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विडंबना : एक परिवार चार पीढिय़ों से कर रहा पोस्टमार्टम का काम
तेज प्रताप सिंह की रिपोर्ट
गोंडा। पोस्टमार्टम हाउस (चीर घर) को कोई भूतों का घर कहता है, तो कोई मुर्दों का अड्डा। लाशों और बदबू के बीच मंजर इतना खौफनाक होता है, जिसकी आम इंसान कल्पना नहीं कर सकता। इसके बावजूद गोंडा के पोस्टमार्टम हाउस में चार पीढिय़ों से पोस्टमार्टम के काम में मदद करने वाले एक परिवार के लिए यह मुश्किल भरा काम जीवन यापन का जरिया बना हुआ है।ब्रिटिश हुकूमत में बना था चीर घर
गुलामी के दौर में अंगे्रज अफसरों ने पुलिस लाइन परिसर में चीर घर का निर्माण कराया था। तब पुलिस अधिनियम 1857 के प्रावधानों के अनुसार एक पोस्टमार्टम का दो रुपए पारिश्रमिक मिलता था। 1940 में पुत्तू मेहतर ने यहां काम शुरू किया और 1970 तक दुर्घटना, हत्या और आत्महत्या के मामलों में आयी लाशों के पोस्टमार्टम में चीरफाड़ करते रहे। तब गोंडा और बलरामपुर दोनों जिले एक थे।
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पुत्तू के रिटायर होने के बाद उनके दामाद सादिक यहां का कार्यभार संभाला और उनके भी रिटायरमेंट के बाद अब उनके पुत्र अशोक यह काम कर रहे हैं। सादिक के एक अन्य पुत्र सुरेश पड़ोसी जिले बलरामपुर के पोस्टमार्टम हाउस में संविदा कर्मी हैं। सादिक बताते हैं कि साक्षात्कार में ढाई दर्जन लोग आए थे लेकिन पोस्टमार्टम के नाम कोई काम करने को तैयार नहीं हुआ। तब उन्होंने इसे ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार किया। दो साल पहले बना नया चीर घर
पुराना भवन जर्जर और खण्डहर में तब्दील होने पर वर्ष 2015 में नया चीर घर का निर्माण हुआ। इसी वर्ष बलरामपुर में चीरघर का निर्माण हुआ तो वहां भी पोस्टमार्टम होने लगा। नए चीर घर में चिकित्सक और अन्य स्टाफ के बैठने के कमरे और शौचालय बने हैं। बिजली, पंखा होने से रात में भी पोस्टमार्टम हो जाता है। इसी के बगल आगंतुकों के बैठने के लिए एक रिलेटिव सेट भवन बना है। माधवपुर कांड में दर्जन भर शवों का हुआ था पोस्टमार्टम
सादिक ने बताया कि लगभग 34 साल पहले गोंडा के कौडिय़ा थाना क्षेत्र में माधवपुर कांड हुआ था, जिसमें पुलिस एक उपाधीक्षक समेत 14 लोग मारे गए थे, जिनका पोस्टमार्टम एक ही दिन हुआ था। बदबू के बीच करना पड़ता है काम
सादिक अब तक पांच हजार से ज्यादा लाशों का पोस्टमार्टम कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहले यहां बिजली आदि नहीं थी तब मोमबत्ती के सहारे काम करना काफी कठिन था। कई बार डर भी लगा, लेकिन बाद में आदत सी पड़ गई। पोस्टमार्टम हाउस में ड्यूटी की सूचना मिलते ही आंखों के सामने लाश नजर आने लगतीं और बदबू के बारे में सोचकर तभी से मन खराब हो जाता।
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कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती थी लेकिन धीरे-धीरे आदत बन गई और बिना थके, बिना रुके अनवरत काम करते रहे। अशोक बताते हैं कि सीरियल नंबर से शवों को पोस्टमार्टम के लिए लाया जाता है। कई दिनों बाद मिलने के कारण कुछ लाशों की हालात बहुत ज्यादा खराब होती है। उनसे तेज बदबू आती रहती है। इसके कारण एक मिनट भी वहां खड़े होने का मन नहीं करता। नाक पर कपड़ा बांध कर खड़ा होना पड़ता है। पोस्टमार्टम हाउस से एक भी मिनट के लिए हटना संभव नहीं हो पाता है।
घर पहुंचने पर करना होता है स्नान
अशोक बताते हैं कि पोस्टमार्टम हाउस से घर पहुंचने पर दरवाजे पर ही एक बाल्टी पानी और मग रखा होता है। हाथ पैर धुलने के बाद ही घर में घुसना होता है। उसके बाद पहने हुए कपड़े को अलग निकालकर तुरंत नहाना होता है। बच्चों के पास आने या छूने से घर के लोग मना करते हैं। गलती से अगर किसी दूसरे का सामान छू लिया तो उसे तुरंत धोने के लिए या शुद्घ करने के लिए हटा दिया जाता है। अशोक के अनुसार वह अपने बच्चों को इस काम में नहीं लगाना चाहते। उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाकर अच्छी नौकरी के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।