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Maha Kumbh Mela 2025: रूढ़की IIT एक्सपर्ट से लेकर प्रोफेसर और डॉक्टर हैं इस मठ के संत, जानिए कुंभ में निरंजनी अखाड़े के महात्म्य के बारे में
Maha Kumbh Mela 2025: निरंजनी अखाड़े की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा भारत में महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उतार-चढ़ाव के दौर में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने और सुधारने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा था।
Maha Kumbh Mela 2025: कुंभ स्नान के दौरान हर हर महादेव के उद्घोष के बीच बैंड बाजे और हाथी ऊंट के साथ शानदार पेशवाई करने वाले निरंजनी अखाड़े का महात्म्य इस दौरान देखते ही बनता हैं। कुंभ स्नान करने के लिए कई रथ, हाथी और ऊंट, करीब 50 रथों पर चांदी के सिंहासन पर विराजमान आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर साथ में भगवान शिव का तांडव करती बड़ी संख्या में नागा साधुओं का हुजूम इस अखाड़े की पेशवाई का मुख्य आकर्षण होता है। शैव संन्यासी सम्प्रदाय के 7 अखाड़ों में तीसरे नंबर पर श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, दारागंज, प्रयाग यूपी का आता है। शाही स्नान सदैव निरंजनी अखाड़े की गतिविधियों का मुख्य आकर्षण रहा है। इन दिनों, अखाड़े का नदी की ओर जुलूस एक भव्य नजारा होता है, जिसमें सजे-धजे रथ, हाथी और अखाड़े के संत और साधु अपने पारंपरिक परिधान में होते हैं। आध्यात्मिक शुद्धि और नवीनीकरण का प्रतीक इस अखाड़े का जुलूस त्रिवेणी संगम पर औपचारिक डुबकी के साथ समाप्त होता है।
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक कुंभ मेला भारत में आयोजित होने वाला एक भव्य आध्यात्मिक उत्सव है। यही वजह है कि ये उत्सव विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का भी केंद्र रहा है। प्रयागराज में 2025 का कुंभ मेला एक असाधारण आयोजन होने वाला है, जिसे बेजोड़ उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।
प्रयागराज में 2025 का कुंभ मेला नजदीक आने के साथ ही, निरंजनी अखाड़ा एक बार फिर एक भव्य आध्यात्मिक उत्सव की बानगी बनेगा। कुंभ मेले में निरंजनी अखाड़ा अपनी प्राचीन वंशावली और गहन प्रभाव के लिए जाना जाता है। 7वीं शताब्दी में प्रतिष्ठित दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित, निरंजनी अखाड़ा सदियों से हिंदू आध्यात्मिक अभ्यास की आधारशिला रहा है।
निरंजनी अखाड़े की स्थापना का उद्देश्य
निरंजनी अखाड़े की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा भारत में महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उतार-चढ़ाव के दौर में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने और सुधारने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा था। उन्होंने भारत के चार कोनों में चार मुख्य मठों की स्थापना की और मठवासी और तपस्वी परंपराओं का समर्थन करने के लिए कई अखाड़ों की भी स्थापना की। निरंजनी अखाड़ा इन अखाड़ों में से एक था, जो त्याग, आध्यात्मिक अनुशासन और ज्ञान की खोज के सिद्धांतों के लिए समर्पित था। ये अखाड़ा कई मायनों में दूसरे अखाड़ों से अलग और खास है। सबसे ज्यादा धनी होने के साथ इस अखाड़े में शामिल साधु संत बड़ी बड़ी डिग्री धारक होते हैं। यानी डॉक्टर, प्रोफेसर और इंजीनियर इस अखाड़े के सदस्य हैं। साथ ही इस अखाड़े को सबसे धनी और सम्पन्न अखाड़ों में माना ही जाता है। ये अखाड़ किन्हीं कारणों से विवादों में भी घिर चुका है। कुछ सालों पहले डिस्कोथेक और बार संचालक रियल इस्टेट कारोबारी सचिन दत्ता को इस अखाड़े का महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि बनाया गया था। शैव संप्रदाय से जुड़े निरंजनी अखाड़े की बात करें तो इस अखाड़े की परंपराओं और आध्यात्मिक प्रथाओं का एक समृद्ध इतिहास है। इस अखाड़े की कुंभ स्नान में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अपनी उत्पत्ति से लेकर अपने आधुनिक समय के योगदान तक, निरंजनी अखाड़ा हिंदू धर्म की स्थायी विरासत और जीवंत आध्यात्मिकता का प्रतीक रहा है। निरंजनी अखाड़ा, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन