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Bhadohi News: बच्चे किताबों से हो रहे दूर, शिक्षक रोटी को हुए मजबूर: शैलेश पांडेय
आखिर उन प्राइवेट विद्यालय संचालकों और अध्यापकों का क्या दोष है? सरकार ने इन प्राइवेट स्कूल संचालकों और अध्यापकों को कोरोना काल में भूखे मरने के लिए क्यों छोड़ दिया है।
Bhadohi News: "कहते हैं कि किसी भी देश का भविष्य वहां की युवा पीढ़ी होती है।" किसी किसान का बेटा जब पढ़ता लिखता है तो ऐसा मानते हैं कि वह न केवल अपने मां-बाप और कुल का नाम रोशन करेगा बल्कि वह अपने क्षेत्र,समाज और राष्ट्र का नाम भी रोशन करेगा और ऐसा होता भी है लेकिन अब ऐसा होगा भी यह निश्चित रूप से नही कहा जा सकता क्योंकि परिवर्तन का कारण कुछ है तो वह शिक्षा ही है और शिक्षा के प्रति सरकार का रवैया बिल्कुल असंतोषजनक है।
जरा ध्यान दें कि आप के घर का बच्चा चाहे वह स्कूलिंग की प्रक्रिया में हो या उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा हो उसकी अधिगम अथवा सीखने की प्रवृत्ति बुरी तरह से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है । बच्चे किताबों से दूरी बनाते जा रहे हैं, स्वाध्याय की प्रवृत्ति का बुरी तरह से लोप होता जा रहा है । किताबें, शिक्षक और विद्यालय प्रांगण केवल प्रश्न और उत्तर ही नहीं सिखाते थे बल्कि जीवन जीने के तरीके और व्यावहारिक ज्ञान का आरम्भ भी वहीं से होता था, इसका आभास शायद अब हो रहा हो जब सरकार ने सब कुछ खोला हो और केवल स्कूलों को ही बन्द कर रखा हो।
मंदिरो में भारी भीड़, स्कूल बंद
बताते चलें कि श्रावण मास प्रारंभ होने पर जहां मंदिरो में भारी भीड़ देखी जा रही है । वहीं इन मंदिरों में कोरोना के गाइडलाइन को कोई भी ईमानदारी के साथ नही मान रहा और लोग अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । केंद्र व राज्य सरकार ने अब मंदिरो और मस्जिदों को खोल दिया है । सभी अपने अनुसार नमाज और पूजा पाठ कर रहे है । साथ ही बकरों से भी गुलजार है बाजार, लोग बाजारों में मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग बस नाम मात्र ही कर रहे है ।
जिले में कोरोना के मरीज में भी भारी गिरावट देखी जा रही है। लेकिन इसके बावजूद विद्या के मंदिर स्कूलों को सरकार ने पूरी तरह से बच्चों के लिए बंद कर रखा है । आखिर उन बच्चों का क्या दोष है? या फिर सिर्फ स्कूलों में कोरोना है? और बाजारों, मंदिरो, मस्जिदों से कोरोना दूर हो गया है? आखिर इन स्कूलों को टारगेट क्यों बनाया जा रहा है?
विद्यालय संचालकों और अध्यापकों का क्या दोष
आखिर उन प्राइवेट विद्यालय संचालकों और अध्यापकों का क्या दोष है? सरकार ने इन प्राइवेट स्कूल संचालकों और अध्यापकों को कोरोना काल में भूखे मरने के लिए क्यों छोड़ दिया है। क्या केन्द्र और राज्य सरकार इनके दुखों को सुनने के लिए राजी नही है । जिले में बहुत सारे विद्यालय बंद हो गए है । कुछ बंद होंने के कगार पर पहुच गये है । समय रहते सरकार अगर इन्हें आर्थिक मदद नही की तो बच्चों के भविष्य में चार चाँद लगाने वाले शिक्षक अपने भविष्य की तलाश में इधर- उधर भटकने के लिए मजबूर होंगे। वहीं समाजवादी शिक्षक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य शैलेश पांडेय ने समाजवादी शिक्षक सभा केमंच से सत्तासीनों पर निशाना साधते हुए कहा की सरकार शिक्षा की कीमत पर राजनीति कर रही है और इस बात को समाज के लोग अच्छे से समझ गए है । सरकार को शिक्षा के बारे में सफाई देने की जरूरत नहीं है ।
समाज सब कुछ अच्छे से समझ चुका है की कोरोना की आड़ में सरकार शिक्षकों के साथ राजनीति और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है । जिसका खामियाजा इनको 2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा । जिसकी अपील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के मिशन 2022 को लेकर शिक्षकों, छात्रों, किसानों, अधिवक्ताओं, महिलाओं के लिए संघर्षरत रहकर समाजवादी सोच से अवगत कराते हुए भाजपा के जनविरोधी निर्णयों पर लोगों को जागरूक करने और समाजवादी पार्टी की अगली सरकार बनाने में योगदान देने की अपील की गई। वही दयावन्ती पुन्ज माडल स्कूल सीतामढ़ी भदोही के हिन्दी के प्रवक्ता योगेश मिश्र का कहना है कि "विद्यालयों के बन्द होने से न केवल शिक्षक आर्थिक रूप से परेशान हैं बल्कि विद्यार्थीगण का भविष्य अधर में लटका हुआ है।"
स्कूलों को खोलने के लिए कुछ शिक्षको और छात्रों ने रखी अपनी बात
कछवा क्रिस्चियन स्कूल कछवा बाजार के अंग्रेजी के प्रवक्ता नागेन्द्र शुक्ल ने कहा की विद्यालय को अब और अधिक समय तक बन्द करना अनावश्यक और देश के भविष्य के लिए नुकसानप्रद हैं । यदि सभी धार्मिक स्थलों और बाजारों को खोल दिया गया है तो फिर शिक्षा के मंदिरो को क्यों बंद किया गया है । इसी प्रकार सेंट मेरीज स्कूल मुगलसराय के भूतपूर्व हिन्दी शिक्षक योगेन्द्र त्रिपाठी बताते हैं कि "स्कूलों के दरवाजे बन्द होने का मतलब हम राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने हेतु नयी पीढ़ी का सृजन बिल्कुल नहीं कर सकते है ।"
स्मार्टफोन बच्चों के ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। नई पीढ़ी को पढ़ाना-सिखाना शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती है. जेनरेशन ज़ेड (उम्र 10 से 24 साल) और जेनरेशन अल्फा (उम्र 0 से 9 साल) के बच्चे ऐसी दुनिया में पैदा हुए हैं, जहां स्मार्टफोन उनकी दिशा तय कर रहे रही है और बच्चे स्मार्टफोन ऐप्स और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म से आ रही उत्तेजनाओं के इतने आदी हो जायेंगे कि अब ओ क्लासरूम में ध्यान केंद्रित नहीं कर पायेंगे। जिससे समस्या शिक्षकों के सामने भी होगी कि तकनीक के साथ बड़े हो रहे बच्चों को पारंपरिक शिक्षा कैसे दी जाए? वही भदोही के महजूदा एवं भोरी के प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय के कुछ बच्चों ने बताया कि उनके पास आनलाइन पढ़ाई करने हेतु कोई संसाधन नही है अर्थात न तो स्मार्ट फोन है और ना ही उनके पास नेट पैक कराने को पैसे। बच्चों से पूछने पर कि विद्यालय खुल जाने पर कैसा रहेगा ? बच्चों के चेहरे पर मुस्कान दिखी और बच्चों ने कहा कि वे चाहते है कि स्कूलो में पढ़ाई जल्द से जल्द शुरू हो जाये।