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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में जानिए अखाड़ों की महिमा, परंपराएं और कुम्भ व महाकुंभ का महत्व
Mahakumbh 2025: कुंभ स्नान के दौरान सबसे ज्यादा रोचक इन अखाड़ों के साधु संन्यासियों की दिन चर्या और उनके द्वारा निभाए जाने वाली परंपराओं को देखना होता है। कुंभ स्नान के दौरान शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की मुख्य पहचान माने जाते हैं।
Mahakumbh 2025: भारतीय सनातनी परंपराओं का प्रतीक माना जाने वाला महाकुंभ अपने आप में बेहद रोचकता समेटे हुए है। पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिकाल से चली आ रही परम्पराओं का द्योतक कुंभ के दौरान स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों और बुराइयों का नाश हो जाता है और व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है। यह भी माना जाता है कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है और कुंभ के समय जल सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरणों से भरा होता है ।
कुंभ मेले में साधु-संतों के अखाड़े आकर्षण का केंद्र होते हैं। कुंभ के दौरान, देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले साधु-संत इन अखाड़ों में आते हैं। अखाड़ा प्राचीनकाल में भारत के साधु-सन्तों का एक ऐसा समूह होता था, जो संकट के समय में राजधर्म के विरुद्ध परिस्थितयों में, राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए कार्य करता था। इस प्रकार के संकट से राष्ट्र और धर्म दोनों की रक्षा के लिए अखाड़े के साधु अपनी अस्त्र विद्या का उपयोग भी किया करते थे।
आदि काल से चली आ रही इस परंपरा के तहत अखाड़े, साधुओं के मठ माने जाते हैं। इन अखाड़ों में साधु-संत परमात्मा के ध्यान के साथ विभिन्न शारीरिक क्रियाएं करते हैं। आधुनिक अखाड़ों में कुश्ती, दंड बैठक, और अस्त्र-शस्त्र का अभ्यास भी करते हैं। अखाड़ा पद्वति में कुंभ मेला अपना खास महत्व रखता है। इस खास मेले में साधु-संतों के अखाड़ों का महत्व इस वजह से भी है कि ये अखाड़े शिव और शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं और मातृ शक्ति को पूजनीय माना जाता है।
भव्यता समेटे महाकुंभ मेला 2025 इस तारीख को होगा आयोजित
सनातन धर्म में विश्वास करने वालों के लिए यह सबसे बड़ा उत्सव होता है। जिसमें दुनियाभर के साधु-संत और लोगों का हुजूम इस पवित्र मेले में शामिल होने के लिए तैयारी कर रहा है। महाकुंभ का नजारा ऐसा होता है, मानो दुनिया भर के लोग इस मेले में सिमट गए हों। सारी की सारी नदियां एक स्थान पर आकर एकत्र हो गई हों। महाकुंभ के इस पावन महासंगम में हर कोई श्रद्धा की डुबकी लगाने के लिए आकुल नजर आता है। इस परंपरा की भव्यता को देखते हुए इसे महासंगम भी कहा जाता है। जल्द ही 29 जनवरी, 2025 से लेकर 8 मार्च, 2025 तक महाकुंभ आरंभ होने जा रहा है।
कुंभ किसका प्रतीक है?
कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। कुम्भ का पर्याय पवित्र कलश से होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है। कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रूद्र, आधार को ब्रम्हा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है।
कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?
कुंभ हर 12 साल में एक निश्चित स्थान पर आयोजित होता है। अर्ध कुंभ मेला - प्रयागराज और हरिद्वार में दो पूर्ण कुंभ मेलों के बीच लगभग हर 6 साल में अर्ध कुंभ मेला आयोजित होता है। महाकुंभ- यह हर 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद होता है, यानी हर 144 साल बाद आता है।
महाकुम्भ क्यों मनाया जाता है?
महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में किया जाता है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े को लेकर 12 दिनों तक लड़ाई हुई थी। मान्यता है कि इस लड़ाई के दौरान 12 जगहों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, जिनमें से चार जगह पृथ्वी पर और आठ जगह देवलोक में थीं। इस मान्यता के चलते कुंभ स्नान की परंपरा आदि काल से चलती चली आ रही है।
महाकुंभ का मेला कितने वर्षों के अंतर पर लगता है?
महाकुंभ का आयोजन हर साल नहीं बल्कि 12 साल में एक बार होता है। 12 सालों में कुंभ मेले का आयोजन देश में चार जगहों पर किया जाता है। जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल है। इनमें से नासिक और उज्जैन में हर साल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है>
आम व्यक्ति अखाड़े से कैसे जुड़ें?
