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रक्षक ही बने भक्षक, संरक्षण गृहों में असुरक्षित महिलाएं

raghvendra
Published on: 10 Aug 2018 7:26 AM GMT
रक्षक ही बने भक्षक, संरक्षण गृहों में असुरक्षित महिलाएं
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अंशुमान तिवारी

लखनऊ: बिहार के मुजफ्फरपुर कांड के बाद उत्तर प्रदेश के बालिका संरक्षण गृहों का जो सच सामने आ रहा है वह बेहद डरावना है। संरक्षण गृहों में बालिकाएं सुरक्षित ही नहीं हैं। प्रदेश के अधिकांश जिलों के संरक्षण गृहों की हालत बेहद दयनीय है। हालात की गंभीरता इससे समझी जा सकती है कि मुजफ्फरपुर के बाद देवरिया के संरक्षण गृह का जो सच खुला वह न केवल घिनौना है बल्कि बिलकुल एक सरीखा है। देवरिया के बाद हरदोई व प्रतापगढ़ के संरक्षण गृह भी सवालों के घेरे में हैं। यहां भी कई लड़कियां गायब मिली हैं। संरक्षण गृहों में लड़कियों के यौन शोषण की शिकायतें आम हैं। यह भी आम है कि संरक्षण गृह सफेदपोश लोगों की कमाई का जरिया है। संरक्षण गृहों की हालत इससे समझी जा सकती है कि देवरिया कांड के बाद विपक्ष को सरकार को घेरने का बड़ा हथियार मिलता महसूस हो रहा है।

विपक्ष इस मुद्दे से संजीवनी पा रहा है। सत्ता पक्ष के पास इससे बचने का इकलौता तरीका यह रहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस सवाल पर संवाददाताओं से रूबरू होना पड़ा। मामले की गंभीरता का ही तकाजा था कि मुख्यमंत्री को खुद कमान संभालनी पड़ी। जांच सीबीआई के हवाले करनी पड़ी। संसद में भी मुजफ्फरपुर और देवरिया कांड की गूंज सुनाई दी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मामले में चुप्पी को लेकर पीएम मोदी पर बड़ा हमला बोला और कहा कि इतनी गंभीर घटना पर भी उनका मुंह नहीं खुला।

‘अपना भारत/ न्यूज ट्रैक’ की टीम ने प्रदेश के संरक्षण गृहों की पड़ताल की तो तमाम चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगे। मसलन, नौकरशाही के लिए ये जेब भरने के बड़े साधन हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं की आड़ में ये देह व्यापार का केंद्र बन गए हैं। सफेदपोशों के लिए यह सेक्स का बाजार है। इसकी भयावहता को समझते हुए केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने दो महीने में देशभर के सारे संरक्षण गृहों की रिपोर्ट तलब की है। बिहार की मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा। अटकलें यह भी तेज हो गई हैं कि उत्तर प्रदेश में महकमा देखने वाली मंत्री रीता बहुगुणा जोशी से भी इस्तीफा लिया जा सकता है। हालांकि सरकार के पास बचाव का यह ट्रंप कार्ड है कि उसने देवरिया के संरक्षण गृह का लाइसेंस निरस्त कर दिया था मगर इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर बावजूद इसके उस संरक्षण गृह में जिला प्रशासन द्वारा लड़कियां क्यों भेजी जाती रहीं। रीता बहुगुणा जोशी का इस्तीफा भले ही अटकल हो पर इतना तो तय है कि अगले बदलाव में उनका यह महकमा हाथ से चला ही जाएगा।

सरकारी तंत्र की लापरवाही की पोल खोलती हुई संरक्षण गृह की कहानियां कितनी गंभीर हैं, इसे समझने के लिए हाईकोर्ट की यह तल्ख टिप्पणी काबिले गौर है कि वह दो कारें किसकी थी, जो रात में लड़कियों को वहां से लेकर जाती थी और सुबह वापस छोड़ जाती थीं। हाईकोर्ट ने सरकार से इसका पता लगाने को कहा है। इस मामले का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। जांच की निगरानी भी हाईकोर्ट करेगा। हाईकोर्ट ने सरकार से उन सफेदपोश लोगों का भी पता लगाने को कहा है जो सेक्स रैकेट चलाने वालों को संरक्षण दे रहे हैं। इस संरक्षण गृह का लाइसेंस 2017 में रद्द कर दिया गया था और उसे मिलने वाली सरकारी मदद भी रोक दी गयी थी। इसके बावजूद इसका संचालन किया जा रहा था। ब्लैक लिस्टेड होने के बावजूद पुलिस भी अभी तक यहीं लड़कियां भेज रही थी।

