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Mahakumbh 2025: श्री काशी विद्वत्परिषद और गंगा महासभा का विशिष्ट अनुष्ठान, राष्ट्र की सम्पन्नता और प्रयाग कुंभ की कुशलता के लिए श्री चक्र यज्ञ

Mahakumbh 2025: कर्नाटक के स्वामी विद्यानन्द सरस्वती के आचार्यत्व और श्री काशी विद्वत परिषद के संगठन मन्त्री आचार्य गोविन्द शर्मा के यजमानत्व में संपन्न हो रहा अनुष्ठान

Sanjay Tiwari
Written By Sanjay Tiwari
Published on: 28 Jan 2025 6:12 PM IST
Srichakra yagna News
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Srichakra yagna News (Photo Social Media)

Mahakumbh 2025: भारत वर्ष सृष्टि के इस प्रिशनि ब्रह्मांड में पृथ्वी पर अवस्थित विशिष्ट भू भाग है जहां विष्णुप्रिया भूदेवी जी सदैव विराजमान हैं। समस्त सृष्टि की धात्री मां भूदेवी की कृपा से ही सनातन भारत का निर्माण विश्व के रक्षार्थ सदैव होता रहता है। यही श्री हैं जिनकी कृपा के लिए भारत की संत और विद्वत परंपरा निरंतर राष्ट्र की उन्नति और जीव कल्याण के लिए क्रियारत है। श्री काशी विद्वत परिषद भारत के विद्वत परंपरा की प्राण शक्ति है जो राष्ट्र चिंतन के साथ ही आवश्यक यज्ञ और अनुष्ठान भी करती है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित गंगा महासभा इसके साथ मिल कर अनेक उपक्रम कर रही है जिससे प्रयागराज कुंभ पर म्लेच्छ उपद्रवियों की दृष्टि कार्य न करे और भारत की सनातन शक्ति और आगे बढ़े। इसी उद्देश्य से श्री काशी विद्वत परिषद और गंगा महासभा के विद्वान संगठन मंत्री आचार्य गोविंद शर्मा जी के यजमानत्व में गंगा महा सभा के कुंभ शिविर में श्री चक्र यज्ञ का अनुष्ठान निरंतर चल रहा है। कुंभ की सफलता, कुशलता और भारत की उन्नति के लिए यह अनुष्ठान अद्भुत है।

क्या है श्री चक्र यज्ञ

श्री यंत्र की साधना और उसके अनुष्ठान के बारे में बहुत कुछ लोग जानते हैं किंतु श्री चक्र यज्ञ से बहुत कम लोग परिचित हैं। यह कठिन साधना और मंत्रों का अनुष्ठान है। गंगा महासभा के शिविर में इस अनुष्ठान को कर्नाटक के प्रख्यात साधक आचार्य स्वामी विद्यानंद जी सरस्वती स्वयं संपन्न करा रहे हैं। श्री काशी विद्वत परिषद और गंगा महासभा के संगठन मंत्री और प्रख्यात विद्वान आचार्य गोविंद शर्मा इस कठिन साधना यज्ञ के यज्ञमान हैं। यह संयोग अद्भुत और अविस्मरणीय है।

श्री चक्र यज्ञ के महात्म्य के बारे में विद्वान और साधक संत कहते हैं हम भगवान शिव को तभी देख सकते हैं जब वे चाहें और हमें सक्षम बनाएं। उनकी दया को वे आंखें कहा जा सकता है जो हमें उन्हें देखने में सक्षम बनाती हैं। जिन पर उनकी दयालु दृष्टि नहीं होती वे खुद को अदियारगल (उत्साही भक्त) नहीं कह सकते। मंदिरों में प्रतिमाएँ हमें दी गई थीं, ताकि हम उनके स्वरूप को अपने मन में स्थिर कर सकें और बाद में उनका ध्यान कर सकें। हम पहले उन्हें अपनी आँखों से देखते हैं, और फिर अपने मन से। उनकी कल्पना करने में सक्षम होना ज्ञानी बनने की दिशा में पहला कदम है। अम्बल की पूजा श्री चक्र के रूप में की जाती है। अम्बिका उपासना में इस तरह की यंत्र पूजा महत्वपूर्ण है । अबिरामी भट्टर ने अपने अबिरामी अण्डादि में नौ कोणों की पूजा के बारे में बताया है। यह श्री चक्र के नौ त्रिकोणों का संदर्भ है। इनमें से पाँच शिव चक्र हैं और चार शक्ति चक्र हैं। बीच में स्थित बिंदु अम्बल है। पाँच त्रिकोण नीचे की ओर और चार ऊपर की ओर हैं। यहाँ शिव शक्ति मिलन का प्रतीक है। हमें अपने विचारों को उनकी ओर रखना चाहिए। तभी वे हमें आशीर्वाद देने के लिए अवतरित होंगी। माया, शुद्ध विद्या, महेश्वर और सदाशिव शिव के पहलुओं का निर्माण करते हैं।

पंचभूत निर्मित करते हैं शक्ति

पंचभूत (पांच तत्व) मिलकर शक्ति का निर्माण करते हैं। त्वचा, रक्त, मांसपेशी, वसा और हड्डियां शक्ति से निकलती हैं। वीर्य, ​​अस्थि मज्जा, प्राण (महत्वपूर्ण ऊर्जा) और जीव (आत्मा) शिव से विकसित होते हैं। मानव शरीर को ही श्री चक्र के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें भक्त के हृदय में अम्बाल निवास करता है। श्री चक्र की पूजा अण्ड (ब्रह्मांड) पिंड (शरीर) पूजा है। अम्बाल बंडासुर का वध करने के लिए नौ स्तरों वाले रथ पर सवार होकर गया था। ललिता सहस्रनाम में अम्बाल का एक नाम है चक्रराज रथरूड़ा सर्वायुध परिशक्त , जिसका अर्थ है कि अपने सभी हथियारों के साथ, वह चक्रराज नामक रथ पर सवार हुई। तिरुवरूर मंदिर में शिव मंदिर के रथ को अझि थेर कहा जाता है । अझि का मतलब चक्र है। शिव शक्ति की पूजा में चक्र महत्वपूर्ण है।

यह राष्ट्र के गौरव के लिए अद्भुत यज्ञ पूरे कुंभ क्षेत्र के साधकों के लिए विशिष्ट बन गया है। लाखों श्रद्धालु और साधकों ने अभी तक इसमें प्रतिभाग किया है।

Ramkrishna Vajpei

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