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पिता रिक्शा चालक-दादा भरते हैं हवा, बच्ची फुटपाथ पर पढ़ बनेगी टीचर
लखनऊ: "जब से चला हूं मैं, नजर मंजिल पर है मेरी, मेरी आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा " ये लाइन सात साल की जैफी पर एकदम सटीक बैठती हैं। टीचर बनने का सपना देखने वाली जैफी बेहद गरीब घर की है, लेकिन उसकी ये गरीबी इसके हौसलों की उड़ान को नहीं रोक पाएगी। जैफी के पापा एक रिक्शा चालाक हैं, जो मुश्किल से पूरे दिन में दो सौ रुपए कमा पाते होंगे और इसी दो सौ रुपए में उन्हें अपने परिवार का पेट भी भरना है और बच्चों के स्कूल की फीस भी भरनी है। जैफी के दादा मुन्ना निशातगंज नगर कोतवाली के पास फुटपाथ पर पान मसाला, गुटखा बेचते हैं और साइकिल में हवा भरते हैं। अपने सपनों को पूरा करने के लिए जैफी फुटपाथ पर पढ़ती है।
नहीं पढ़ा पाया बच्चों को
बुजुर्ग मुन्ना ने बताया कि गरीबी के कारण वो अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाए, जिसके कारण कोई रिक्शा चलाता है, तो कोई घरों की पुताई करता है। लेकिन वो अब अपने पोते-पोतियों की जिंदगी नहीं खराब होने देंगे। मुन्ना ने कहा कि वे नहीं चाहते कि उनके पोते-पोती भी बड़े होकर वही काम करें, जो आज उनके बच्चे कर रहे हैं। वे उनको एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे हैं, जिसकी फीस पांच सौ पचास रुपए है। धीरे-धीरे बच्चों की फीस बढ़ती ही जाएगी, ऐसे में फिर वो बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे ? ये वो नहीं जानते।
काम के साथ-साथ पढ़ाई भी
मन में टीचर बनने का सपना सजोने वाली जैफी के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं, लेकिन फिर भी वो अपने दादा के साथ रोज यहां पर आती है और उनके काम में हाथ बंटाने के साथ-साथ वो पढ़ाई भी करती है । जैफी ने बताया कि उसे पढ़ना-लिखना बहुत अच्छा लगता है, इसीलिए वो यहां काम करने के साथ-साथ पढ़ती भी है।
अखिलेश सरकार से नहीं कोई उम्मीद
अखिलेश सरकार का नाम लेते ही मुन्ना भड़क उठे। सरकार क्या करेगी? हमें ही अपना पेट काटना पड़ता है। हम दमा के मरीज हैं, कब मर जाएं, क्या भरोसा? हमारे पास कुछ भी नहीं है। हम बहुत गरीब हैं। बिटिया का टीचर बनने का सपना कैसे पूरा होगा, इसका खुदा ही मालिक है। मुन्ना ने बताया की उन्होंने समाजवादी पेंशन योजना फार्म भी भरा था, लेकिन वो भी उन्हें नहीं मिल रहा है।
दादा के साथ में जैफी
पच्चीस साल से फुटपाथ पर बेचते हैं पान मसाला
मुन्ना पच्चीस साल से निशातगंज कोतवाली के पास पान-मसाला बेचते हैं और साइकिल में हवा भरते हैं। फुटपाथ पर होने के कारण उसकी आमदनी ना के ही बराबर होती है। मुन्ना ने बताया की जब ये निशातगंज पुल नहीं बना था, तब से हम यहां पान-मसाला बेचते हैं । तब से अब तक ना जाने कितनी सरकारें आई और बड़े-बड़े वादे करके चली गई, लेकिन गरीबों की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।