर्थकों में निराशा के साथ इसके भविष्य को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
पिछले पांच दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना का प्रभाव रहा है। पूरे प्रदेश की राजनीति शिवसेना के आसपास ही घूमती रही है। पार्टी संस्थापक बाला साहब ठाकरे वैसे तो जनसंघ की विचारधारा के नजदीक रहे पर 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद वह इसके और नजदीक आ गए।
इसके बाद 1984 में शिवसेना ने भाजपा के तत्कालीन शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ गठबंधन किया था। तब पहली बार शिवसेना प्रत्याशियों ने भाजपा के टिकट पर ही चुनाव ल़़डा था। 1989 में दोनों दलों के बीच औपचारिक गठबंधन हुआ था। 1995 से 1999 तक शिवसेना के दो मुख्यमंत्री मनोहर जोशी व नारायण राणे सत्ता में रहे।
लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-शिवसेना में खटास इस कदर ब़़ढ गई थी कि दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इस बीच उद्वव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राजठाकरे में भी टकराव शुरू हो गया । इसके बाद राजठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर लिया और उद्धव ने शिवसेना संभाल ली।
हाल यह है कि कभी बाला साहब ठाकरे के पुत्र और दाहिने बाए हाथ उद्वव और राजठाकरे अलग अलग हो चुके हैं जिसके चलते महाराष्ट्र में एक ही परिवार के टकराव के चलते पार्टी कार्यकर्ता आपस में बंट चुके हैं और इन दिनों हनुमान चालीसा को लेकर दोनों भाई आमने सामने हैं।
इसी तरह उत्तर भारत में ताकतवर राजनीतिक दलों में शुमार रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पार्टी का भी वही हश्र हुआ। 2012 में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया। यही नही बाद में पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया। कई लोगों को यह बात अखरी तो उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया।
इसके बाद मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव और पुत्र अखिलेश यादव के राजनीतिक टकराव के चलते 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गयी। पार्टी 2019 के लोकसभा और 2022 का विधानसभा चुनाव भी हार चुकी है।
इसी तरह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर पार्टी की कमान अपने बेटे राहुल गांधी को सौंपी तो पार्टी में सुधार होने के बजाय वह बेहद कमजोर होती गयी।
राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा। पार्टी की हालत यह हो गई है कि इसके साथ गठबंधन करने वाले दलों की भी लुटिया डूबती गयी। पार्टी के अंदर राहुल गांधी और प्रियंका के सक्रिय होने और दामाद राबर्ट बढेरा के हस्तक्षेप के चलते पार्टी लगातार कमजोर होती रही है।
पुत्र मोह का एक और उदाहरण उत्तर भारत के राज्य बिहार में देखने को मिलता है जहां पर 2015 आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ ही बिहार विधानसभा में पार्टी विधायक दल का नेता मनोनीत किया। इसके बाद जब पार्टी अध्यक्ष लालू यादव जेल चले गए तब से सारा काम तेजस्वी यादव के हाथों में आ गया।
लेकिन इस बीच लालू प्रसाद यादव के दोनो बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच आपसी टकराव होता रहा। लालू यादव के बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के मतभेद के चलते पहले बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का साथ छूटा और राजद सत्ता से अलग हुआ। इसके बाद हुए 2019 में हुए लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में राजद को ं उसे करारी हार का सामना करना पडा।
इसी तरह बिहार की राजनीति में केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान एक बडा नाम है। वह 2014 से एनडीए का हिस्सा बने हुए है लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौंपी। लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभालते ही चिराग पासवान अपने नए तेवर में आ गए हैं। उन्होंने पार्टी को विस्तार देते हुए कहा कि झारखंड ही नहीं, बल्कि लोजपा दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ेगी। इसके बाद से एनडीए में भाजपा और लोजपा का गठबन्धन टूट गया।
इधर चिराग पासवान के जिद्दी स्वभाव के चलते उनके चाचा भी उनसे अलग हो गए और अब चिराग पासवान पूरी तरह से अकेले पड़ चुके हैं। वहीं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष कहने को तो चौ अजित सिंह हैं पर सारा काम पार्टी उपाध्यक्ष और उनके बेटे जयन्त चौधरी ही देखते रहे हैं। हांलाकि अजित सिंह के निधन के बाद जयन्त चौधरी ही पार्टी के अध्यक्ष बने है। पर रालोद का सत्ता हासिल करने का सपना पूरा नहीं हो सका है।
इसी तरह हरियाणा के सबसे बडे राजनीतिक चौटाला परिवार भी पूरी तरह से टूट चुका है। इसके कई फाड हो चुके हैं। हरियाणा में दस साल तक राज करने वाले इस परिवार के चाचा भतीजों ने अलग अलग पार्टी बना ली। दिसंबर 2018 में अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला ने इनेलो से अलग होने के बाद जेजेपी बनाने का एलान किया था. विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने के बाद जेजेपी ने भाजपा सरकार में शामिल होने का फैसला किया।