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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में आ गए सुपरफास्ट सन्यासी, पीछा नहीं कर पायेंगे इनका आप..

Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ में साधु संन्यासियों की दुनिया ही अजब गजब है। अपनी अपनी साधना , अपने हठ योग में लगे इन साधुओं में अब ऐसे साधु भी शामिल हो गए हैं जो रुकते नहीं बस दौड़ते रहते हैं।

Dinesh Singh
Published on: 13 Jan 2025 8:59 PM IST
Maha Kumbh 2025 (Pic- Social- Media)
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Maha Kumbh 2025 (Pic- Social- Media)

Maha Kumbh 2025: साधु संन्यासियों की अनोखी दुनिया बसती है महाकुंभ में। जितनी विविधता यहां के उप सम्प्रदायों में है उतनी ही भिन्नता है यहां के संन्यासियों में। अखाड़ा सेक्टर में कोई साधु बैठा है, कोई खड़ा है, तो कोई साधु कांटों की सेज पर लेटा है । अब इनके बीच नॉन स्टॉप सुपर फास्ट साधुओं की एंट्री भी हो गई है।

महाकुंभ के स्प्रिंटर है ये साधु संन्यासी"

प्रयागराज महाकुंभ में साधु संन्यासियों की दुनिया ही अजब गजब है। अपनी अपनी साधना , अपने हठ योग में लगे इन साधुओं में अब ऐसे साधु भी शामिल हो गए हैं जो रुकते नहीं बस दौड़ते रहते हैं। इसीलिए इनको नॉन स्टॉप साधु भी कहा जाता है। अखाड़ों में इन्हें बहुत पूज्य दर्जा हासिल है। ये सभी सन्यासी अखाड़ों के शिविर में बने इष्ट देवता के स्थान के चारो तरफ दौड़ते और चक्कर लगाते रहते हैं। इन्हें किसी भी तरह रोकना निषेध है। इनका नाम है अलख दरबारी साधु । क्योंकि ये भागते हुए अलख निरंजन का उद्घोष करते रहते हैं। जूना अखाड़े के अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी का कहना है कि इन्हें चलते समय जो भी भिक्षा देना हो दे सकते हैं ये रुक नहीं सकते।

अकाल में समाज की मदद करते हैं ये साधु

अलख दरबार के ये साधु श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े से संबद्ध है । भगवान शिव को अपना इष्ट मानने वाले अलख दरबार के संत अपनी कमर में एक घंटी बांधे रहते हैं. इसकी आवाज से लोग समझ जाते हैं कि अलखिये आ गए । इन्हें शिव का गण माना जाता है. इनकी कमर में भगवान शिव के वाहन नंदी की घंटी बंधी रहती है. घंटी की गूंज से लोग इनके लिए रास्ता छोड़ देते हैं। ये किसी से भिक्षा नहीं मांगते. अगर कोई बिना मांगे इनके कमंडल में डाल दे तो उसे स्वीकार कर लेते हैं । जूना अखाड़े के अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी के मुताबिक अलख दरबार के संत सिर्फ भिक्षा पर अपना जीवन यापन करते हैं। ये संत भिक्षा में अन्न खुद कभी सीधे ग्रहण नहीं करते । पहले दूसरों का पेट भरते हैं और यदि कुछ बच जाए तो उससे खुद प्रसाद पाते हैं। भिक्षा में जो अन्न बचता है उसे समाज में अकाल के समय दे दिया जाता है।

अखाड़ों के ब्रह्मलीन संत का मृत्यु भोज भी यही करते है

अलख दरबार के ये संन्यासी समाज की सेवा का अभिन्न हिस्सा है। अलख साधु ये भिक्षा में मिलने वाले अन्न को पकाकर पहले भगवान शिव को भोग लगाते हैं फिर गरीबों को और आखिर में बचा हुआ प्रसाद भगवान का आशीर्वाद समझकर ग्रहण करते है। किसी अखाड़े के संत के ब्रह्मलीन होने पर भी ये उसके साथ खड़े होते हैं । अलख दरबार के संत जब पूरे देश में कहीं भी कोई साध-संत शरीर छोड़ देता है या ब्रह्मलीन हो जाता है तो कुंभ में आकर उसकी लिखा पढ़ी होती है जिसमें धूल रोट बांटा जाता है, जिससे यह प्रचार हो सके कि कौन साधु था, वह कहां का था। इसके बाद एक टीम तैयार की जाती है जिनको शिव का रूप दिया जाता है। इसके लिए अलख साधुओं का भिक्षा में एकत्र अन्न काम आता है।



Shalini Rai

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