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Kanyadan Rasm: जानें शादी-ब्याह के लिए सात फेरे जरुरी या कन्यादान

Kanyadan Rasm: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- देश का कानून कन्यादान की रस्म को जरूरी नहीं मानता है। किसी विवाह में कन्यादान की रस्म नही हुई है तो भी विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी।

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Newstrack Network
Published on: 7 April 2024 4:22 PM IST
Know whether seven rounds are necessary for marriage or Kanyadaan
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जानें शादी-ब्याह के लिए सात फेरे जरुरी या कन्यादान: Photo- Social Media

Kanyadan Rasm: हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाजों के साथ संपन्न होने के बाद ही समाज विवाह को स्वीकृति देता है। विवाह की रस्मों में एक रस्म कन्यादान की बताई गई है। कन्यादान की रस्म के बिना विवाह अधूरा माना गया है। ऐसे में यह सवाल सभी के मन में आता है कि अगर विवाह में कन्यादान की रस्म नहीं की गई हो तो क्या उस विवाह को वैध माना जाएगा ? जवाब है हां, देश का कानून कन्यादान की रस्म (Kanyadan Rasm) को जरूरी नहीं मानता है। किसी विवाह में कन्यादान की रस्म नही हुई है तो भी विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दी।

हिंदू विवाह में ‘कन्यादान’ की रस्म जरूरी नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने आशुतोष यादव की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म आवश्यक नहीं है। ट्रायल कोर्ट की याचिका को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह में केवल सप्तपदी (सात फेरे) है। हाईकोर्ट ने इस मामले में पुन: विचार करने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि गवाहों को दोबारा बुलाने का कोई आधार नहीं है। हिंदू विवाह में ‘कन्यादान’ की रस्म कानूनी दायरे में नहीं आती है। इस आधार पर विवाह में कन्यादान की रस्म हुई या नहीं यह जांच का विषय है ही नहीं।

Photo- Social Media

विवाह में केवल ‘सात फेरे’ जरूरी रस्म

दरअसल, इस याचिका में आशुतोष यादव ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लखनऊ के आदेश को चुनौती देने के लिए पुनरीक्षण याचिका डाली थी। इस याचिका में अभियोजन पक्ष द्वारा यह तर्क दिया गया था कि विवाह प्रमाण पत्र में लिखा है, ‘विवाह फरवरी 2015 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था, जिसके अनुसार, कन्यादान एक आवश्यक अनुष्ठान है।’ इसी याचिका के पुन: विचार पर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 (हिंदू विवाह के लिए रस्म) के अनुसार, ‘कन्यादान’ एक वैध हिंदू विवाह के लिए एक जरूरी रस्म नहीं है। हिंदू विवाह (Hindu Marriage Law) अधिनियम केवल सप्तपदी को हिंदू विवाह की एक जरूरी रस्म के रूप में मान्यता प्रदान करता है और यह नहीं कहता है कि कन्यादान की रस्म हिंदू विवाह के लिए जरूरी है।’

क्या कहता है हिंदू विवाह कानून

गौरतलब है कि हिंदू विवाह की धारा 7 (Section 7 of Hindu Marriage) में यह उल्लेख किया गया है कि हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न कराया जा सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम में यह भी उल्लेखित है कि सभी संस्कारों और समारोहों में दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने संयुक्त रूप से सात फेरे लेना आवश्यक रस्म है। दूल्हा और दुल्हन द्वारा विवाह में सात फेरे पूरे करने के बाद विवाह दोनों के लिए बाध्यकारी हो जाता है।



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Shashi kant gautam

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