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कागजी संरक्षण से गायों का कैसे होगा भला

raghvendra
Published on: 24 Aug 2019 1:36 PM IST
कागजी संरक्षण से गायों का कैसे होगा भला
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: गाय सरकार और अफसरों मुख्य एजेंडे में शामिल है। शायद ही कोई हफ्ता हो जब गायों के संरक्षण के बारे में कोई फरमान जारी न हो रहा हो। कभी सडक़ों को सांड़मुक्त करने का फरमान तो कभी शराब पर गो-सेस लगाने का। कभी सभी तहसीलों में कान्हा उपवन बनाने की बजट जारी हो रहा है, तो कभी किसानों को 900 रुपये में एक गाय पालने का ऑफर दिया जा रहा है। गाय को लेकर संजीदगी का आलम यह है कि लखनऊ के अफसरों की वीडियो कान्फ्रेंसिंग गायों पर शुरू होती है और गाय पर खत्म। डेयरी संचालकों पर नकेल कसने के लिए इन दिनों नगर निगम पशुओं की ईयर टैगिंग कर रहा है। इसे लेकर पशुपालन विभाग और नगर निगम के अफसर रोज भिड़ रहे हैं। तमाम कोशिशों और सरकारी फरमान के बाद भी सडक़ पर छुट्टा पशुओं की संख्या में कोई कमी आती नहीं दिख रही है।

कई सवालों का नहीं मिल रहा जवाब

सरकार का ताजा फरमान छुट्टा दुधारू गायों को पशुपालकों को सुपुर्द करने को लेकर है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ.डीके शर्मा के मुताबिक 24 जुलाई तक गोरखपुर और बस्ती मंडल में 12039 गो-वंश संरक्षित किए गए हैं। इनमें से 4382 निर्वासित पशुओं को ही लोगों को सुपुर्द करने का लक्ष्य मिला है। योजना को लेकर सरकार की गाइडलाइन को बार-बार पढऩे के बाद भी कई सवालों का जवाब नहीं मिल रहा हैं। गाइडलाइन यह है कि 24 जुलाई तक संरक्षित गोवंश ही मुख्यमंत्री निराश्रित-बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना के अंतर्गत सुपुर्दगी में दिए जाएंगे। पशुपालकों को प्रति गोवंश 30 रुपये प्रतिदिन की दर से खुराकी की रकम दी जाएगी।

सरकार की मंशा पर उठे सवाल

सामाजिक कार्यकर्ता विनय राय कहते हैं कि गांव में एक दिन की मजदूरी 300 रुपये से कम नहीं है, ऐसे में पशुपालक कैसे गायों के साथ खुद का पेट महज 3600 रुपये में पालेगा। वह भी तब जब विभागीय अधिकारी रोज दर्जनों सवाल लेकर पशुपालकों के पास पहुंचेंगे। धन के आवंटन में कई तरह की कागजी कार्रवाई पूरी करनी होगी, वहीं रुपये ट्रांसफर करने वाले लेखाधिकारी का मुंह भी देखना होगा।

कांग्रेस नेता प्रदीप पांडेय कहते हैं कि सरकार की मंशा साफ नहीं है। वह सबकुछ उलझाकर रखना चाहती है। गायों के नाम पर करोड़ों रुपये टैक्स वसूला जा रहा है। इसके बावजूद शायद ही कोई चौराहा हो जहां सांड़ों का झुंड उत्पात करता हुए नदिख जाए। वहीं किसानों की फसल साफ करने में इनकी बड़ी भूमिका है। सरकार जाते-जाते बिहार के चारा घोटाले से भी बड़े घोटाले में फंसने जा रही है।

