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पृथ्वीराज और संयोगिता के प्यार के चर्चे आज भी लोगों की जुबां पर, ऐसे हुआ था राजकुमारी से प्यार

दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों पर लिखी जरूर है लेकिन उस समय की अगर हकीकत की कल्पना करेंगे तो आज के जमाने का प्यार फीका ही नजर आएगा। दोनों के प्यार की कहानी आज भी एक अमर प्रेम के साथ जीवित है।

Anoop Ojha
Published on: 14 Feb 2019 4:22 PM IST
पृथ्वीराज और संयोगिता के प्यार के चर्चे आज भी लोगों की जुबां पर, ऐसे हुआ था राजकुमारी से प्यार
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कन्नौज: दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों पर लिखी जरूर है लेकिन उस समय की अगर हकीकत की कल्पना करेंगे तो आज के जमाने का प्यार फीका ही नजर आएगा। दोनों के प्यार की कहानी आज भी एक अमर प्रेम के साथ जीवित है।

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कन्नौज राज्य के आखिरी स्वतंत्र शासक के रूप में राजा जयचंद्र हुए। संयोगिता राजा जयचंद की पुत्री थी। राजा जयचंद और पृथ्वीराज की दुश्मनी की वजह भी इनकी प्रेम कहानी ही थी। इस प्रेम कहानी की जानकारी यहां के युवाओं को भली भांति हो इसके लिए यहां के पुरातत्व विभाग ने इसकी झांकी सजा रखी है।जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे थे, उस समय के मशहूर चित्रकार पन्नाराय पृथ्वीराज चौहान समेत बड़े राजा-महाराजाओं के चित्र लेकर कन्नौज पहुंचे। जहां उन्होंने सभी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।

पृथ्वीराज चौहान का चित्र इतना आकर्षक था कि सभी स्त्रियां उनके आकर्षण में बंध गयीं। सभी युवतियां उनकी सुन्दरता का बखान करते नहीं थक रहीं थीं। पृथ्वीराज के तारीफ की ये बातें संयोगिता के कानों तक पहुंची तो संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्र को देखने के लिए दौड़ी-दौड़ी चली आईं। चित्र देख पहली ही नज़़र में संयोगिता ने अपना दिल पृथ्वीराज को दे दिया। वह अब तय कर चुकी थीं कि शादी तो पृथ्वीराज चौहान से ही करेंगी।

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इसका सूत्रधार बना चित्रकार पन्नाराय,जिसे पहले संयोगिता का एक सुंदर चित्र बनाना पड़ा, फिर उसे ले जाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाना पड़ा। चित्र में संयोगिता के यौवन को देखकर पृथ्वीराज चौहान भी मोहित हो गए और उन्होंने भी एक पल में संयोगिता को अपना दिल दे दिया। जिसके बाद जब सयोंगिता के विवाह की तैयारी की गयी तो सयोंगिता के पिता राजा जयचंद्र ने सभी राजाओं को स्वयंबर के लिए न्योता भेजा लेकिन दिल्ली के राजा पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं दिया और उनकी एक प्रतिमा अपने राजमहल के बाहर बनवाकर खड़ी कर दी।

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जब सयोंगिता के हाँथ में वरमाला दी गयी और स्वयंवर के दौरान उनको अपने मनचाहे राजा के गले में वरमाला डालने के लिए कहा गया तो संयोगिता ने पृथ्वीराज की उसी मूर्ति को वरमाला पहनाकर अपने प्रेमी पृथ्वीराज को पति के रूप में स्वीकार किया उसी पल पृथ्वीराज ने संयोगिता को अपने साथ घोड़े पर बैठाकर दिल्ली ले गये। दोनों ही एक दूसरे से मोहब्बत करते थे। जिनके प्यार के किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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