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History of Mahila Naga Sadhu: सांसारिक मोह को तज कर शिव की आराधना में लीन रहती हैं महिला नागा साधु, अब तक इतनी बढ़ चुकी है संख्या

History of Mahila Naga Sant: महिला नागा साधु हमेशा दुनिया से दूर एकांत में शिव साधना में अपना जीवन बिताती हैं। वे कुंभ जैसे खास मौकों पर ही पवित्र नदी में स्नान करने के लिए दुनिया के सामने आती है।

Jyotsna Singh
Published on: 4 Dec 2024 2:25 PM IST
History of Mahila Naga Sadhu
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History of Mahila Naga Sadhu

History of Mahila Naga Sant: देव पुराण के अनुसार शिव स्वरुप में ईश्वर जगत पिता हैं, शक्ति स्वरूप में वे माता हैं। शिव यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं तो उनमें जो अनंत शक्ति है वे ही मां भवानी हैं। यही वजह है कि स्त्री को हिंदू धर्म में शक्ति का रूप माना गया है। एक स्त्री कठिन चुनौतियों को पार कर कुशलता से अपने बच्चों और परिवार का लालन पालन और भरण पोषण कर सकती है तो वहीं परम परमात्मा भगवान शिव के ध्यान में लीन होकर शेर-चीते जैसे अनगिनत हिंसक जानवरों के बीच निडरता से अपना जीवन व्यतीत कर सकती है। भारतीय सनातनी संस्कृति की परिपाटी को नारी शक्ति के रूप में मजबूत करने वाली महिला नागा साधुओं के जीवन जीने का ढंग ही निराला है। महिला जिसे आज भी समाज में हर कदम पर आगे बढ़ने के लिए किसी न किसी रूप में एक पुरुष संरक्षण की जरूरत पड़ती है वहीं ये मस्त मलंग महिला नागा साधु जो स्वयंभू हैं।

अपनी रक्षा खुद करने की इनके भीतर शक्ति समाहित होती है। कुंभ स्नान के दौरान इनका ओज देखते ही बनता है जब चिता की भस्म लपेटे नागा साधुओं के विशाल हुजूम के बीच ये महिला नागा साधु कितनी सुदृढ़ता से कदम से कदम मिलाती हुई गंगा घाट पर एकत्र होकर श्रद्धा की डुबकी लगाती हैं। कुंभ स्नान के अलावा इन महिला साधुओं को कभी कहीं विचरते नहीं देखा जा सकता क्योंकि इनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य बस शिव की उपासना में लीन रहना भर रहता है। महिला नागा साधु लोगों के सामने बेहद कम आती हैं।

अखाड़ों में बढ़ रही महिलाएं

हिंदू धर्म को अक्रामणकारियों के हमले से बचाने के लिए जिन अखाड़ों का गठन किया था, समय के बदलाव के साथ अब इस मुहिम में आधी आबादी भी सनातन संस्कृति और इसकी शिक्षा के प्रचार और धर्म की रक्षा के लिए शामिल हो रही है। इन अखाड़ों में नागा साधु बनने के लिए जिन मापदंडों पर पुरुषों को परखा जाता है वैसे ही मापदंड महिला साधकों के लिए भी निर्धारित किए गए हैं। इसके बावजूद भी महिलाएं तेजी से अखाड़ों का सदस्य बनने के लिए उत्साहित दिखाई पड़ रहीं हैं।


यही वजह है कि वर्तमान समय में जूना अखाड़े में दस हजार से भी कहीं अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी बहुतायत में शामिल है। विदेशी महिला नागा संन्यासियों में खासकर यूरोप देश की महिलाएं सबसे अधिक हैं। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इस सम्प्रदाय का इन चुनौतियों के बावजूद अपनाया है। कई हजार से ज्यादा महिला नागा साधु कुंभ स्नान के लिए भी आई हैं। 2013 में प्रयागराज में कुंभ के दौरान 250 महिला साधकों को नागा साधु की दीक्षा मापदंडों पर परखने के बाद दी गई थी।

मल्ल युद्ध की कला में माहिर होती हैं ये महिला नागा संत

इन महिला नागा संतों की खूबी होती है कि ये शारीरिक तौर पर भी बड़ी कठोर और मजबूत होती हैं। इनसे पंगा लेना आसान नहीं होता। सत्तर साल की महिला नागा साधु महंथ महिमा गिरी के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए पुरुषों के साथ धर्म के नियमों का पालन करते हुए इधर कुछ वर्षों में महिला साधकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।


अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी के बाद महिलाओं का रुझान इधर तेजी से बढ़ा है।घर-परिवार से वैराग्य लेकर इन मठों में महिला साध्वी बनने के बाद मल्ल युद्ध बड़ी कुशलता हासिल करती हैं महिला नागा साधु।

