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Allahabad University History: शहर इलाहाबाद, शहर प्रयागराज, धन्य हुआ ऑक्सफोर्ड

Allahabad University History: 23 सितम्बर, 1887 को स्थापित हुआ एक छोटा सा शिक्षा संस्थान जो विराटता एवं दिव्यता की ओर उन्मुख हुआ। जहाँ से शिक्षा एवं क्रान्ति का ऐसा बिगुल बजा कि ऑक्सफ़ोर्ड (Oxford) अपने नाम को धन्य करने लगा।

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Published on: 2 Oct 2023 8:00 AM IST (Updated on: 2 Oct 2023 8:01 AM IST)
शहर इलाहाबाद, शहर प्रयागराज, धन्य हुआ ऑक्सफोर्ड
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Allahabad University (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Allahabad University History: शहर इलाहाबाद, जो अब प्रयागराज (Prayagraj) कहा जाता है, एक चश्मदीद गवाह है अमृत के छलकने का, हर्ष के अपरिग्रह का, भारत की विकास यात्रा का, राम के चरण रज का, महर्षि भारद्वाज के उपदेश का, अकबर की विराटता का, प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख का एवं रानी कारूवाकी के संदेश का।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

वहीं 23 सितम्बर, 1887 को स्थापित हुआ एक छोटा सा शिक्षा संस्थान जो विराटता एवं दिव्यता की ओर उन्मुख हुआ। जहाँ से शिक्षा एवं क्रान्ति का ऐसा बिगुल बजा कि ऑक्सफ़ोर्ड (Oxford) अपने नाम को धन्य करने लगा। इसके नाम से जोड़कर तो ब्रितानी साम्राज्य का औपनिवेशिक शासन पनाह माँगने लगा यहाँ के दर्शन से उपजे राष्ट्रवाद से। यहीं उस फ़िराक़ की आभा आच्छादित करने लगी शिक्षायतन को जब फ़िराक़ ही नहीं लोग भी कहने लगे:

कभी ज़माने से तुम कहोगे हमने फ़िराक़ को देखा है।

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें,

वो इक शख़्स के याद आने की रातें।

वह कोई और नहीं वही है जिसकी तेईस सितंबर के दिन स्थापना हुई थी:- इलाहाबाद विश्वविद्यालय।”

कितने नाम लिखूँ इस महानता के बरगद में पनाह पाने वालों के। सर गंगा नाथ झा, अमर नाथ झा, सर सुंदर लाल, मेघ नाथ साहा, सर प्रमदा चरण बनर्जी पूरी रात बीत जायेगी पर नाम ख़त्म ही न होंगें।

एक उपन्यास है यह यूनिवर्सिटी

यह विश्वविद्यालय एक उपन्यास है, कालजयी उपन्यास जिसकी कहानी पूरी नहीं होती, पर अधूरी कहानी भी एक पूरी कहानी है। जैसे रामकथा कभी समाप्त नहीं होती, वह विराम लेती है और पुनः उसी विराम से नव कथा आरंभ होती है, वैसे ही क़िस्से इस महानता के प्रतिमान के कभी समाप्त नहीं होते, बनते ही रहते हैं बस कोई क़िस्सागोई वाला चाहिये।

पर यह अतीत है वर्तमान नहीं। वर्तमान अतीत पर गर्व कर रहा पर भविष्य को कुछ ख़ास नहीं दे रहा। आवश्यकता है आज की पीढ़ी अतीत के आलोक में विस्मित होकर प्रशस्ति गाथाओं का गान करने के बजाय भविष्य के लिये नग़मों का सृजन करें।

Shreya

Shreya

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