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जनसंख्या विस्फोट खतरनाक, बढ़ती आबादी बड़ी समस्या

raghvendra
Published on: 30 Aug 2019 12:32 PM IST
जनसंख्या विस्फोट खतरनाक, बढ़ती आबादी बड़ी समस्या
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मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में जबसे जनसंख्या विस्फोट से देश के लोगों को आगाह किया तबसे इस मुद्दे को लेकर पूरे देश में एक बहस चल पड़ी है। मोदी ने इस भयावह खतरे से देशवासियों को आगाह करते हुए कहा कि बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन के विविध क्षेत्रों में तमाम समस्याएं पैदा कर रहा है। यदि हम पीएम के बयान को सियासत के चश्मे से न देखकर वास्तविकता के धरातल पर उसकी पड़ताल करें तो पता चलेगा कि उनका कहना पूरी तरह सच है।

दरअसल, हमारे देश की ज्यादातर समस्याओं के लिए जनसंख्या विस्फोट ही जिम्मेदार है। स्कूल, ट्रांसपोर्ट, सडक़, अस्पताल किसी भी संसाधन का नाम लें सब जगह एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। देश में आबादी की तुलना में संसाधन बेहद कम हैं और संसाधन बढ़ाने की रफ्तार आबादी बढऩे की मौजूदा रफ्तार के मुकाबले काफी धीमी है। अगर हम आबादी की समस्या से अब भी नहीं चेते तो संसाधनों का चरमरा कर बैठ जाना तय है जो बहुत ही भयावह स्थिति होगी।

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हमें 72 साल पहले अंग्रेजों से आजादी मिली थी, लेकिन आज हम बढ़ती आबादी की समस्या के गुलाम हैं। देश का कुल क्षेत्रफल करीब तीन करोड़ 28 लाख किलोमीटर है, जिसमें करीब तीन करोड़ किमी भूमि और शेष पानी है। इस तीन करोड़ किमी जमीन में 60.5 प्रतिशत कृषि भूमि, 23.1 प्रतिशत वन भूमि तथा 16.4 प्रतिशत भूमि अन्य उपयोग में आती है। मौजूदा समय में हमारे देश की जनसंख्या करीब एक अरब 35 करोड़ है।

देश के संसाधन

भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2 प्रतिशत है। उपलब्ध संसाधन और आबादी के बीच की खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है और इसे पाट पाना बेहद कठिन है। प्राकृतिक संसाधन तो मानव द्वारा बनाए नहीं जा सकते। सो पानी व जमीन की कमी पूरी हो ही नहीं सकती। भारत के पास पानी का स्रोत दुनिया का केवल चार प्रतिशत है। भारत में प्रति व्यक्ति 100 से 150 लीटर पानी की खपत है। बढ़ती आबादी का असर है कि जल संकट स्थायी समस्या बन गया है।

देश के सरकारी अस्पताल मरीजों के बोझ से कराह रहे हैं।भारत में प्रति एक हजार की आबादी पर मात्र 1.3 डाक्टर उपलब्ध है। सवा अरब की आबादी में मात्र 23,582 सरकारी अस्पताल हैं जहां 7,10,761 बेड हैं।

भारत में शिक्षा पर जीडीपी का 24 प्रतिशत खर्च किए जाने के बाद भी 24 छात्रों पर एक शिक्षक है। करीब एक लाख सरकारी स्कूल ऐसे हैं जो केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।

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बढ़ती आबादी के कारण बेरोजगारों की फौज दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 पर पहुंच गयी थी, जो बीते 45 सालों में सबसे ज्यादा थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2019 में बेरोजगारी का आंकड़ा 7.2 फीसदी पर पहुंच गया। वहीं पिछले साल फरवरी में यह आंकड़ा 5.9 फीसदी था। मौजूदा समय में भारत में 25 से 54 आयु वर्ग की आबादी 41.24 प्रतिशत है। देश में सबसे ज्यादा युवा आबादी का होना भी बेरोजगारी दर बढऩे का एक कारण हैै।

