Political Family Controversy: राजनीतिक परिवारों में दामादों ने भी खूब उठाया लाभ

Political Family Controversy: प्रदेश में किसी राजनीतिक परिवार में इस तरह का विवाद कोई पहला नहीं है।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Monika
Published on: 13 Jan 2022 8:54 AM GMT
Political Family Controversy
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राजनीतिक परिवार में विवाद  (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Political Family Controversy: केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता में भागीदारी अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel ) के पति और विधानपरिषद सदस्य आशीष पटेल (Ashish Patel) विधानसभा चुनाव के पहले बेहद सक्रिय हैं। टिकट बंटवारे से लेकर गठबंधन (gathbandhan) के तहत भाजपा (BJP) नेताओं से वार्ता तक करने में इन दिनों उनकी महत्वपूर्ण भूमिका दिख रही है।

अपना दल के संस्थापक स्व सोने लाल पटेल के निधन के बाद उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने पार्टी को ऊंचाइयों तक पहुँचाने का काम किया। इसके बाद जब पार्टी की केंद्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी तय हो गई तो अनुप्रिया के पति आशीष पटेल उनका सहयोग करने के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आ गए। हांलाकि उनके राजनीति में उतरने के बाद सोनेलाल पटेल (sonelal patel) के परिवार में विवाद भी शुरू हो गए जो पुलिस और कोर्ट तक पहुँच चुके हैं।

प्रदेश में किसी राजनीतिक परिवार (political family) में इस तरह का विवाद कोई पहला नहीं है। पारिवारिक मतभेद से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का परिवार भी अछूता नहीं रहा। संजय गांधी (Sanjeev Gandhi) के निधन के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी (Maneka Gandhi) ने राजनीतिक विरासत को लेकर विवाद खड़ा किया। उन्होंने कोई समानांतर पार्टी तो नहीं बनाई लेकिन अपने पति के नाम से संजय विचार मंच का गठन किया। इसका पहला संमेलन राजधानी के कैसरबाग स्थित बारादरी में किया गया। जिसमें सभी कांग्रेस जनों से शामिल होने की अपील की गई थी। लेकिन इंदिरा गांधी के मना करने पर किसी ने संजय विचार मंच के इस स मेलन में जाने का साहस नहीं दिखाया। इसी के बाद से मेनका ने अलग राह ली। और चुनावी राजनीति में उतर आई। और १९८४ में हुए लोकसभा के चुनाव में अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में कूद गई।

कई बड़े राजनीतिक घरानों में विवाद

उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य राज्यों में कई बड़े राजनीतिक घरानों में इस तरह के विवाद रहे। पांच बार तामिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे द्रमुके प्रमुख एम करुणानिधि (M Karunanidhi) के परिवार में भी विरासत को लेकर खासी जंग रही। करूणानिधि के बेटे अड़ागिरी और स्टालिन के बीच विरासत को लेकर झगड़ा हुआ। एमके स्टालिन ने बहुत करीने से डीएमके कार्यकर्ताओं के बीच अपने को करूणानिधि के उत्तराधिकारी तौर पर स्थापित किया। अड़ागिरी मदुरै और उसके आस-पास के इलाकों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे थे । दोनों के बीच संघर्ष के बाद करूणानिधि ने एमके स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

इसी तरह आन्ध्रप्रदेश में तेलगूदेशम पार्टी के मुखिया एनटी रामाराव (NT Rama Rao) में विरासत को लेकर जंग छिड़ी। रामा राव को उनके दामाद चन्द्रबाबू नायडू ने उन्हे अपदस्थ किया। क्योकि उन्हे इस बात का शक था कि वे अपनी सत्ता दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को सत्ता सौंपना चाहते है। चन्द्रबाबू नायडू के इस काम में उनके रामाराव के बेटों ने उनका साथ दिया। लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही चन्द्रबाबू नायडू ने सबकों किनारे कर दिया।

जम्मू कश्मीर में भी शेखअब्दुल्ला (sheikh abdullah) के परिवार को सत्ता की विरासत को लेकर दोचार होना पड़ा था। यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार में भी लालू यादव (lalu prasad yadav) के परिवार को भी इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा था। पिछले साल हुए बिहार के चुनाव में डिप्टी सीएम बनने को लेकर उनके दोनों पुत्रों के अलावा उनकी पुत्री मीसा यादव भी इस पद की प्रबल दावेदार थी लेकिन बाद में उनके पुत्र तेजेस्वी यादव ही डिप्टी सीएम बने।

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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