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Ballia News: ऐसा मठ जहां एक बार जो महंत बन जाए, तो फिर मठ के बाहर निकलती हैं सिर्फ उसकी अर्थी
Ballia News: संत समाज की आज भी ऐसी कई परंपराएं वर्षों से कायम हैं जिसे सुनने के बाद सहज ही उस पर विश्वास करना असंभव ही होगा।
Ballia News: यूपी के बलिया जनपद के अंतिम छोर पर बसी द्वाबा की धरती शिक्षा, साहित्य के बड़े विद्वानों से लेकर अद्भुत व अलौलिक क्षमताओं वाले संत, महात्माओं की भी जननी रही है। संत समाज की आज भी ऐसी कई परंपराएं वर्षों से कायम हैं जिसे सुनने के बाद सहज ही उस पर विश्वास करना असंभव ही होगा।
वैसे तो इस क्षेत्र में कई बड़े संत-महात्मा हुए पर बात संत परंपरा की करे तो यहां की पवित्र धरती पर करीब पांच सौ वर्ष पूर्व विराजमान मूनजी बाबा की कुटिया अपने आप में अद्भुत स्थान रखती है। कुटिया की दास्तान इतनी अजीब है कि आज के युग में उस पर भरोसा करना संभव नहीं होगा।
निकलता है तो सिर्फ उसकी अर्थी
कुटिया की परंपरा के अनुसार यहां जो भी महंत बनता है वो कुटिया में प्रवेश करने के बाद फिर अर्थी पर ही बाहर निकलता है। यानी मृत्यु प्राप्त करने के उपरांत वह लोगों के कंधों पर ही बाहर निकलता है इसकी वजह में जाए तो जैसे त्रेता युग में भगवान राम के वनवास के समय वन में माता सीता को सुरक्षित रखने के लिए लक्ष्मण जी ने लक्ष्मण रेखा खींची थी ठीक वैसे ही यहां भी एक रेखा खींची गई है।
इसमें परंपरा के अनुसार महंत बनने के बाद जो व्यक्ति रेखा के अंदर प्रवेश करता है वो फिर अपने अंत पर बाहर आता है। यह रेखा कुटिया पर मूनजी बाबा ने ही खींची थी। वर्षों पूर्व तय मान्यताओं के अनुसार यहां महंत बनने के बाद संबंधित शख्स विषम परिस्थितियों में भी मठिया से बाहर कदम नहीं रख सकता है।
इसमें अगर निकलता है तो सिर्फ उसकी अर्थी । मूंजी बाबा की मठिया की यह परंपरा लगभग 500 वर्ष पहले से चली आ रही है। इसके अनुसार महंत को अपनी पूरी जिंदगी मठिया परिसर में ही बितानी पड़ती है।
पांच सौ वर्ष पहले बनी मठिया पर आज भी कायम हैं पुरानी मान्यताएं उनकी सिद्धि से इस मठिया को काफी प्रसिद्धि मिली थी और तब से यह स्थान उनके नाम से जाना जाता है। मठिया के वर्तमान महंत जगन्नाथ पांडेय उर्फ (जागा बाबा) हैं।
जमीन पर पैर मत रखिएगा
मठिया की इस कड़ी पंरपरा के बाबत बाबा ने बताया कि अब से लगभग दौ सौ वर्ष पूर्व घरभरन पांडेय इस मठिया के महंत बने थे। उनकी बेटी की शादी हो रही थी जिस पर ग्रामीणों ने घरभरन बाबा से कहा कि चलकर कन्यादान कर दीजिए।
बाबा ने कहा कि आप लोग जानते हैं कि इस मठिया की परंपरा के अनुसार कोई भी महंत बनकर कुटिया पर आने के बाद मृत्यु उपरांत ही बाहर जाता है तो मैं कैसे जा सकता हूं। लोगों ने काफी प्रयास के बाद कहा कि पालकी पर बैठकर चलिए जमीन पर पैर मत रखिएगा। इस पर घरभरन बाबा ने लोगों की सलाह मानकर अपनी बेटी का कन्यादान करने के लिए पालकी मे बैठकर घर चले गए।
बताते हैं कि वह बेटी का कन्यादान कर वापस मठिया पर पहुंचे ही थे कि एक काला नाग निकल कर बाबा को डस लिया। इससे कुछ ही देर में उनकी मौत होने के साथ ही उनकी पुत्री भी विधवा हो गई। इस घटना के बाद से ही यह परंपरा आज भी अनवरत चली आ रही है।