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Gorakhpur Fertilizer Factory: 8600 करोड़ में तैयार हुआ है गोरखपुर का खाद कारखाना, जानें प्लांट की खूबियां

Gorakhpur Fertilizer Factory: गोरखपुर का खाद कारखाना सीएम योगी का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। प्लांट में दुनिया का सबसे ऊंचा प्रीलिंग टॉवर बना है।

Purnima Srivastava
Report Purnima SrivastavaPublished By Shraddha
Published on: 6 Dec 2021 2:41 PM GMT
8600 करोड़ में तैयार हुआ है गोरखपुर का खाद कारखाना
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8600 करोड़ में तैयार हुआ है गोरखपुर का खाद कारखाना

Gorakhpur Fertilizer Factory: गोरखपुर का खाद कारखाना (Fertilizer Factory of Gorakhpur) सीएम योगी (CM Yogi) का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। अब पूरी तरह पूर्ण इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने के लिए पीएम मोदी (PM Modi) मंगलवार को गोरखपुर आ रहे हैं। प्लांट में दुनिया का सबसे ऊंचा प्रीलिंग टॉवर बना है। जिससे यूरिया का उत्पादन होगा। इसके साथ ही इसमें कोरियन तकनीक से रबर डैम बना है। जिसपर एके-47 की गोली का भी असर नहीं होगा।

गोरखपुर के खाद कारखाने की स्थापना व संचालन की जिम्मेदारी हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (Hindustan Fertilizers & Chemicals Limited) (एचयूआरएल) ने निभाई है। एचयूआरएल एक संयुक्त उपक्रम है जिसमें कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited), एनटीपीसी, इंडियन ऑयल कोर्पोरेशन लीड प्रमोटर्स हैं जबकि इसमें फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड भी साझीदार हैं। इस संयुक्त उपक्रम के अधीन गोरखपुर खाद कारखाने के निर्माण में करीब 8603 करोड़ रुपये की लागत आई है।

कारखाना परिसर में दक्षिण कोरिया की विशेष तकनीक से 30 करोड़ की लागत से विशेष रबर भी बना है जिस पर गोलियों का भी असर नहीं होता है। एचयूआरएल के इस खाद कारखाने की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 3850 मीट्रिक टन और प्रतिवर्ष 12.7 लाख मीट्रिक टन उर्वरक उत्पादन की है। इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन से देश के सकल खाद आयात में भारी कमी आएगी। इसके उत्पादनशील होने से पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार व यूपी से सटे अन्य राज्यों में नीम कोटेड यूरिया (neem coated urea) की बड़े पैमाने पर आपूर्ति सुनिश्चित होगी। आने वाले दिनों में गोरखपुर में बनी यूरिया से पड़ोसी देश नेपाल की फसलें भी लहलहाएंगी।

गोरखपुर खाद कारखाने में बना प्रीलिंग टावर विश्व में सबसे ज्यादा ऊंचा है

गोरखपुर खाद कारखाने में बना प्रीलिंग टावर (preling tower) विश्व में सबसे ज्यादा ऊंचा है। इसकी ऊंचाई कुतुब मीनार की ऊंचाई से दोगुनी से भी अधिक है। प्रीलिंग टावर से खाद के दाने नीचे आएंगे तो इनकी क्वालिटी सबसे अच्छी होगी। नीम कोटेड यूरिया से खेतों की उर्वरा शक्ति और बढ़ेगी। एक खास बात यह भी है कि इस खाद कारखाना में 30 फीसद से ज्यादा पूर्वांचल के युवाओं को नौकरी दी गई है। इनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा है।

31 साल बाद खाद कारखाने के प्लांट से निकला धुंआ

गोरखपुर में 1968 में स्थापित फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के खाद कारखाने को 1990 में हुए एक हादसे के बाद बंद कर दिया गया। एक बार यहां की मशीनें शांत हुईं तो तरक्की से जुड़ी उनकी आवाज को दोबारा सुनने की दिलचस्पी सरकारों ने नहीं दिखाई। 1998 में गोरखपुर से पहली बार सांसद बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने हर सत्र में खाद कारखाने को चलाने या इसके स्थान पर नए प्लांट के लिए आवाज बुलंद की। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने तत्समय सांसद योगी आदित्यनाथ की इस मांग पर संजीदगी दिखाई और 22 जुलाई 2016 को नए खाद कारखाने का शिलान्यास कर पूर्वी उत्तर प्रदेश को बड़ी सौगात दी।

खाद कारखाने का सफर और खूबियां-

-नेप्था आधारित पुराना गोरखपुर यूरिया प्लांट 1969 में लगा था। हादसे के बाद 1990 में बंद हो गया।

-एफसीआई के बंद पड़े यूरिया प्लांट की जगह हिन्दुस्तान उवर्रक रसायन लिमिटेड द्वारा चार गुना बड़ा ग्रीन फील्ड यूरिया प्लांट लगाया गया है।

-भारत सरकार द्वारा 2016 में एफसीआई और एचएफसीएल के बंद पड़े पाँच यूरिया प्लांट- गोरखपुर , सिंदरी , बरौनी, रामागुंडम और तालचर को दोबारा शुरू करने का निर्णय लिया गया।

-गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी की बंद पड़ी यूरिया प्लांट की दोबारा शुरू करने के लिए वर्ष 2016 में एनटीपीसी, आईओसीएल, सीआईएल और एफसीआर्दएल का ज्वाइंट वेंचर हर्ल स्थापित स्थापित किया गया।

-रामागुंडम और तालचर के यूरिया प्लांट को शुरू करने के लिए अलग कंपनी बनाई गई।

-जुलाई 2016 में गैस आधारित गोरखपुर यूरिया प्लांट की आधारशिला रखी गई थी।

-नए यूरिया प्लांट में प्रतिदिन 2200 मीट्रिक टन अमोनिया और 3850 मीट्रिक टन नीम कोटेड यूरिया बनेगी। इसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 12.7 लाख मीट्रिक टन होगी।

-प्लांट की निर्माण लागत 8600 करोड़ रुपये आयी है।

-प्लांट के निर्माण में भारत सरकार के बजट का उपयोग नहीं हुआ है। इसमें प्रोमोटर कंपनियों की इक्विटी और बैंक लोन का उपयोग हुआ है। भारत सरकार ने 1257 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण दिया है।

-इस प्लांट से यूरिया उत्पादन लागत लगभग 28000 रुपये प्रति मीट्रिक टन आएगी।

-प्लांट 46 महीने में बनकर तैयार हुआ है। कोविड 19 के चलते प्रोजेक्ट आठ महीने लेट हुआ है।

-प्रधानमंत्री उर्जा गंगा प्रोजेक्ट की गेल गैस पाइपलाइन से इस प्लांट को 2.23 एमएमएस-सीएमडी आरएलएनजी गैस मिल रही है।

-प्लांट के अमोनिया यूनिट की तकनीक केबीआर और यूरिया यूनिट की तकनीक टोयो जापान की है। जिसका निर्माण टोयो ने किया है।

-रिजर्व वायर में वाटर स्टोरेज के लिए रबर डैम का उपयोग किया गया है। यह एक ज़ीरो डिस्चार्ज प्लांट है।

-यूरिया प्लांट से 400 लोगों को सीधा लगभग 20000 हज़ार लोगों को परोक्ष रोज़गार मिलेगा।

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