शेड बना दिया, बाउंड्री बनाना भूल गए

गायों के रखरखाव को लेकर शराब से लेकर मंडी समिति में करोड़ों की टैक्स वसूली की जा रही है। जनता से जुटाए गए टैक्स की रकम को किस तरह बर्बाद किया जा रहा है, इसे गोरखपुर में गोला तहसील के गाजेगड़हा में देखा जा सकता है। बदनाम संस्था फैक्सपैड ने यहां पांच एकड़ में सवा करोड़ रुपये खर्च कर शेड और आवास तो बना दिए, लेकिन बाउंड्री नहीं बनाई। मुख्यालय से पशुपालन विभाग के जिम्मेदार गायों के न रखे जाने की वजह पूछ रहे हैं तो दो स्थानीय अफसरों द्वारा दो टूक जवाब भेजा जा रहा कि गोसदन में बाउंड्री नहीं है। ऐसे में गायों को रखा जाना मुमकिन नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि कहते हैं कि पूरा मामला लापरवाही का है। जब इंजीनियर ने डीपीआर तैयार किया तो क्या उसे यह नहीं देखना चाहिए कि बिना बाउंड्री के गायों को नहीं रखा जा सकता है। पूरे प्रकरण की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। दिलचस्प यह भी है कि गोरखपुर में करीब 9 करोड़ से बने जिस कान्हा उपवन का बीते दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकार्पण किया था, वहां कर्मचारियों द्वारा ही रुपये लेकर गायों को बेचे जाने का मामला प्रकाश में आ रहा है। एक मामले में नगर आयुक्त को मुकदमा भी दर्ज कराना पड़ा है।

ईयर टैगिंग को लेकर ठनी

ऐनिमल वेलफेयर बोर्ड की गाइड लाइन में साफ है कि शहरी इलाकों में डेयरी नहीं रह सकती हैं। इसके बावजूद गोरखपुर नगर निगम समेत आसपास के जिलों के टाउन एरिया में डेढ़ हजार से अधिक डेयरी संचालित हो रही हैं। योगी सरकार की सख्ती के बाद दूध निकालकर गायों को सडक़ पर छोडऩे वाले पशुपालकों पर नकेल के लिए ईयर टैगिंग का निर्देश जारी किया गया है। ईयर टैगिंग को लेकर नगर निगम और पशुपालन विभाग में खूब ठनी हुई है।

पशुपालन विभाग का कहना है कि गुजरात से लेकर लखनऊ तक गायों की ईयर टैगिंग का काम नगर निगम कर रहा है, सिर्फ गोरखपुर में यह जिम्मा पशुपालन विभाग को सौंपा जा रहा है। पशुओं की गणना के लिए प्रति हाउस होल्ड 10 रुपये पशुपालन विभाग को मिलते हैं तो ऐसे में ईयर टैगिंक फ्री में क्यों कराई जा रही है। कमिश्नर के हस्तक्षेप के बाद पशुपालन विभाग ईयर टैगिंग कर तो रहा है,लेकिन बात-बात पर विवाद सामने आ रहा है। गोरखपुर नगर निगम परिक्षेत्र में हो रही ईयर टैगिंग के काम के लिए पशुपालन विभाग ने 15 पशुधन प्रसार अधिकारी और इतने ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को लगाया है। वहीं नगर निगम के भी 12 सुपरवाइजरों को टीम में शामिल किया गया है।

पशुपालन विभाग में दूसरे कार्य ठप

पशुपालन विभाग में कृत्रिम गर्भाधान से लेकर अन्य कार्य ठप पड़े हुए हैं। एनिमल वेलफेयर बोर्ड के1960 के एक्ट के मुताबिक विभिन्न विभागों की जिम्मेदारियां तय हैं। पशुओं के कान्हा उपवन के नोडल विभाग को लेकर कई विसंगतिया हैं। प्रदेश सरकार ने कहीं नगर निगम, कहीं जिला पंचायत तो कहीं ग्रामसभाओं को पशुओं के संरक्षण का नोडल बना दिया है।

इतना ही नहीं कान्हा उपवन या गो-सदन में बीमार गायों और सांड़ों के इलाज के लिए दवाओं को लेकर भी नगर निगम और पशुपालन विभाग में ठनी हुई है। पशुपालन विभाग दलील दे रहा है कि बीमार पशुओं की देखरेख करना उनकी जिम्मेदारी है। दवा आदि का इंतजाम करना नगर निगम का काम है। उधर, नगर निगम बजट का रोना रोते हुए हाथ खड़ा कर दे रहा है। इतना ही नहीं तमाम पत्राचार के बाद नगर निगम कान्हा उपवन में पशु चिकित्सक की तैनाती नहीं कर सका है। पशुपालन विभाग लगातार चेतावनी दे रहा है कि वह बीमार पशुओं की देखरेख के लिए डॉक्टर नहीं भेजेगा।

