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Mahakumbh 2025: अग्नि स्नान की कठिन साधना से बनते है बैरागी, बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर्व से महाकुंभ में शुरू हुई अग्नि स्नान साधना
Mahakumbh 2025 Update: प्रयागराज महाकुम्भ साधनाओ के विविध संकल्पों का साक्षी बन रहा है ऐसी ही एक साधना है पंच धूनी तपस्या जिसे अग्नि स्नान की साधना भी कहा जाता है जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर्व से हो गई थी।
Mahakumbh 2025 Update Agni Snan Sadhana: महाकुंभ त्याग और तपस्या के साथ विभिन्न साधनाओं के संकल्प का भी पर्व है । प्रयागराज महाकुम्भ साधनाओ के विविध संकल्पों का साक्षी बन रहा है ऐसी ही एक साधना है पंच धूनी तपस्या जिसे अग्नि स्नान की साधना भी कहा जाता है जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर्व से हो गई थी।
तपस्वी नगर में अग्नि स्नान साधना का आरंभ
कुम्भ क्षेत्र जप ,तप और साधना का क्षेत्र है जिसके हर कोने में कोई न कोई साधक अपनी साधना में रत नज़र आएगा । महाकुम्भ के तपस्वी नगर में बसंत पंचमी से एक खास तरह की साधना का आरंभ हुआ है जिसे लेकर श्रद्धालुओं में खासा कुतुहल है। इस साधना को पंच धूनी तपस्या कहा जाता है जिसे आम भक्त अग्नि स्नान साधना के नाम से भी जानते हैं। इस साधना में साधक अपने चारो तरफ जलती आग के कई घेरे बनाकर उसके बीच में बैठकर अपनी साधना करता है । जिस आग की हल्की से आंच के सम्पर्क में आने से इंसान की त्वचा झुलस जाती है उससे कई गुना अधिक आंच के घेरे में बैठकर ये तपस्वी अपनी साधना करते है ।
बैरागी का सर्टिफिकेट हासिल करने की है कठिन साधना
अग्नि साधना वैष्णव अखाड़ो के सिरमौर अखाड़े दिगंबर अनी अखाड़े के अखिल भारतीय पंच तेरह भाई त्यागी खालसा के साधको की विशेष साधना है। श्री दिगंबर अनी अखाड़े के महंत राघवदास बताते हैं कि
यह साधना अठारह वर्षो की होती है ।
यह अनुष्ठान वैष्णव अखाड़े के एक साधु के लिए वैराग्य की प्रथम प्रक्रिया होती है या फिर ये कहे की गुरु के लिए यह अपने शिष्य की प्रथम परीक्षा होती है | धूनि रमाने का अनुष्ठान आरंभ होने के 18 साल तक वैरागी को वर्ष में 5 माह बसंत पंचमी से अषाण माह के गंगा दशहरा तक नियमित करना होता है. एक साधक के तौर पर साधु अपनी साधना से गुरु को इस दौरान प्रभावित करता है. इस अनुष्ठान में साधक अपने चारों ओर उपलों की आग जलाता है, और मुख्य गुरुस्वरूप अग्निकुंड से आग को लेकर अपने आसपास छोटे-छोटे अग्नि पिंड बनाया है. हर अग्नि पिंड में रखी जाने वाली अग्नि को चिमटे में दबाकर वैरागी अपने ऊपर से घुमाता और फिर पिंड में रखता है. इसके साथ ही साधक पैरों पर कपड़ा डालकर गुरुमंत्र का उच्चारण करता है. बेहद गुप्त और संवेदनशील प्रक्रिया के दौरान साधक को अपने मन और तन पर नियंत्रण करना होता है. कड़ी आग के बीच बैठकर इस अनुष्ठान को पूरा करने के पीछे न सिर्फ साधना के उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है बल्कि साधु की क्षमता और सहनशीलता का परीक्षण भी होता है ।