रात में रोते हुए लौटती थीं लड़कियां

देवरिया कांड उजागर होने के बाद बैकफुट पर आई सरकार ने तेजी से कार्रवाई करते हुए मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। समाज कल्याण विभाग की अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार और एडीजी अंजू गुप्ता की देखरेख में सभी 24 लड़कियों का जिला महिला अस्पताल में मेडिकल कराया गया। आयु जांच रिपोर्ट में 10 लड़कियों के बालिग होने का खुलासा हुआ है। वहीं अन्य लड़कियां नाबालिग मिलीं। हालांकि मेडिकल रिपोर्ट को गुप्त रखा गया है। माना जा रहा है कि जांच दल की रिपोर्ट के बाद इस कांड की कई घिनौनी परतें खुलेंगी। वैसे पुलिस व जिला प्रशासन ने मां विंध्यवासिनी बालिका संरक्षण गृह को सील कर अहम दस्तावेज जब्त कर लिए हैं। जांच टीम ने मुक्त कराई गई लड़कियों के बयान भी दर्ज किए हैं। पांच ने अपने बयान में कहा है कि लड़कियों को लेने गाडिय़ां आती थीं जिनमें उन्हें भेजा जाता था। एक बच्ची के मुताबिक, वहां शाम चार बजे के बाद रोजाना कई लोग काले और सफेद रंग की कारों से आते थे और मैडम के साथ लड़कियों को लेकर जाते थे, वे देर रात रोते हुए लौटती थीं। संरक्षण गृह में भी गलत काम होता है।

देवरिया कांड में चार गिरफ्तार

मां विंध्यवासिनी संरक्षण गृह में बालिकाओं से दुष्कर्म कराने और अवैध बालिका गृह चलाने के मामले में पुलिस ने संचालिका गिरिजा त्रिपाठी, उसके पति मोहन त्रिपाठी,बेटे प्रदीप त्रिपाठी व बेटी कंचनलता त्रिपाठी गिरफ्तार किया है। नए डीएम अमित किशोर ने बताया कि डीपीओ (जिला जांच अधिकारी) को हटा दिया गया है। उन्होंने बताया कि डीपीओ की गलती ये थी कि गत वर्ष इस शेल्टर होम का लाइसेंस रद्द किए जाने के बाद भी यहां लड़कियों को भेजा जाता था। एसपी ने बताया कि मानव तस्करी, देह व्यापार व बाल श्रम से जुड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। इस मामले में खुलासा यह हुआ है कि इसकी मान्यता रद्द होने के बाद शासन से आदेश हुआ कि सभी बच्चों को यहां से ट्रांसफर कर दिया जाए। इस आदेश के बावजूद संस्थान में लड़कियों को जबरन रखा गया। यहां तक कि संस्थान में रजिस्टर्ड बच्चियों का सही रिकॉर्ड तक नहीं है।

खुद को जलाने की धमकी देती थी गिरिजा

सीएम के निर्देश पर देवरिया पहुंची अफसरों की टीम ने पाया कि पुलिस व प्रशासन जब भी इस संरक्षण गृह के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए कदम उठाता तो संचालिका गिरिजा त्रिपाठी मिट्टी का तेल या पेट्रोल डालकर खुद को जलाने की धमकी देती थी। कई बार तो वह खुद पर मिट्टी का तेल या पेट्रोल डाल लेती थी। इलाके में उसका अच्छा-खासा रसूख था और इस कारण अफसर भी बवाल की आशंका से वापस लौट जाते थे। संरक्षण गृह का लाइसेंस निरस्त होने के बाद एसपी ने यहां लड़कियां न भेजे जाने का सर्कुलर जारी किया था मगर यहां कोई दूसरा संरक्षण गृह न होने से पुलिसकर्मी इस आदेश की अनदेखी कर देते थे। ऊपर से गिरिजा त्रिपाठी कहती थी कि उसकी इतनी पहुंच है कि वह जल्द ही अपना लाइसेंस बहाल करा लेगी। वह पुलिस वालों पर जल्द ही दबाव बना लेती थी।

