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Sonbhadra: कोयले की किल्लत नहीं, खराब प्रबंधन ने बनाए बिजली संकट के हालात, विशेषज्ञों ने जताई चिंता
Power Crisis in Sonbhadra: सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि कोयले का वर्तमान संकट, योजना, स्टॉक प्रबंधन और अन्य पक्षों के प्रबंधन की कमी का नतीजा है।
Sonbhadra News Today: एक तरफ जहां ग्लोबल वार्मिंग की तपिश यूपी समेत पूरे उत्तर भारत को झुलसा रही है। वहीं तापमान में बढ़ोत्तरी से बिजली खपत का नया रिकार्ड बन रहा है। इस बीच कोयला संकट की स्थिति ने बिजली सेक्टर में हायतौबा की स्थिति बना रख दी है। इस मसले को लकर मंगलवार को जलवायु थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स की तरफ से आयोजित बेबिनार से देश के अलग-अलग हिस्से जुड़े, विशेषज्ञों ने हालात पर चिंता तो जताई ही, बढ़ते कोयला-बिजली संकट के लिए कोयले की कमी नहीं बल्कि खराब प्रबंधन को जवाबदेह ठहराया और त्काल केंद्र-राजय दोनों की तरफ से संजीदगी भरा कदम उठाए जाने की जरूरत जताई। अक्षय ऊर्जा को अंतिम और वास्तविक समाधान मानकर उसमें और ज्यादा निवेश करने के लिए भी बेहतर वक्त बताया गया।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि कोयले का वर्तमान संकट, योजना, स्टॉक प्रबंधन और अन्य पक्षों के प्रबंधन की कमी का नतीजा है। हो सकता है कि बिजली संकट को देखते हुए कोयला क्षेत्र में और अधिक निवेश का तर्क दिया जाए लेकिन इससे हालात और भी खराब होंगे। दहिया ने कहा कि कोयले की कोई किल्लत नहीं है, बस उसे बिजलीघरों तक ले जाने की व्यवस्था मुकम्मल नहीं है। अतिरिक्त कोयला उत्पादन की भी कोई आवश्यकता नहीं है। जरूरत है वास्तविक ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के लिए अक्षय ऊर्जा रूपांतरण में तेजी लाने की। लीड इंडिया इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के एनर्जी इकोनॉमिक्स विभूति गर्ग ने कहा कि यह स्थिति कोयले की किल्लत से नहीं बल्कि योजना में कमी की वजह से उत्पन्न हुई है। पिछले 29 अप्रैल को देश में बिजली की शीर्ष मांग अब तक के सर्वाधिक 207 गीगावॉट तक पहुंच गई थी।
आगे भी बिजली की मांग साल दर साल बढ़ेगी ही। ऐसे में सरकार को अक्षय ऊर्जा में निवेश पर ज्यादा ध्यान देना होगा। इलेक्ट्रोलाइजर और बैटरी के उत्पादन पर भी फोकस करना होगा। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने वैज्ञानिक अध्ययनों का जिक्र करते हुए कहा कि धरती के ऊपरी सतह का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। ज्यादा गर्मी पड़ने और उसके चलते बिजली की मांग में वृद्धि ऊर्जा संकट की बड़ी वजह है। इस मौके को कोयला आधारित बिजली से छुटकारा पाने का अवसर बनाया जाना चाहिए। हालांकि फिलहाल बिजली की फौरी जरूरत को पूरा करने के लिए कोयले के सिवा और कोई चारा नहीं है। इसको देखते हुए सरकार सौर और पवन उर्जा पर तेजी से ध्यान देना चाहिए।
आई फॉरेस्ट के जस्ट ट्रांजिशन विभाग की निदेशक श्रेष्ठा बनर्जी ने वर्ष 2030 तक की जरूरत पूरी करने के लिए कोयला उत्पादन की स्वीकृतियां मौजूद है। सवाल यह है कि इहम ऊर्जा के आपूर्ति के संकट से कैसे निबटें। 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना है, कोयले की खपत को 2040 तक कम से कम आधा घटा देना होगा। जहां तक ऊर्जा रूपांतरण का सवाल है तो कोयला क्षेत्र मे बड़ी संख्या में काम कर रहे लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही कदम आगे बढ़ाए जाने चाहिए।