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सियासी संभावनाएं: गठबंधन के पेंच

raghvendra
Published on: 5 Oct 2018 11:05 AM GMT
सियासी संभावनाएं: गठबंधन के पेंच
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राजकुमार उपाध्याय

लखनऊ: वैसे तो राजनीति में विज्ञान की तरह दो और दो चार नहीं होते, लेकिन दो और दो के 22 होने की संभावना को भी सियासत में नकारा नहीं जा सकता। गठबंधन में ऐसे ही फार्मूलों को आदर्श समझा जाता है। सूबे की सियासत में इसकी संभावनाओं को टटोला जाए तो गणित, विज्ञान और राजनीति विज्ञान के इस फार्मूले का जोड़-घटाव यहां जरूरी हो जाता है। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है। मायावती के इस रुख से 2019 के चुनावों में होने वाले महागठबंधन को बड़ा झटका लगा है। उनका यह खारिज किया जाना सिर्फ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों तक सीमित रहेगा या फिर लोकसभा चुनावों में भी जारी रहेगा, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। बसपा अपने धुर विरोधी सपा से गठबंधन की संभावनाओं को भी नकारती नहीं दिख रही है।

दरअसल बीते उपचुनावों में प्रदेश की कैराना, गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट भाजपा से छिन गयीं। खास यह है कि 2014 में इन तीनों सीटों पर भाजपा को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिला था। इन उपचुनावों में सपा को बसपा व अन्य विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त था। ये नतीजे आने के बाद से ही प्रदेश में महागठबंधन के ताने-बाने बुने जाने लगे। सीटों के बंटवारे को लेकर कशमकश शुरू हुई। 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों को आधार मानकर देखा जाए कि यदि 2019 में भी भाजपा और विपक्षी दलों को 2014 जितने ही वोट मिलें और विपक्षी दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें तो ज्यादातर सीटों पर विपक्षी दलों को मिले वोटों की संख्या भाजपा को मिले वोटों की संख्या से ज्यादा होगी।

2014 चुनाव में जगदंबिका पाल 298845 वोट पाकर डुमरियागंज सीट से जीते। बसपा के मुहम्मद मुकीम 195257 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। जबकि पूर्व विधानसभाध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय की साइकिल पर 174778 वोटरों ने मुहर लगाई। इस सीट पर यदि कांग्रेस को छोड़ दिया जाए। बसपा अपने वोट सपा को ट्रांसफर करती है तो यह आंकड़ा 370035 तक पहुंचता है। यह जगदम्बिका पाल को मिले वोटों से ज्यादा है। इसी तरह इलाहाबाद सीट पर श्यामा चरण गुप्ता को 313772 वोट मिले थे। सपा के कुंवर रेवती रमन सिंह को 251763 और बसपा की केशरी देवी को 162073 वोट मिले। यदि इस सीट पर बसपा या सपा अपने वोट एक दूसरे को ट्रांसफर करते हैं तो यह आंकड़ा 413836 तक पहुंचता है, जो श्यामा चरण गुप्ता को मिले 313772 वोटों से ज्यादा है।

वैसे देखा जाए तो 2009 में बसपा ने 20 सीटें पर परचम लहराया था। 47 सीटों पर हाथी रनरअप रहा। वहीं 2014 में बसपा के खाते में एक भी सीट नहीं आ सकी पर उसके प्रत्याशी 34 सीटों पर दूसरे नम्बर पर रहे। 2014 के चुनाव में सपा के मुकाबले अलीगढ़, सलेमपुर और धौरहरा सीटों पर बसपा प्रत्याशी करीब दो हजार वोटों के अंतर से पीछे रह गए जबकि हरदोई, सुल्तानपुर, भदोही, संतकबीरनगर में सपा के मुकाबले बसपा प्रत्याशी करीबन 20 हजार वोटों से पीछे रह गए थे। संभल सीट पर भाजपा के सत्यपाल सिंह को विजय मिली थी। उन्हें कुल 360242 वोट मिले थे। सपा के डा. शफीकुर्रहमान बर्क 355068 वोटों के साथ रनरअप रहे थे। सिर्फ 5174 मतों के अंतर की वजह से यह सीट सपा के हाथ से निकल गई थी। बसपा के अकीलउर्र रहमान खान को 252640 वोट मिले थे। सपा-बसपा के वोटों को ही मिला लिया जाए तो 607708 तक वोटों का आंकड़ा पहुंचता है।

सुल्तानपुर सीट से वरुण गांधी 410348 वोट पाकर सांसद बने। इसी सीट पर बसपा के पवन पांडे को 231446 वोट और सपा के शकील अहमद को 228144 वोट मिले थे। विपक्ष के दोनों प्रत्याशियों का वोट जोडऩे पर यह 459590 हो जाएगा जो वरुण गांधी को मिले वोटों से ज्यादा है। बांदा सीट पर बीजेपी के भैरो प्रसाद मिश्रा को 342066 वोट मिले थे। बसपा के आर के सिंह पटेल को 226278 वोट और बाल कुमार पटेल को 189730 वोट मिले थे। इनका योग भी 416008 होता है जो भैरो प्रसाद मिश्रा को मिले मतों से ज्यादा है।

भदोही सीट से भाजपा के वीरेंद्र सिंह 403544 वोट पाकर संसद पहुंचे थे। यहां से बसपा के राकेश धर त्रिपाठी को 245505 वोट और सपा की सीमा मिश्रा को 238615 मत मिले थे। यदि इनके वोट को ही जोड़ा जाए तो यह 484120 हो जाएगा जो वीरेंद्र सिंह को मिले मतों से ज्यादा है। खीरी लोकसभा सीट पर भाजपा के अजय कुमार को विजयश्री मिली थी। उन्हें कुल 398578 वोट मिले थे जबकि बसपा के अरविंद गिरि को 288304 और सपा के रवि प्रकाश वर्मा को 160112 मत मिले थे। इनके मतों का योग भी अजय कुमार को मिले मतों से ज्यादा है।

अखिलेश नरम, मायावती गरम

सपा मुखिया अखिलेश यादव भी सीटों के बंटवारे में नरमी बरतते दिख रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस को नसीहत देते हुए यहां तक कहा कि उसे बड़ा दिल दिखाना चाहिए मगर बसपा सुप्रीमो मायावती के तेवर नहीं बदले। गठबंधन को लेकर उन्होंने साफ कहा कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही पार्टी गठबंधन में शामिल होगी। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के मायावती के सीबीआई व ईडी से डरने का बयान आने के बाद मायावती के तेवर और सख्त हो गए। उन्होंने साफ तौर पर कांग्रेस से गठबंधन की संभावनाओं को नकार दिया है।

भाजपा के जातीय सम्मेलन का सपा दे रही जवाब

भाजपा के जातीय सम्मेलनों के जवाब में समाजवादी पार्टी जिलावार पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय सम्मेलन कर रही है। इन सम्मेलनों में सजातीय नेताओं को अगुवा बनाया गया है जो जिलों में पिछड़े व अतिपिछड़े वर्ग के मतदाताओं के सामने भाजपा के लुभावने जातीय सम्मेलनों की हकीकत बयां कर रहे हैं। सपा का प्रमुख मकसद पिछड़े व अति पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को सतर्क करना है। पहले चरण में पूर्वांचल के सात जिलों में 27 अगस्त से 2 सितम्बर और दूसरे चरण में भी सात जिलों में 25 सितम्बर से दो अक्टूबर के बीच सम्मेलन हुआ। इसके अलावा प्रदेश भर में 3 से 7 अक्टूबर तक विधानसभावार बूथ सम्मेलन जारी है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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