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पूर्णमासी स्नान से शुरू हो गया कल्पवास, एक महीने का है यह कठोर तप
गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के अविरल धारा की गूंज, कहीं मंत्रों के उच्चारण तो कहीं संख और घण्टे की ध्वनि लोगों के बीच आध्यात्म के आकषण का केंद्र है। यह तीर्थों के राज प्रयागराज की महिमा है। जिसका उल्लेख ब्रह्मवर्त पुराण में भी मिलता है।
आशीष पाण्डेय
कुंभ नगर: गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के अविरल धारा की गूंज, कहीं मंत्रों के उच्चारण तो कहीं संख और घण्टे की ध्वनि लोगों के बीच आध्यात्म के आकषण का केंद्र है। यह तीर्थों के राज प्रयागराज की महिमा है। जिसका उल्लेख ब्रह्मवर्त पुराण में भी मिलता है। जिसमें ऋषियों ने बताया कि प्रयागराज 88 हजार ऋषियों की तपो भूमि है। जहां पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक एक माह का कठोर अनुष्ठान होता है। जिसे सहज शब्दों में कल्पवास कहा जाता है। कल्पवास से हजारों वर्षों की तपस्या का फल मिलता है।
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कुंभ क्षेत्र अमृत भूमि है जहां अमृत्व व उसकी सात्विकता के लिए कल्पवास होता है। जहां कल्पवासी को अल्पाहारी, निराहार व्रत, जलाहार, आंवलाहार करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होता है। कुछ लोग यहां मोक्ष के लिए कल्पवास करते हैं तो कुछ लोग आत्मशांति के लिए तो वहं कुछ लोग मन्नतें पूरी करने के लिए भी कल्पवास करते हैं। कल्पवास करने से मनुष्य को दैविक, दैहिक और भौतिक दुखों से मुक्ति भी मिलती है।
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पूर्णमासी पर संगम में डुबकी लगाने उमड़ी भीड़
गंगा यमुना एवं सरस्वती की अविरल धारा के समागन में इस कड़कड़ाती ठंढ में रविवार की रात से ही पैदल यात्रियों का मेला क्षेत्र में आवागमन शुरू हो गया। जिसको जहां तक साधन मिले वह वहां तक पहुंच गया लेकिन मेला क्षेत्र में सभी अपनी गठरियों को सिर पर लादकर अपने समूह के लिए एक चिन्ह को झण्डे में बांधकर लगातार आगे बढ़ते रहे। संगम में डुबकी लगाते ही मुख से निकला हर हर गंगे और फिर बस ठंड भी हो गई दूर। ठण्ड पर आस्था भारी पड़ती दिखाई दी।