मठों में से एक है, जिसका इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू होता है। इसकी स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है, जो एक प्रतिष्ठित हिंदू दार्शनिक और धर्मशास्त्री हैं, जिन्हें अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को एकीकृत करने और स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। आदि शंकराचार्य का दृष्टिकोण एक संरचित मठ प्रणाली बनाना था, जो हिंदू धर्म की व्यवस्था और उसकी मान्यताओं को संरक्षित कर इनका अधिक से अधिक प्रचार कर सके। अपनी उत्पत्ति से निरंजनी अखाड़ा इसी उद्देश्य के साथ अपनी परंपराओं को निभाता चला आ रहा।
कोविड काल में लिया था बड़ा निर्णय
निरंजनी अखाड़े को हमेशा भारतीय धार्मिक क्षेत्र में परिपाटी स्थापित करने वाला माना गया। जब हरिद्वार कुंभ के दौरान कोविड का सबसे ज्यादा असर था। तब इस अखाड़े ने सबसे पहले कुंभ ना जाने का निर्णय लिया और इससे नाम वापस लेने की घोषणा करके राज्य सरकार को एक तरह से राहत दी। इसके बाद दूसरे अखाड़ों ने भी कुंभ से हटना शुरू किया।
इस अखाड़े का पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजन अखाड़ा है। इसका मुख्य आश्रम मायापुर, हरिद्वार में स्थित है । अगर साधुओं की संख्या की बात की जाए तो निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है। जूना अखाड़े के बाद उसे सबसे ताकतवर माना जाता है। ये देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक है।निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है। जिसके बारे में कहा जाता है कि ये हजारों साल पुराना है।
डॉक्टर से लेकर प्रोफेसर साधू हैं इस अखाड़े के सदस्य
इस अखाड़े में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधू हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं। एक रिपोर्ट की मानें तो शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इसमें संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं। इनमें डॉक्टर, लॉ एक्सपर्ट, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं।
जिनमें से इस अखाड़े के महेशानंद गिरि ज्योग्राफी के प्रोफेसर तो वहीं बालकानंद जी डॉक्टर और पूर्णानंद गिरि लॉ एक्सपर्ट और संस्कृत के विद्वान हैं। संत स्वामी आनंदगिरि नेट क्वालिफाइड हैं। वे आईआईटी खड़गपुर, आईआईएम शिलांग में लेक्चर दे चुके हैं। अभी बनारस से पीएचडी कर रहे हैं। संत आशुतोष पुरी नेट क्वालिफाइड और पीएचडी कर चुके हैं। उच्चशिक्षित अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि कहते हैं कि निरंजनी अखाड़ा इलाहाबाद-हरिद्वार में पांच स्कूल-कॉलेज संचालित कर रहा है। हरिद्वार में एक संस्कृत कॉलेज भी है। इनका मैनेजमेंट और व्यवस्थाएं संत संभालते हैं, समय-समय पर छात्रों को पढ़ाई भी करवाते हैं। अखाड़े में 150 में से 100 से ज्यादा महामंडलेश्वर और 1500 में से 1100 संत-महंत उच्चशिक्षित हैं।
आदि काल से जुड़ा है इस अखाड़े का इतिहास
निरंजनी अखाड़ा की स्थापना सन् 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्णपक्ष दिन सोमवार को गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी। अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है. उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी।
भारत देश के कोने कोने में फैले हैं निरंजनी अखाड़े
भारत देश के कोने कोने में निरंजनी अखाड़े के आश्रम स्थापित हैं। यही वजह है कि सिर्फ प्रयागराज के आसपास के इलाकों में निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कीमत 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की है, जबकि हरिद्वार और दूसरे राज्यों में संपत्ति की कीमत जोड़े तो वो हजार करोड़ के पार है। महंत नरेंद्र गिरि इसी अखाड़े के प्रमुख थे। निरंजनी के अखाड़े के पास प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मिर्जापुर, माउंटआबू, जयपुर, वाराणसी, नोएडा, वड़ोदरा में मठ और आश्रम हैं। फिलहाल इस अखाड़े में दस हजार से अधिक नागा संन्यासी हैं। जबकि महामंडलेश्वरों की संख्या 33 है। महंत व श्रीमहंत की संख्या एक हजार से अधिक है। वैसे निरंजनी अखाड़े ने भव्य पेशवाई के साथ कुंभ में अपनी शुरुआत की थी। इस अखाड़े के इष्टदेव कार्तिकेय हैं।