बढ़ती बेरोजगारी के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन तेजी से हो रहा है जिससे शहर आबादी के बोझ से दबे जा रहे हैं। देश में 34 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है। वर्ष 1990 में भारत में 22 करोड़ लोग शहरों में रहते थे जो मौजूदा समय में बढक़र 45 करोड़ हो गए हैं। मौजूदा शहरीकरण की दर 2.37 प्रतिशत के हिसाब से वर्ष 2050 तक भारत के शहरों में 81 करोड़ लोगों के बसने का अनुमान है। शहरों में पेयजल संकट गहराता जा रहा है। स्कूलों में दाखिले की मारामारी है। देश में एक हजार लोगों में से केवल 22 लोगों के पास ही कार है, लेकिन सडक़ों पर जाम के हालात रोज ही देखे जा सकते हैं।

भारत सरकार का परिवार कल्याण कार्यक्रम

यह केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार देश के सभी राज्यों के लिए 100 फीसदी सहायता प्रदान करती है। एफडब्ल्यूपी अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकृत है। इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दिया गया है जिसके तहत एक परिवार में दो बच्चों के लिए तथा दो बच्चों के जन्म के बीच में अंतर बनाने के लिए टर्मिनल (स्थायी) विधि पर जोर दिया जाता हैै।

छह साल में चीन से ज्यादा होगी जनसंख्या

आबादी के लिहाज से हम दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं, जबकि करीब एक अरब 41 करोड़ की जनसंख्या के साथ चीन पहले स्थान पर है। आजादी के समय वर्ष 1947 में हमारे देश की आबादी 37 करोड़ थी। अगले 53 सालों में यानी वर्ष 2000 में इसमें 63 करोड़ का इजाफा हुआ और यह 100 करोड़ हो गयी और वर्ष 2019 में महज 19 साल में आबादी में 35 करोड़ का इजाफा हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर साल करीब आठ करोड़ 30 लाख नये लोग इस जनसंख्या में जुड़ते हैं और आगामी छह साल में हमारा देश चीन को पछाडक़र दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत की जनसंख्या वर्ष 2061 तक लगातार बढ़ती हुई एक अरब 68 करोड़ हो जाएगी।

आबादी के बोझ से कराह रहा यूपी

जनसंख्या की समस्या में सबसे बड़े हिस्सेदार यूपी और बिहार हैं जिनका पूरे देश की जनसंख्या में 25 फीसदी योगदान है। यानी देश में हर चौथा नागरिक यूपी या बिहार का है। यूपी में 23 करोड़ व बिहार में करीब ११ करोड़ की आबादी है। इन दोनों राज्यों में ज्यादा आबादी के कारण ढेर सारी समस्याएं हैं।

यूपी में परिवहन निगम के बेड़े में 12 हजार 429 बसें हैं यानी 18505 लोगों पर एक बस। इससे लोगों की परिवहन संबंधी दिक्कतों को समझा जा सकता है।

यूपी में 200 बड़े सरकारी अस्पताल, 36 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 800 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 1000 छोटे स्वास्थ्य केंद्र हैं।

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यानी छोटे-बड़े कुल 2036 सरकारी अस्पताल। करीब 12 हजार चिकित्सक और हजारों पैरामेडिकल स्टाफ भी हर साल 11 करोड़ मरीजों का इलाज करें भी तो आखिर कैसे? निजी अस्पताल और निजी डॉक्टर भी इतने नहीं हैं कि बढ़ती आबादी को संतोषजनक लाभ पहुंचा सके। यही कारण है कि गांवों ही नहीं बल्कि शहरों के भी इलाज संबंधी तमाम दिक्कतें झेल रहे हैं।