महिला नागा साधु बनने की क्या होती हैं प्रक्रिया

गंगा स्नान के लिए ऐसे साधु जो केवल कुंभ के समय में नजर आते हैं वे हैं महिला नागा साधु। यह महिला नागा साधु पुरुष नागा साधु की तरह निर्वस्त्र नहीं रहती। महिला नागा साधुओं की दुनिया आम दुनिया से बिलकुल अलग होती है। महिला नागा साधु हमेशा दुनिया से दूर एकांत में शिव साधना में अपना जीवन बिताती हैं। वे कुंभ जैसे खास मौकों पर ही पवित्र नदी में स्नान करने के लिए दुनिया के सामने आती है। इन नागा साधुओं को माता कहकर संबोधित किया जाता है वे गेरू रंग का केवल एक ही वस्त्र धारण करती हैं। जो सिला हुआ नहीं होता। इसे गति कहा जाता है। साथ ही वे जटाएं बढ़ा कर मस्तक पर तिलक धारण करती हैं। महिला नागा साधु बनने से पहले काफी कठिन तब और साधना करनी पड़ती है वे गुफा,जंगल, पहाड़ आदि जगहों पर रहकर एकांत में भगवान की भक्ति में लीन रहती है।


महिला नागा साधु बनने से पहले परीक्षा के तौर पर उस साध्वी को अपने जीवन के 6 से 12 वर्षों तक तक कड़े ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इसके बाद ही गुरु महिला नागा साधु बनने की अनुमति प्रदान करते हैं। महिला साधुओं को दीक्षा लेने से पूर्व अपने सर के बालों का त्याग करना पड़ता हैं। सन्यासिन बनने से पहले उनके मुंडन संस्कार के बाद नदी में स्नान करना होता है।महिला नागा साधुओं को नदी में स्नान के बाद भगवान शिव की आराधना करनी होती है। दुनिया से दूर रहकर तप करना पड़ता है। सांसारिक मोह से मुक्ति पाने के लिए इन महिला नागा संन्यासियों को जीते जी अपना पिंडदान करना पड़ता है और एक नए संन्यासी जीवन में प्रवेश करना पड़ता है।


अखाड़े के आचार्य महामंडलेष्वर खुद ही उन्हें दीक्षा देते है। दीक्षा संस्कार से पहले ही पहले महिला संत की पिछली जिंदगी के बारे में जानकारी हासिल की जाती है ताकि यह ईश्वर के प्रति उसकी आस्था का पता चल सके। अखाड़े की महिला साधुओं को माई, अवधूतानी अथवा नागिन के नाम से संबोधित किया जाता है। हालांकि इन माई या नागिनों को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है। महिला नागा साधुओं को शाम के समय भगवान दत्तात्रेय की पूजा करनी होती है।


कुंभ मेले में ऐसी रहती है महिला नागा साधुओं की भूमिका

जूना अखाड़े के अलावा, दशनाम संन्यासिनी अखाड़े में महिला नागा साधु होती हैं। जूना अखाड़े ने माई बाड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़े का स्वरूप दिया था। कुंभ मेले में महिला संन्यासियों के लिए माई बाड़ा नाम से अलग शिविर बनाया जाता है यह शिविर जूना अखाड़े के ठीक बगल में बनता है।


हालांकि उन्हें ज्यादातर वक्त अपने टेंट में ही साधना की हिदायत होती है, जहां कोई भी पुरुष प्रवेश नहीं कर सकता है। उन्हें किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर ’श्रीमहंत’ का पद दिया जाता है । श्रीमहंत के पद पर चुनी जाने वाली महिलाएं शाही के दौरान पालकी में चलती हैं। साथ ही उन्हें अखाड़े का ध्वज डंका दाना अपने धार्मिक ध्वज के नीचे लगाने की खास छूट प्रदान की जाती है। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में विदेशी महिला नागा साधुओं की संख्या ज़्यादा है। इस अखाड़े में पांच हज़ार से ज़्यादा महिला नागा साधु हैं।

महिला नागा बनने की ये होती है परम्परा

एक बार महिला नागा बनने के बाद उसे अखाड़े की कठोर परम्परा का पालन करना होता है। जिसके बाद गृहस्थ जीवन में वापसी का कोई रास्ता शेष नहीं रहता। परम्परा के अनुसार उन्हें सुबह 3 से 4 बजे के बीच ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। नित्य कर्मो के बाद से ही शिवजी का जप शुरु हो जाता है दोपहर में भोजन करतीं हैं फिर दिन भर शिव जी का जप और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा और इसके बाद शयन। पुरुष नागा साधु अक्सर लोगों के सामने आते हैं। वहीं महिला नागा साधु पहाड़ों, जंगलों और गुफाओं में दुनियां से विरत होकर जीवन यापन करती हैं। यहां रहकर वो भगवान में लीन हो जाती हैं। हालांकि महाकुंभ के दौरान महिला नागा साधुओं को संगम में डुबकी लगाते हुए देखा जा सकता है।



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Shashi kant gautam

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