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CAA को लेकर भड़की हिंसा के बाद अब सत्ता पक्ष और विपक्ष में छिड़ा पोस्टर वार

सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार की तरफ से दंगाइयों के खिलाफ लगाए गए पोस्टरों ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों ने भी पोस्टर लगाने शुरू कर दिए हैं।

Roshni Khan
Published on: 14 March 2020 7:04 AM GMT
CAA को लेकर भड़की हिंसा के बाद अब सत्ता पक्ष और विपक्ष में छिड़ा पोस्टर वार
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार की तरफ से दंगाइयों के खिलाफ लगाए गए पोस्टरों ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों ने भी पोस्टर लगाने शुरू कर दिए हैं। इस ‘पोस्टर वार’ के चलते विपक्ष ने भाजपा के पार्टी मुख्यालय के आसपास उसके नेताओं और मंत्रियों के पोस्टर्स लगाए गए हैं।

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अभी दो दिन पहले देर रात को समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आईपी सिंह ने भाजपा नेताओं के कुछ पोस्टर्स लगवाए थें लेकिन पुलिस ने उन्हें तुरंत उसी वक्त हटवा दिया था। इन पोस्टर्स में भाजपा के सांसद चिन्मयानन्द और पूर्व विधाायक कुलदीप सेंगर को बलात्कारी बताते हुए सरकार को घेरने का प्रयास किया था।

अब समाजवादी पार्टी की ही तर्ज पर कांग्रेस ने दो कदम आगे बढ़कर सीएम योगी एवं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दंगाई कहकर उन्हें घेरना शुरू कर दिया है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि शुक्रवार को योगी सरकार दंगाइयों के खिलाफ एक अध्यादेश लाई है जिसमें सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने पर उनसे वसूली की व्यवस्था है। इसी के खिलाफ कांग्रेस ने पूरे शहर में पोस्टर लगाकर भाजपा नेताओं से भी वसूली की मांग की।

कांग्रेस ने राज्य सरकार को राजधानी लखनऊ में ही भाजपा दफ्तर अंबेडकर प्रतिमा, नगर निगम, दारूलशफा, लखनऊ विश्वविद्यालय सहित दर्जनभर जगहों में योगी सरकार द्वारा लगाये गये पोस्टर्स के सामानांतर पोस्टर्स लगाये। यह पोस्टर्स कांग्रेस के युवा नेता सुधांशु बाजपेयी द्वारा जारी किए गए हैं। उधर राज्य सरकार द्वारा पोस्टर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले सुनवाई के बाद मामले को बड़ी बेंच के हवाले कर दिया है। अब इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते 3 जजों की पीठ करेगी।

19 दिसंबर को लखनऊ की सड़कों पर CAA विरोध प्रदर्शन हुआ था

दरअसल 19 दिसंबर को अचानक लखनऊ की सड़कों पर सीएए विरोध के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। पुराने लखनऊ से लेकर हजरतगंज तक हिंसक भीड़ ने इस दौरान जमकर उत्पात मचाया। पुलिस से लेकर मीडिया पर भी हमला हुआ। दर्जनों गाड़ियां फूंक दी गईं, पुलिस चौकी को भी आग के हवाले कर दिया गया।

इस मामले में सरकार की तरफ से आरोपियों को नोटिसें भेजी गईं। जिसके बाद 5 मार्च को लखनऊ जिला प्रशासन की तरफ से लखनऊ के हजरतगंज सहित प्रमुख इलाकों में चैराहों पर आरोपी 57 लोगों की तस्वीरों का पोस्टर लगाया दिया गया। पोस्टर लगते ही मामले ने तूल पकड़ लिया।

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हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई योगी सरकार

लेकिन योगी सरकार अपने निर्णय पर अड़ी रही और उसने 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर दी। मामले में 12 मार्च को सुनवाई हुई। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्हें आरोपियों का पोस्टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपियों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं।

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