कौन बन सकता है महामंडलेश्वर
अखाड़े का महामंडलेश्वर बनने के लिए कोई निश्चित शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं होती है। इन अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति में वैराग्य और संन्यास का होना सबसे जरूरी माना जाता है। महामंडलेश्वर का घर-परिवार और पारिवारिक संबंध नहीं होने चाहिए। हालांकि इसके लिए आयु का कोई बंधन नहीं है। लेकिन यह जरूरी होता है कि जिस व्यक्ति को यह पद मिले उसे संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान हो और वह कथा-प्रवचन दे सकता हो। कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण यानी वानप्रस्थाश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है। लेकिन इसके लिए अखाड़ों में परीक्षा ली जाती है।
पारंपरिक कुश्ती के लिए भी है इसकी खास पहचान
सदियों के दौरान विकास
सदियों से निरंजनी अखाड़ा हिंदू समाज के भीतर एक शक्तिशाली संस्था के रूप में विकसित हुआ है। यह न केवल अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं के लिए कुश्ती आदि शारीरिक प्रशिक्षण में अपनी भूमिका के लिए भी जाना जाता है। अखाड़े ने अपने सदस्यों को पारंपरिक मल्लयुद्ध जिसे कुश्ती के प्राचीन रूप के नाम से भी जाना जाता है उसके विभिन्न रूपों में प्रशिक्षित किया। जो धर्म और आध्यात्मिक समुदाय को बाहरी खतरों से बचाने के लिए बेहद जरूरी माना जाता था। आध्यात्मिक और शारीरिक अनुशासन जैसी परम्परा ने निरंजनी अखाड़े को एक मजबूत मठ समुदाय के तौर पर पहचान दी।
पवित्र ग्रंथों को पढ़ाने और उनकी व्याख्या करने में रही मुख्य भूमिका
मुगल काल में निरंजनी अखाड़े ने हिंदू दर्शन के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो कि आज तक कायम है। इसके सदस्य वेद, उपनिषद और पुराणों सहित हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों को पढ़ाने और उनकी व्याख्या करने की भूमिका में सदैव तत्पर रहते हैं। अपनी कठोर आध्यात्मिक प्रथाओं और विद्वत्तापूर्ण खोजों के माध्यम से, उन्होंने हिंदू धर्म की समृद्ध बौद्धिक और आध्यात्मिक पद्वति को सुदृढ़ बनाने के साथ ही ये अखाड़ा विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी रहे हैं। इस अखाड़े के आश्रम और मंदिर आध्यात्मिक शिक्षा और अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में काम करते रहे हैं।
कुंभ मेले में निरंजनी अखाड़े का महत्व
कुंभ मेला आध्यात्मिकता, परंपरा और भक्ति का संगम है, जो हिंदू धार्मिक प्रथाओं को बनाए रखने और मनाने वाले अखाड़ों, मठों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इन अखाड़ों में, निरंजनी अखाड़ा का बहुत महत्व है। इसका योगदान और नेतृत्व कुंभ मेले की पवित्रता और सफलता के लिए अभिन्न अंग है, जो इसे लाखों भक्तों के लिए एक केंद्र बिंदु बनाता है।
शाही स्नान में निरंजनी अखाड़े की भूमिका
कुंभ मेले में शाही स्नान के दौरान निरंजनी अखाड़ा, सबसे प्रमुख तौर पर समारोह का नेतृत्व करता दिखाई देता है। अखाड़े के साधु और महंत सबसे पहले पानी में डुबकी लगाते हैं, जिससे जनता के लिए एक पवित्र उदाहरण स्थापित होता है। यह अनुष्ठान न केवल अखाड़े के आध्यात्मिक महत्व को उजागर करता है बल्कि धार्मिक समुदाय के भीतर इसके नेतृत्व को भी मजबूत करता है।
अपने पूरे इतिहास में, निरंजनी अखाड़े का नेतृत्व कई प्रतिष्ठित संतों और विद्वानों ने किया है जिन्होंने इसके विकास और प्रतिष्ठा में योगदान दिया है। इन नेताओं ने अखाड़े की परंपराओं को कायम रखा है और समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए इसके तौर-तरीकों को अपनाया है। उनकी शिक्षाएं और लेखन आज भी लाखों भक्तों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते रहते हैं। समकालीन समय में, निरंजनी अखाड़ा हिंदू आध्यात्मिक जीवन में एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ है। यह कुंभ मेले और अन्य प्रमुख धार्मिक आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग लेता है , जहाँ यह अनुष्ठानों और समारोहों में अग्रणी भूमिका निभाता है। निरंजनी अखाड़े के साधु संत असंख्य भक्तों के लिए कुंभ तीर्थस्थल पर सदैव आध्यात्मिक कायाकल्प के बायस बने हैं।