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प्राइमरी स्कूल का हाल: 5 शिक्षक-3 छात्र, कक्षा 5 के छात्र को नहीं याद 5 का पहाड़ा

दो शिक्षिकाएं एक साथ स्कूल पहुंचती हैं। पहले से ही भीतर मौजूद तीनों छात्र गेट के पास पहुंच जाते हैं। शिक्षिकाएं बाहर लगा ताला खोलती हैं और बच्चे भीतर से फाटक खींच कर औपचारिक रूप से स्कूल खोल देते हैं।

zafar
Published on: 28 April 2017 10:08 PM IST
प्राइमरी स्कूल का हाल: 5 शिक्षक-3 छात्र, कक्षा 5 के छात्र को नहीं याद 5 का पहाड़ा
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प्राइमरी स्कूल का हाल: 5 शिक्षक-3 छात्र, कक्षा 5 के छात्र को नहीं याद 5 का पहाड़ा

फतेहपुर: सरकारें बदलती रहती हैं। अधिकारी बदलते हैं। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए नई नई योजनाओं और सुधार की बातें होती हैं। लेकिन जमीन पर कुछ उतरता हुआ नहीं दिखता। newstrack.com ने फतेहपुर में एक प्राथमिक विद्यालय का जायजा लिया।

समय: सुबह के 7:30

गांव: मिर्जापुर मजरे बिझौली

विकास खण्ड: बहुआ

विद्यालय: प्राथमिक विद्यालय, मिर्जापुर

न्यूजट्रैक की टीम जब प्राथमिक विद्यालय पर पहुंची तो मुख्य द्वार पर ताला लटक रहा था। दो बच्चे स्कूल की बाउंड्री के भीतर नजर आ रहे हैं। तभी तीसरा बच्चा पहुंचता है। बच्चा बाउंड्री पर चढ़ कर स्कूल में भीतर कूद जाता है। चूंकि स्कूल में कोई और नहीं है इसलिए बच्चे बरामदे में बैठ जाते हैं।

कुछ देर बाद दो शिक्षिकाएं एक साथ स्कूल पहुंचती हैं। पहले से ही भीतर मौजूद तीनों छात्र गेट के पास पहुंच जाते हैं। शिक्षिकाएं बाहर लगा ताला खोलती हैं और बच्चे भीतर से फाटक खींच कर औपचारिक रूप से स्कूल खोल देते हैं। पहले से मौजूद कैमरा देख कर शिक्षिकाएं थोड़ा सकपकाती हैं। लेकिन फिर ढेरों कारण बताती हैं जिनके कारण देर हो गई।

जानकारी मिलती है कि एक शिक्षिका मातृत्व अवकाश पर हैं और एक शिक्षक आने वाले हैं। कुल पांच लोग स्कूल स्टाफ में शामिल हैं। और स्कूल रजिस्टर में दर्ज बच्चों की संख्या 66 है ।

करीब पौने आठ बजे एक और अध्यापक प्रवेश करते हैं। उनके पीछे पीछे ही एक शिक्षामित्र भी स्कूल में दाखिल होती हैं। छात्र अब भी तीन ही हैं। कुछ समय और गुजर जाता है। लेकिन फिर कोई और छात्र नहीं आता। शायद इसलिए कि स्कूल खुलने के समय का भरोसा नहीं, और दीवार फांद कर आना हर बच्चे के वश की बात नहीं। यानी 3 बच्चे और 5 का स्टाफ।

अब जो हैं, उनसे पढ़ाई की बात कर ली जाय। तो कक्षा 5 में पढ़ रहे अजलान को 5 का पहाड़ा नहीं आता। दूसरे बच्चे भी वैसे ही हैं। कोई हिन्दी की पुस्तक नहीं पढ़ पाता। शिक्षिकाएं इसका दोष अभिभावकों पर मढ़ती हैं। जाहिर है, ऐेसे में स्कूल से विदा लेना ही बेहतर था। चलते चलते शिक्षिकाएं कहती हैं- स्कूल की खबर अच्छी बनाइयेगा।

आगे स्लाइड्स में देखिये कुछ और फोटोज...

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