प्रतापगढ़ में भी देवरिया जैसी कहानी

देवरिया के देह व्यापार का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि प्रतापगढ़ के दो आश्रय गृहों से 26 महिलाओं के गायब होने के मामला सामने आया है। डीएम शम्भु कुमार ने अष्टभुजानगर और अचलपुर के आश्रयगृहों पर छापा मारा तो 26 महिलाएं गायब मिलीं। शहर के अष्टभुजानगर में जागृति स्वाधार महिला आश्रय है। यहां की संचालिका रमा मिश्रा ने आश्रय में रहने वाली महिलाओं की संख्या 16 बताई थी मगर मौके पर केवल एक महिला रजिया ही मिली। संचालिका ने कहा कि अन्य महिलाएं काम करने के लिए बाहर गई हैं। जिला प्रशासन की ओर से रात तक महिलाओं के लौटने का इंतजार किया गया। रात दस बजे प्रशासन की जांच में तीन महिलाएं ही मिलीं। वहीं, रजिस्टर में महिलाओं की संख्या 16 से बढक़र 17 पहुंच गई थी। इस तरह 14 महिलाएं आश्रयगृह से गायब मिलीं।

पूछताछ करने पर संचालिका का जवाब था कि आज महिलाएं नहीं लौटी हैं, उनकी तलाश की जा रही है। अचलपुर स्थित आश्रय गृह पर छापे में 15 में से सिर्फ तीन महिलाएं रात तक मिलीं। यहां 12 महिलाएं गायब मिलीं। इस मामले में एक बात और उल्लेखनीय है कि अष्टभुजानगर स्थित जागृति महिला स्वाधार आश्रय की संचालिका रमा मिश्रा 2013 में बीजेपी महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष व सभासद भी रह चुकी हैं। वे तीन साल से भी अधिक समय से इस आश्रय गृह का संचालन कर रही हैं।

हरदोई में 19 महिलाएं गायब मिलीं

हरदोई जिला के बेनीगंज कस्बे में संचालित स्वाधार गृह से भी 19 महिलाओं के गायब होने का खुलासा हुआ है। बेनीगंज कस्बे के कृष्णानगर में संचालित इस स्वाधार गृह 21 महिलाओं में से 19 महिलाएं गायब थीं जबकि रजिस्टर पर सभी की उपस्थिति दर्ज थी। डीएम पुलकित खरे की जांच में यह खुलासा हुआ। इन गायब महिलाओं के संबंध में अभी तक जानकारी नहीं मिल सकी है। स्वाधार गृह के संचालक और अधीक्षक के खिलाफ बेनीगंज कोतवाली में जालसाजी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। पुलिस ने छापेमारी कर संचालिका आरती को गिरफ्तार कर लिया है। बेनीगंज कस्बे में आयशा ग्रामोद्योग संस्थान की ओर से इस स्वाधार गृह का संचालन किया जा रहा था।

21 महिलाओं के नाम-पते यहां के रजिस्टर में दर्ज मिले, लेकिन जब डीएम ने इन महिलाओं को बुलाने को कहा तो सिर्फ दो महिलाएं ही मौजूद मिलीं। डीएम ने इस संस्था को ब्लैक लिस्टेड किए जाने के साथ ही अनुदान रोके जाने की संस्तुति की है। पता चला है कि जब कोई अधिकारी निरीक्षण करने आता था तब संचालिका आसपास की महिलाओं को बुला लेती थी। इसके बाद इन महिलाओं को वापस घर भेज देती थी। जांच में पता चला है कि ये गोरखधंधा काफी समय से चल रहा था। डीएम ने महिला कल्याण विभाग के अधिकारियों से आयशा ग्रामोद्योग संस्थान को वर्ष 2001 से अब तक मिले अनुदान के बारे में ब्योरा मांगा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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