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Mahatma Gandhi Gorakhpur: जब गोरखपुर में गांधी को सुनने को जुट गए थे ढाई लाख लोग

Gorakhpur News : महात्मा गांधी गोरखपुर में आकर जनसभा करने के बाद वह रात में ही बनारस के लिए रवाना हो गए थे।

Purnima Srivastava
Report Purnima SrivastavaPublished By Shraddha
Published on: 16 Sep 2021 3:42 AM GMT
गोरखपुर में गांधी को सुनने को जुट गए थे ढाई लाख लोग
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गोरखपुर में गांधी को सुनने को जुट गए थे ढाई लाख लोग

Gorakhpur News : राष्ट्रपति महात्मा गांधी (Mahatma gandhi ) गोरखपुर (Gorakhpur) में दो मर्तवा आए। पहली बार चौरीचौरा आंदोलन (Chauri Chaura Andolan) के चंद दिनों पहले 8 फरवरी 1921 को और दूसरी बार 4 अक्टूबर 2029 को। 1921 में गांधी ट्रेन से गोरखपुर पहुंचे थे। देवरिया से होते हुए गोरखपुर आने के दौरान कुसम्ही स्टेशन पर जंगल में भारी भीड़ देख वह खासे प्रभावित हुए। चौरीचौरा में एक मारवाड़ी परिवार आंदोलन के लिए उन्हें दान देने में कामयाब रहा। गोरखपुर में आकर जनसभा करने के बाद वह रात में ही बनारस के लिए रवाना हो गए।


तब गोरखपुर उनके साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शौकत अली भी पहुंचे थे। ट्रेन सुबह गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो घुटनों तक धोती पहने दुबले-पतले व्यक्ति को देखकर लोगों के मुंह से बरबस ही भारत माता की जय निकल रहा था। गांधी जी ने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। यहां लोगों ने यथासंभव दान दिया। महात्मा गांधी ने बाले मियां के मैदान में बने मंच पर संक्षिप्त भाषण भी दिया था। तब महात्मा गांधी ने हाथ में ताश के पत्तों को फेटते हुए चारों इक्का निकाला। लोगों की तरफ दिखाते हुए कहा कि ये चार इक्का जिसके पास होगा उसे कोई हरा नहीं सकता।


हिन्दु-मुस्लिम, सिख और इसाई चार इक्के के समान है। सभी आपस में एकजुट हों तो अंग्रेजों को आसानी से खदेड़ा जा सकता है। यहीं से उन्होंने अवध के किसानों को हिंसक आंदोलन न करने की सलाह भी दी थी। उस समय के दस्तावेजों के अनुसार सभा में करीब एक से ढाई लाख की भीड़ थी। तब महानगर की आबादी सिर्फ 58 हजार थी। गोरखपुर का यह इलाका रौलट एक्ट और अवध के किसान सभा के आंदोलन से खास प्रभावित नहीं था। ऐसे में उनकी यात्रा ने यहां के सोए हुए लोगों को जगाने का काम किया। मोहनदास करमचंद गांधी के नाम पर गोरखपुर में एक होटल भी मौजूद है। वीर अब्दुल हमीद रोड बक्शीपुर एक मीनारा मस्जिद स्थित गांधी मुस्लिम होटल का नाम गांधी होटल था। जब महात्मा गांधी बाले मैदान जा रहे थे कुछ देर के लिए कांग्रेसियों ने यहां उनका स्वागत किया तब से यह टी स्टॉल गांधी जी के नाम से मशहूर हो गया।




हालांकि वर्तमान में बाले मिया के मैदान में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे गांधी के यादों को संजोया जा सके। आसपास के लोग तो गांधी के भाषण के बारे में जानते भी नहीं है। वर्तमान में पूरा मैदान बाढ़ के पानी में डूबा हुआ है। साल में एक बार बाले मिया के मैदान में मेला का आयोजन किया जाता है। गांधी जी ने 30 सितम्बर 1929 से पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरू किया। वह चार अक्टूबर 1929 को आजमगढ़ से चलकर नौ बजे गोरखपुर पहुंचे थे। सात अक्टूबर 1929 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और 9 अक्टूबर 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गये। उनके साथ प्रख्यात उर्दू शायर रघुपति सहाय फिराक गोरखपुर भी थे।

