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छात्र आंदोलन की जो थी ताकत, उसी ने खत्म कर दिया प्रतियोगी छात्रों का आरओ /एआरओ परीक्षा आंदोलन, पढ़े इनसाइड स्टोरी
Student Protest : हर छात्र आंदोलन की तरह इस आंदोलन पर भी सियासी दलों की नजर थी। लेकिन छात्रों ने उन्हें इस आंदोलन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
दिनेश सिंह
नो लीडरशिप बना आंदोलन की ताकत
लगातार चार दिनों तक चले इस छात्र आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिला। प्रयागराज से बाहर के शहरों के ही नहीं, बल्कि प्रदेश के दूसरे जिलों से भी छात्रों ने इसमें सहभागिता दी। छात्र उदय सिंह का कहना है कि इस आंदोलन से पीसीएस और समीक्षा अधिकारी की परीक्षा में शामिल होने वाले 16 लाख प्रतियोगी छात्रों का भविष्य जुड़ा हुआ था, इसलिए प्रदेश और प्रदेश से बाहर के छात्र भी इसमें पूरी निष्ठा के साथ जुड़े। दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक से छात्रों ने इसमें अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
छात्रों के इस हुजूम के बाद भी इस छात्र आंदोलन में कोई छात्र इसकी अगुवाई नहीं कर रहा था। बिना लीडरशिप के यह छात्र आंदोलन चला और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत थी। परीक्षा प्रकिया की तकनीकी के पक्ष को बेहतर समझने वाले कुछ सीनियर छात्र सबको एकजुट करते रहे, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया बावजूद इसके लीडरशिप न होने की वजह से यह आंदोलन उसी मजबूती से आगे बढ़ता रहा।
सियासी दलों की दूरी से मिला सबका समर्थन
हर छात्र आंदोलन की तरह इस आंदोलन पर भी सियासी दलों की नजर थी। लेकिन छात्रों ने उन्हें इस आंदोलन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। पीसीएस की तैयारी कर रहे छात्र वेदप्रताप का कहना कि पिछले समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी छात्र आंदोलन से छात्रों को यह समझ आ गया था कि आंदोलन में सियासी दलों की एंट्री से आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा। प्रशासन इसे एक दल विशेष से प्रेरित बताकर इसे जल्दी ही खत्म कर देगा, इसलिए छात्रों ने फैसला किया था कि इसमें किसी सियासी दल की भागीदारी नहीं होने देंगे।
समाजवादी पार्टी छात्र सभा से जुड़े नेता इसमें शामिल होने के लिए आए भी, लेकिन उन्हें तत्काल ही छात्रों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। कुछ सियासी छात्र नेताओं ने इस आंदोलन को हिंसक बनाने के लिए होर्डिग्स फाड़ने और बैरियर हटाकर आयोग के गेट में चढ़ने का प्रयास भी किया, उन्हें चिन्हित कर आंदोलन से हटा दिया गया।
महिला अभ्यर्थियों की अगुवाई से भी मिली सफलता
इस छात्र आंदोलन में एक अवसर भी आया जब लगा कि आंदोलन बिखर जाएगा। लेकिन आंदोलन में शामिल महिला अभ्यर्थियों ने इसे अपनी अगुवाई देकर बचा लिया। प्रतियोगी छात्र संतोष त्रिपाठी कहते हैं कि आयोग के गेट पर चढ़ने और अनुशासन तोड़ने के कुछ बाहरी तत्वों की हरकत के बाद पुलिस ने उन अराजक तत्वों के साथ कुछ ऐसे छात्रों पर भी दबाव बनाया, जिनकी आंदोलन में सक्रियता अधिक दिख रही थी। कुछ छात्र हिरासत में लिए गए तो कुछ भूमिगत हो गए। ऐसी स्थिति में आंदोलन में शामिल महिला अभ्यर्थियों ने पूरी तन्मयता के साथ आंदोलन की अगुवाई की और आंदोलन चलता रहा। आंदोलन में 30 फीसदी महिला अभ्यर्थियों ने भी हिस्सा लिया।
आंदोलन की ताकत ही बना आंदोलन के खत्म होने की वजह
नो लीडरशिप यही एक बड़ी वजह थी, जिससे छात्र आंदोलन को मजबूती और समर्थन मिला। लेकिन यही वजह से इस आंदोलन के खत्म होने की वजह भी बन गया। पीसीएस परीक्षा देने वाले कुछ छात्र ही इसकी अगुवाई कर रहे थे। आयोग ने पीसीएस परीक्षा से जुड़ी छात्रों की मांग स्वीकार कर ली। इसके बाद पीसीएस परीक्षा से जुड़े आंदोलन में शामिल 12 हजार से अधिक छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी करने अपने अपने हॉस्टल या कमरों में लौट गए। अब क्योंकि समीक्षा अधिकारी सहायक समीक्षा परीक्षा के आंदोलन को लीड करने वाले छात्र ही नहीं रह गए, लिहाजा छात्र आंदोलन बिखरने लगा। आंदोलन के पांचवे दिन की रात समीक्षा अधिकारी सहायक समीक्षा अधिकारी आंदोलन भी खत्म हो गया। क्योंकि इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले प्रतियोगी छात्र नहीं बचे , छात्रों की लीडरशिप नहीं बची।