कोई भी आम व्यक्ति (विवाहित/अविवाहित) जो हिंदू धर्म का पालन करने का इच्छुक है, वह वाम भक्त के रूप में गुरुनाथ अखाड़े में शामिल हो सकता है। उसे रुद्राक्ष पहनना होगा और नियमित रूप से अपने भगवान की पूजा करनी होगी। वाम साधकः कोई भी व्यक्ति (विवाहित/अविवाहित) जो वाम मार्ग का प्रचार करने का इच्छुक है, वह वाम साधक के रूप इस अखाड़े में शामिल हो सकता है।
आपसी विवादों के चलते 4 से 14 हुए अखाड़े
कुंभ स्नान के दौरान सबसे ज्यादा रोचक इन अखाड़ों के साधु संन्यासियों की दिन चर्या और उनके द्वारा निभाए जाने वाली परंपराओं को देखना होता है। कुंभ स्नान के दौरान शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की मुख्य पहचान माने जाते हैं। जो साधु तलवार और अन्य शस्त्र चलाना नहीं जानते हैं, उन्हें इन अखाड़ों में शस्त्र चलाने की दीक्षा दी जाती है। जिस प्रकार से बौद्ध धर्म के भिक्षु जहां एकत्र होते हैं उस स्थान को मठ कहा जाता है, उसी प्रकार से अखाडे़ साधुओं के मठ माने जाते हैं। माना जाता है कि पहले अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, बाद में साधुओं के बीच वैचारिक मतभेद होते चले गए। एक मत के साधुओं ने अपने अलग संगठन बना लिए और इस प्रकार से बढ़ते-बढ़ते अखाड़ों की संख्या 14 हो गई।परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं।
ये हैं मुख्य 13 अखाड़ों के नाम
शैव संन्यासी संप्रदाय के अखाड़ों की संख्या कुल 7 है। जो कि इस प्रकार है -
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी-दारागंज, प्रयाग
4.श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती दृ त्रंब्यकेश्वर, नासिक
5.श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी
6.श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी
7.श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़।
बैरागी वैष्णव संप्रदाय द्वारा कुल 3 अखाड़े संचालित किए जाते हैं। जो कि इस प्रकार हैं -
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा।
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या।
10.श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा।
तीसरे उदासीन संप्रदाय भी 3 अखाड़े संचालित करता है। जो कि इस प्रकार हैं -
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग।
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार।
13.श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार।
इस महाकुंभ में काफी विवादों के बाद दो और अखाड़े जोड़े गए हैं, जिनका नाम किन्नर अखाड़ा और परी अखाड़ा है। किन्नर अखाड़े को लेकर उठे विवाद तो खत्म हो गए हैं । लेकिन परी अखाड़े को लेकर माहौल अभी भी गर्म है। किन्नर अखाड़े को भी अब साधु परिषद से आधिकारिक मान्यता मिल चुकी है। इस तरह अखाड़ों की आधिकारिक संख्या अब 14 हो चुकी है>
पेशवा के दौर में कायम की गई थी ये परम्परा
आठवीं सदी में बने थे ये अखाड़े
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते है। लेकिन नाशिक के कुंभ में केवल वैष्णव अखाड़े नाशिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं। यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन् 1772 से चली आ रही है।
13 अखाड़ों से जुड़ी हैं विविध परंपराएं
पुराने समय से चले आ रहे इन 13 अखाड़ों से कई विविध परंपराएं जुड़ी हैं। जिनके अनुसार ये एक दूसरे से काफी भिन्न हैं।
अटल अखाड़ा
अटल अखाड़ा अखाड़ा अपनी कुछ सख्त मान्यताओं के चलते अपने आप में ही अलग है। जाति वर्ण पर केंद्रित इस इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते है और कोई अन्य जाति का व्यक्ति इस अखाड़े में प्रवेश भी नहीं कर सकता है।
अवाहन अखाड़ा
अवाहन अखाड़ा की भिन्न परम्पराओं के चलते यहां महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। जबकि अन्य आखड़ों में महिला साध्वियों को भी दीक्षा दी जाती है लेकिन इस अखाड़े में महिलाओं को दीक्षा नहीं मिलती है।
निरंजनी अखाड़ा
निरंजनी अखाड़ा अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा माना जाता है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर हैं।
अग्नि अखाड़ा
अग्नि अखाड़ा अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है। यहां कोई और धर्म जाति का या विवाहित व्यक्ति दीक्षा नहीं ले सकता है।
महानिर्वाणी अखाड़ा
वर्षों से चली आ रही परम्परा के अनुसार महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा महानिर्वाणी अखाड़े के पास है। यही वजह है कि इस अखाड़े का बहुत महत्व है।
आनंद अखाड़ा
आनंद अखाड़ा एक शैव अखाड़ा है जहां महामंडलेश्वर नहीं बनाया जाता बल्कि इस अखाड़े के आचार्य का पद ही सबसे बड़ा पद माना जाता है।
दिंगबर अणि अखाड़ा
दिंगबर अणि अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा का कहा जाता है। इस अखाड़े की सबसे खास बात है कि इसमें सबसे ज्यादा संख्या में 431 खालसा हैं।
निर्मोही अणि अखाड़ा
निर्मोही अणि अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। बाकी की तुलना में इसमें कुल 9 अखाड़े संचालित होते है।
निर्वाणी अणि अखाड़ा
मुख्य रूप से पहलवानी के लिए निर्वाणी अणि अखाड़ा को जाना जाता है। इसी कारण से अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके हैं। इस अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है जो इस अखाड़े के सदस्यों के जीवन का एक अहम हिस्सा मानी जाती है।
बड़ा उदासीन अखाड़ा
बड़ा उदासीन अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सेवा भाव है। इस अखाड़े में केवल 4 मंहत होते हैं जो सेवा को ही ईश्वर की आराधना मानते हैं और अलग अलग तरीके से सेवा धर्म में लिप्त रहते हैं।
निर्मल अखाड़ा
निर्मल अखाड़े की खासियत होती है कि इसमें अन्य दूसरे अखाड़ो की तरह धूम्रपान की इजाजत नहीं है। इस अखाड़े के सभी केंद्रों के गेट पर धूम्रपान न करने की सूचना लिखी होती है।
नया उदासीन अखाड़ा
नया उदासीन अखाड़े की खासियत होती है इसमें सिर्फ 8 से 12 साल तक की उम्र के संत ही शामिल हो सकते हैं। क्योंकि इस अखाड़े की परंपरा के अनुसार उन्हीं लोगों को नागा बनाया जाता है जिनकी दाढ़ी-मूंछ न निकली हो।