स्कूलों में दाखिले की मारामारी

यूपी में मौजूदा समय में सरकारी क्षेत्र के करीब एक लाख 12 हजार प्राथमिक स्कूल, 46 हजार उच्च प्राथमिक स्कूल, 9121 माध्यमिक विद्यालय, 16 विश्वविद्यालय और उनसे सम्बद्ध हजारों डिग्री कालेज हैं। इसके अलावा यूपी का कोई गली-मोहल्ला ऐसा नहीं है जहां एक-दो स्कूल न हों। इसके बावजूद स्कूल-कालेजों में दाखिले के लिए लम्बी लाइनें लगती हैं। एक-एक सीट पर 10-10 तो कभी इससे भी ज्यादा की दावेदारी के कारण तमाम छात्र-छात्राओं को दाखिला नहीं मिल पाता। कक्षाओं में इतनी भीड़ होती है कि बच्चे ठीक से नहीं पढ़ पाते। अब ऐसे माहौल में गुणवत्ता वाली शिक्षा की उम्मीद करना बेमानी है। स्कूलों में दाखिला लेने के लिए उमड़ी भीड़ का फायदा निजी स्कूल उठाते हैं और मनमानी फीस वसूलते हैं।

आबादी पर कंट्रोल हो भी तो कैसे

आबादी को नियंत्रित करने के लिए प्रदेश सरकार में परिवार कल्याण विभाग है जो परिवार कल्याण करने वाले परिवारों को आर्थिक सहायता देता है। लेकिन इसके प्रति लोगों का रुझान कम ही देखा गया है। हालांकि यूपी में परिवार नियोजन में लोगों का भरोसा बढ़ा है, लेकिन यह अस्थायी साधनों के उपयोग तक ही सीमित है। इन अस्थायी साधनों में इंट्रायूटेराइन कनट्रासेपटिव्स डिवाइस (आईयूसीडी), कंडोम, ओरल कनट्रासेपटिव्स पिल्स, अंतरा और छाया आते हैं। यूपी में वर्ष 2017-18 में जहां अंतरा को 23,217 महिलाओं ने स्वीकारा वहीं वर्ष 2018-19 में 1.62 लाख महिलाओं ने इसे तरजीह दी। अस्थायी साधन छाया को जहां वर्ष 2017-18 में 2.12 लाख से अधिक महिलाओं ने अपनाया वहीं वर्ष 2018-19 में 24 प्रतिशत वृद्धि के साथ 2.63 लाख महिलाओं ने इसे अपनाया। महानिदेशक, परिवार कल्याण, डा. नीना गुप्ता भी बताती हैं कि अधिकांश दंपति परिवार नियोजन के लिए आजकल अस्थायी साधनों को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब भी महिलाएं ही बड़ी संख्या में परिवार नियोजन कार्यक्रमों और नसबंदी को अपनाती हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं की तुलना में महज 10 फीसदी पुरुष ही नसबंदी कराते हैं।

प्रदेश सरकार बना रही कार्ययोजना

प्रदेश सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक कार्ययोजना की तैयारी कर रही है। कार्ययोजना तैयार करने के लिए अधिकारियों और चिकित्साधिकारियों की एक कमेटी बनाई गयी है। प्रदेश सरकार इस रिपोर्ट पर कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे प्रदेश में लागू करेगी।

बिजली महकमा कैसे झेले इतना बोझ

बिजली की बात करें तो यह महकमा भी आबादी के बोझ से चरमरा रहा है। यूपी में एक करोड़ 45 लाख बिजली उपभोक्ता हैं जिनका कुल बिजली लोड करीब चार लाख करोड़ किलोवाट है। गर्मी में बिजली की मांग पीक आवर में 21 हजार मेगावाट तक पहुंच जाती है। यूपी के लोगों को बिजली तो मिल रही है, लेकिन आयातित बिजली होने के कारण वह इसकी ज्यादा कीमत चुका रहे हैं। आबादी के कारण यूपी में बिजली की ढांचागत व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं हो पा रही है। ट्रांसफार्मरों पर जरूरत से ज्यादा लोड के कारण आए दिन बिजली आपूर्ति घंटों के लिए बाधित होती है। एक बार ट्रांसफार्मर फुंक जाने पर घंटों बिजली गायब रहती है। ट्रांसफार्मर बदलवाने के लिए लोगों को नाकों चने चबाने पड़ते हैं। लोगों को बिजली अफसरों के यहां कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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