महात्मा गांधी इंटर कॉलेज की नींव अंग्रेजों के विरोध में रखी गई

गोरखपुर के शहर के बीचोबीच महात्मा गांधी इंटर कॉलेज स्थित है। इसकी नींव 1909 में अंग्रेजों के विरोध में ही तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम गरीब लाल ने रखी थी। तब इसका नाम 'गोरखपुर हाईस्कूल' था। जानेमाने साहित्यकार रवीन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी काका बताते हैं कि 'वर्ष 1909 में सेंट एंड्रयूज और जुबिली इंटर कॉलेज प्रमुख संस्थान थे। सेंट एंड्रयूज पूरी तरह अंग्रेजों के अधीन था और जुबिली में सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को ही दाखिला मिलता था। ऐसे में गोरखपुर हाईस्कूल की स्थापना हुई।' आजादी के बाद इसका नाम महात्मा गांधी को समर्पित कर दिया गया। इसकी स्थापना 1909 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता राम गरीब लाल ने की थी। स्कूल के संचालन और शिक्षकों को वेतन देने में किसी प्रकार की बाधा नहीं आए इसके लिए राम गरीब लाल ने 1916 के आसपास कायस्थ ट्रेडिंग एंड बैंकिंग कारर्पोरेशन नाम से बैंक खोला। जिसे कायस्थ बैंक के नाम से पहचान मिली। एमजी इंटर कॉलेज के प्रबंधक मंकेश्वर पांडेय बताते हैं कि '1948 में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनकी तेरहवीं के दिन स्कूल नाम महात्मा गांधी इंटर कॉलेज हुआ।'

गोरखपुर टॉउनहाल चौराहे पर स्थापित है महात्मा गांधी की प्रतिमा

शहर के बीचोबीच टाउन हाल के सामने महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है। इसे नगर निगम के महापौर पवन बथवाल के पहल पर 2 अक्तूबर 1988 में स्थापित किया गया था। इसका लोकार्पण तत्कालीन संचार मंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया था। यहां महात्मा गांधी की आदमकट प्रतिमा स्थापित है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी सहारा संस्था ने उठा रखा है। नगर निगम की टीमें भी सफाई करती हैं। साफ-सफाई के मामले में यहां लापरवाही नहीं दिखती है। राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा होने वाले विरोध प्रदर्शन का यह प्रमुख स्थान है।

कोरोना काल में बदहाल है गांधी आश्रम

सरकार की नीतियों और कोरोना संक्रमण के दौर में गांधी आश्रम की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। गोरखपुर गांधी आश्रम को 30 दिसंबर 1920 को आचार्य कृपलानी ने 250 रुपये से शुरू किया था। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, बंगाल में भी गांधी आश्रम शुरू कराए गए थे। उत्तर प्रदेश में 42 क्षेत्रीय कार्यालय बनाए गए थे। इनमें गोरखपुर भी एक था। सिर्फ 250 रुपये से शुरू हुए गांधी आश्रम ने प्रगति के चरम को भी देखा है। लेकिन वर्तमान में आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। वर्ष 2019 में दो अक्तूबर को गोलघर गांधी आश्रम से करीब 5 लाख 8 हजार रुपये की रिकॉर्ड बिक्री हुई थी। 2 अक्तूबर 2020 को महज 1.78 लाख की बिक्री हुई। गांधी आश्रम के अभिमन्यू सिंह का कहना है कि 'कोरोना के चलते बिक्री जबरदस्त प्रभावित है। दो अक्तूबर को लेकर तैयारी है। बिक्री को लेकर कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। करोड़ों रुपये का माल डंप पड़ा हुआ है।' पिछले तीन वर्षों की तुलात्मक बिक्री भी बिगड़ी स्थिति को तस्दीक करती है। वर्ष 2019-20 में गोरखपुर के गोलघर की मुख्य शाखा के गांधी आश्रम में 10.50 करोड़ की बिक्री हुई थी। वहीं 2020-21 में बिक्री घटकर 6.76 करोड़ ही रह गई। वहीं चालू वित्तीय वर्ष के पहले पांच महीने में बिक्री महज 84 लाख रुपये ही रह गई है।

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