एक गाय की प्रतिदिन खुराकी 30 रुपये मात्र

गोरखपुर में सबसे कम पशु सरंक्षित हैं तो सिद्धार्थनगर में सबसे अधिक। गोरखपुर में कुल सरंक्षित 358 पशुओं में से 130 को पशुपालकों को दिया जाना है। वहीं महराजगंज और सिद्धार्थनगर में यह आकड़ा काफी अधिक है। सिद्धार्थनगर में संरक्षित 3512 पशुओं में से 1279 और महराजगंज में संरक्षित 2906 पशुओं में से 1058 गायों को पशुपालकों को पालने के लिए दिए जाना है। ये गायें पशुपालकों को मुफ्त मिलेंगी, लेकिन किसानों को कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होगा। एक गाय की खुराकी के लिए प्रतिदिन 30 रुपये यानी महीने के 900 रुपये मिलेंगे। एक व्यक्ति को अधिकतम चार गोवंश पालने के लिए मिलेंगे। इन पशुओं में ईयर टैंगिग अनिवार्य होगी। किसान या पशुपालक इन गोवंश का किसी भी दशा में बेच नहीं सकेगा और न ही छुट्टा छोड़ेगा। इच्छुक गोपालकों का चयन विकासखंड स्तरीय समिति की संस्तुति के बाद जनपद स्तरीय समिति के अनुमोदन के बाद ही होगा। जिलाधिकारी व मुख्य पशु चिकित्साधिकारी प्रत्येक 3 माह पर एक बार निराश्रित-बेसहारा गोवंश को पालने वाले किसानों एवं पशुपालकों का सत्यापन करेंगे। पालक को स्वघोषणा करनी होगी कि उसने आवेदन में कोई बात छुपाई नहीं है। कड़े मानकों के साथ ही गाय लेने वाले पशुपालकों का बकायदा साक्षात्कार होगा। देखा जाएगा कि वह विकासखंड का मूल निवासी है या नहीं।

पशुओं के पोषण-पालन का अनुभव है या नहीं। उन किसानों को प्राथमिकता मिलेगी जो दुग्ध विकास समितियों से जुड़े हैं या फिर प्रशिक्षित पशु मित्र में चयनित हैं। हालांकि कई सवालों को जवाब की तलाश है। मसलन, यदि पशुपालक को लगता है कि वह गाय पालने में अक्षम है तो कैसे गाय वापस होगी। पशुपालक की मौत के बाद गायों का क्या होगा। कौन किसान बिना लाभ के इन गायों को लेगा? क्या इन गायों के दवा का इंतजाम पशुपालन विभाग करेगा या फिर पशुपालक को करना होगा? गोरखपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का कहना है कि योगी आदित्यनाथ की नेक नियति पर किसी को संदेह नहीं है, लेकिन जबतक वह आईएएस लाबी के चंगुल में फंसे रहेंगे, ऐसे ही तुगलकी फरमानों से गायों की बेहतरी का दावा किया जाता रहेगा।

जिला पंचायत 100 रुपये में गाय का पेट भरेगी, किसान 30 में

प्रदेश सरकार के निर्देश पर नगर निगमों और नगर पंचायतों से इतर गायों के सरंक्षण की जिम्मेदारी जिला पंचायतों को दी गई है। जिला पंचायतों ने प्रदेश सरकार से गायों के एक दिन की खुराकी के एवज में 100 रुपये की मांग की है। इसके लिए बकायदा शासनादेश भी जारी कर दिया गया है। ऐसे में किसान या पशुपालक कैसे महज 30 रुपये में गायों का पेट भर देगा। दुधारू पशुओं को लेकर पशुपालन विभाग ने जो डाइट चार्ट जारी किया है उसके मुताबिक एक गायपर प्रतिदिन न्यूनतम 100 से 130 रुपये का खर्च आएगा। पशुपालन विभाग ने दुधारू गायों की जो खाना तय किया है उसके मुताबिक एक दिन में एडल्ट गाय को 4 से 5 किग्री भूसा, 15 से 20 किग्री हरा चारा, 2 किलोग्राम चोकर या दाना जरूर चाहिए। फिलहाल बाजार में भूसा 10 से 12 रुपये प्रति किग्रा, हरा चारा 9 से 12 रुपये प्रति किग्रा, चोकर 20 रुपये प्रति किग्रा उपलब्ध है। ऐसे में किसान महज 30 रुपये में गायों को कैसे पालेगा? शर्त यह है कि एक किसान को अधिकतम 4 गायें दी जाएंगी। यानी महीने में गायों का पेट भरने और मजदूरी आदि के एवज में सिर्फ 3600 रुपये ही मिलेंगे।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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