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UP Election 2022: जहूराबाद में राजभर के सामने इस बार कड़ी चुनौती, भाजपा और बसपा ने खड़ी कर दी बड़ी मुसीबत
UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव के सातवें चरण में गाजीपुर में मतदान होगा। यहां के जहूराबाद विधानसभा सीट पर भाजपा और बसपा ने ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारा है। जिसके बाद इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता नजर आ रहा है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में पूर्वांचल की जहूराबाद विधानसभा सीट (Zahoorabad assembly seat) को इस बार काफी हॉट माना जा रहा है। गाजीपुर जिले की इस सीट पर सातवें और आखिरी चरण में 7 मार्च को मतदान होना है। इस सीट पर पिछले चुनाव में जीत हासिल करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) एक बार फिर किस्मत आजमाने के लिए इसी सीट पर उतरे हैं। इस बार राजभर अपने ही चुनावी गढ़ में घिर गए हैं क्योंकि भाजपा और बसपा दोनों दलों ने इस सीट पर मजबूत प्रत्याशी उतारकर राजभर की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
भाजपा ने जहूराबाद सीट पर दो बार जीत हासिल करने वाले कालीचरण राजभर (Kalicharan Rajbhar) को चुनाव मैदान में उतार दिया है जबकि बसपा (BSP) मुखिया मायावती (Mayawati) ने 2012 में जहूराबाद सीट जीतने वाली शादाब फातिमा (Shadab Fatima) को टिकट देकर राजभर के लिए कड़ी चुनौती पैदा कर दी है। दोनों दलों की ओर से मजबूत प्रत्याशी उतारे जाने के बाद राजभर के लिए अपने चुनावी अखाड़े में ही मुश्किल स्थिति पैदा हो गई है। प्रदेश विधानसभा चुनाव में किंग मेकर बनने का ख्वाब देख रहे राजभर के लिए इस बार की सियासी जंग आसान नहीं मानी जा रही है।
दोनों दलों ने उतारे दमदार प्रत्याशी
इस बार के विधानसभा चुनाव में पहले ओमप्रकाश राजभर के वाराणसी की शिवपुर सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा थी मगर बाद में उन्होंने इस सीट पर अपने बेटे अरविंद राजभर (Arvind Rajbhar) को चुनाव मैदान में उतार कर खुद अपनी पुरानी सीट जहूराबाद से ही चुनाव लड़ने का फैसला किया। ओमप्रकाश राजभर के इस फैसले के बाद भाजपा और बसपा दोनों ने उनकी तगड़ी घेराबंदी कर ली है। भाजपा ने इस सीट पर कालीचरण राजभर को चुनाव मैदान में उतारा है जो कि बसपा के टिकट पर दो बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि बाद में उन्होंने सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने सपा से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था और अब भाजपा के टिकट पर ओमप्रकाश राजभर को कड़ी चुनौती देने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
भाजपा प्रत्याशी की इलाके पर मजबूत पकड़
भाजपा प्रत्याशी कालीचरण राजभर को इलाके का मजबूत नेता माना जाता है और वे दो बार इस सीट पर चुनाव जीतकर अपनी पकड़ साबित भी कर चुके हैं। उन्होंने बसपा के टिकट पर 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की थी। हालांकि इसके बाद 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें दो लगातार हार का भी सामना करना पड़ा। 2012 में सपा की उम्मीदवार शादाब फातिमा ने उन्हें हराया था, जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा-सुभासपा गठबंधन के प्रत्याशी ओमप्रकाश राजभर के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
पिछले साल फरवरी में उन्होंने सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी मगर सपा और सुभासपा का गठबंधन होने के बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। अब भाजपा ने उन्हें ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया है।
शादाब फातिमा के उतरने से बढ़ी मुश्किल
बसपा मुखिया मायावती ने पूर्व विधायक शादाब फातिमा को चुनाव मैदान में उतारकर जहूराबाद के सियासी रण को त्रिकोणीय बना दिया है। 2012 में सपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव जीतने वाली शारदा फातिमा इस बार भी टिकट के प्रबल दावेदार थीं। यह सीट सुभासपा के कोटे में जाने के बाद उनका टिकट कट गया था। टिकट कटने से नाराज शादाब फातिमा ने पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था मगर बाद में वे बसपा का टिकट पाने में कामयाब रहीं। उनकी भी इलाके के अल्पसंख्यक और अन्य बिरादरी के लोगों में अच्छी पैठ मानी जाती है और उनके चुनाव मैदान में उतरने से भी ओमप्रकाश राजभर के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
शादाब फातिमा को शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) का करीबी माना जाता रहा है और अखिलेश और शिवपाल के विवाद के दौरान उन्होंने शिवपाल यादव का समर्थन भी किया था। पहले उनके निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा थी मगर अब वे बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में कूद पड़ी है। मायावती ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारकर ओमप्रकाश राजभर से पुराना हिसाब चुकाने की कोशिश की है।
जातीय समीकरण पर सभी की नजरें
2017 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने इस सीट पर बसपा के कालीचरण राजभर को हराकर ही जीत हासिल की थी। वैसे अब सियासी हालात काफी बदल चुके हैं और ओमप्रकाश राजभर को कड़ी चुनौती मिल रही है। यदि जहूराबाद के जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां पर दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा करीब 75,000 है। 67 हजार राजभर मतदाता भी जीत हार में बड़ी भूमिका निभाएंगे। यादव मतदाताओं की संख्या भी करीब 44,000 है और सपा से गठजोड़ करने के बाद ओपी राजभर की निगाहें इस वोट बैंक पर लगी हुई है। इनके अलावा चौहान, मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाता भी प्रत्याशियों की किस्मत लिखने में काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे।
वोट बैंक में सेंधमारी रोकना आसान नहीं
भाजपा प्रत्याशी कालीचरण राजभर अपनी बिरादरी के अलावा दलित और राजभर मतदाताओं पर नजरें गड़ाए हुए हैं। उन्हें भाजपा के कोर वोट बैंक का भी भरोसा है। बसपा प्रत्याशी शादाब फातिमा दलितों के साथ ही मुस्लिमों का वोट हासिल करने की कोशिश में भी जुटी हुई है।
अब देखने वाली बात होगी कि ओमप्रकाश राजभर अपनी बिरादरी के वोट बैंक में सेंधमारी रोकने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं। वैसे विरोधी प्रत्याशियों की ओर से उनके वोट बैंक में सेंधमारी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता और इसी कारण ओमप्रकाश राजभर इस बार कड़ी चुनौतियों के बीच फंसे दिखाई दे रहे हैं।