स्वतंत्रता दिवस: बलिया के प्रथम शहीद मंगल पांडे के बारे में जानिए

देश के प्रथम शहीद और 1857 की गदर के नायक मंगल पांडेय को पूरा देश याद किए बिना नहीं रह सकता...

Rajiv Prasad
Report Rajiv PrasadPublished By Ragini Sinha
Published on: 14 Aug 2021 4:02 PM GMT (Updated on: 14 Aug 2021 4:04 PM GMT)
First Shahid Mangal Pandey of Ballia
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प्रथम शहीद मंगल पांडे का स्मारक

Independence day special: 15 अगस्त को पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। ऐसे में देश के प्रथम शहीद और 1857 की गदर के नायक मंगल पांडेय को पूरा देश याद किए बिना नहीं रह सकता। यूपी के बलिया के नगवां गांव में जन्मे शहीद मंगल पांडेय की स्मृतियों को संजोए रखने के लिए उनके गांव नगवां में एक स्मारक बनाया गया है, जहां मंगल पांडेय की विशाल मूर्ति लगाई गई है, जिसकी देखभाल के लिए शहीद मंगल पांडेय स्मारक सोसाइटी के जिम्मे है। जो इस वक्त उपेक्षा का शिकार है।

मंगल पांडे का प्रवेश द्वार

तस्वीरें देश के प्रथम शहीद मंगल पांडेय स्मारक स्थल की है। जहाँ मंगल पांडेय की आकर्षक स्टेचू लगा हुआ है। इस स्मारक को यही सोचकर बनाया गया था क्योंकि आने वाली पीढ़ियां इस स्मारक को देखेगी, तो देश के लिए सबसे पहले कुर्बानी वाले अपने वीर जवान को याद कर उनके बारे में जान सके। अब यह स्मारक उपेक्षाओं का शिकार हो गया है और मंगल पांडेय का जन्म दिवस और शहादत दिवस मनाने तक ही सीमित है। हालांकि, उनके नाम का एक पुस्तकालय बना जो सालों से बंद रहता है। शहीद मंगल पांडेय स्मारक सोसाइटी के मंत्री की माने तो 1857 की क्रांति का पहला बिगुल मंगल पांडे ने फूंका था, जिसके परिणाम स्वरूप उनको 8 अप्रैल 1857 को 5:30 पर फांसी दे दी गई। मंगल पांडे की क्रांति की कहानी यह है कि मंगल पांडे लोटा लेकर जा रहे थे और उस समय अंग्रेज हिंदू और मुसलमान को दो भाग में बांटे हुए थे। गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगाकर के कारतूस भरने की परंपरा थी उसमें वह लोग फिट नहीं बैठे मंगल पांडे ने अपने राइफल से अंग्रेजों की हत्या कर दी और परिणाम स्वरू देश आजाद हुआ। मंगल पांडे को फांसी इसलिए दी गई ताकि कोई अगला सिपाही इस तरह का कृत्य ना कर सके।

मंगल पांडे के प्रपौत्र अनिल कुमार पांडेय

देश के प्रथम शहीद मंगल पांडे का आज भी पुरानी अवस्था में एक मकान है, जिसमें उनके परिवार के पांचवीं पीढ़ी के लोग रहते हैं। जिनको आज भी यह मलाल है की कोई भी सरकार आज तक मंगल पांडे के गांव की सुध बुध लेने वाला नहीं है। मंगल पांडे के पांचवी पीढ़ी के प्रपौत्र अनिल कुमार पांडेय की मानें तो 1857 की क्रांति की जो चिंगारी थी उसी की देन है कि 1942 से शुरू होकर के 1947 में पूर्ण आजादी का श्रेय मिला। लेकिन इसके बाद जो भी सरकारें बनी हमारे क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया। हम हमेशा मांग करते रहे कि उनके नाम का पाठ्यक्रम पुस्तक में डाल दिया जाए या फिर उनके गांव में स्वास्थ्य केंद्र खोल दिया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी को यह न पूछना पड़े कि मंगल पांडे कौन थे, जिन्होंने देश के लिए क्या किया है। लेकिन आज तक सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया। बस एक ट्रस्ट है जहां उनके स्टेचू लगा है। वहां कोई फंक्शन हो जाता है। परिवार को सरकार कुछ करें ना करें हम तो सरकार से बार-बार मांग करते रहे कि आगे आने वाली पीढ़ियों को इतिहास के बारे में सतह देखकर लग जाए कि हमारे देश के कुछ ऐसे भी वीर जवान देश के लिए शहादत दिए हैं उनको आज भी स्मरण किया जा रहा है।

Ragini Sinha

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