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Gorakhpur News: सितंबर में गुरु-शिष्य परम्परा के बेमिसाल रिश्ते की नजीर बनती है गोरक्षपीठ
ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि सितंबर में पड़ती है। 18-24 सितंबर तक गोरखपुर में संतों का जमावड़ा लगेगा।
Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गोरक्षपीठ (gorakshpeeth) के लिए करीब आधी सदी से हर साल सितंबर का महीना खास होता है। भारतीय ऋषि परंपरा में गुरु-शिष्य के जिस रिश्ते का जिक्र है हर साल सितंबर में गोरक्षपीठ उसकी जीवंत मिसाल बनती है। सितंबर में ही ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ (Mahant Digvijaynath) और महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avedyanath) की पुण्यतिथि पड़ती है। इस दौरान हफ्ते भर तक देश के जाने-माने कथा मर्मज्ञ रामायण या श्रीमद्भगवत गीता का यहां के लोगों को रसपान कराते हैं। शाम को देश के किसी ज्वलंत मुद्दे पर राष्ट्रीय संगोष्ठी होती है।
इस साल भी 18 से 24 सितंबर तक ये कार्यक्रम होंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। वह शुक्रवार को गोरखपुर पहुंच रहे हैं। वह खुद यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को देखेंगे। गोरक्षपीठ द्वारा सप्ताह भर ब्रह्मलीन दिग्विजयनाथ और ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ की याद में आयोजन साप्ताहिक श्रद्धांजलि में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होगा। समारोह के अंतर्गत 17 सितंबर से साप्ताहिक 'श्रीमद्भागवदगीता के भारतीय सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भगवान श्रीराम-श्रीकृष्ण कथा का तात्त्विक विवेचन' विषय पर अयोध्या धाम से आए जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य श्रद्धालुओं को कथा अमृत का रसपान कराएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि 'गोरक्षपीठ में गुरु-शिष्य की समृद्ध परम्परा को करीब से देखने का सौभाग्य मिला है। योगी जी अपने गुरु की स्थिर पड़ी शरीर में हलचल के लिए मेदांता अस्पताल में ही महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे थे। जिसके बाद शरीर में हलचल हुई और उन्हें मेदांता से गोरखपुर लाया गया। जिसके बाद उन्होंने गोरखनाथ मंदिर में शरीर त्यागा। ऐसी मिसालें मुश्किल से दिखती हैं। गोरखपुर आगमन पर सबसे पहले अपने गुरु की समाधि पर जाकर आशीर्वाद लेना समृद्ध गुरु-शिष्य परम्परा का ही संदेश देता है।'
23 को महंत दिग्विजयनाथ व 24 को महंत अवेद्यनाथ की प्रतिमा का होगा अनावरण
साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह में मुख्यमंत्री के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और उनके गुरु ब्रह्मलीन दिग्विजयनाथ की प्रतिमाओं का अनावरण भी होना है। 23 सितंबर को मुख्यमंत्री महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके नाम पर स्थापित महंत दिग्विजयनाथ पार्क में उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण करेंगे। वहीं महंत अवेद्यनाथ पुण्यतिथि के अवसर पर 24 सितम्बर को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ महाविद्यालय, चौक बाजार, महराजगंज के परिसर में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की दिव्य प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। इसके साथ ही जनप्रिय विहार वार्ड में दिग्विजयनाथ स्मृति द्वार का लोकार्पण भी प्रस्तावित है।
पांच साल की उम्र में गोरखपुर आ गए थे महंत दिग्विजयनाथ
आत्मसम्मान के लिए मर मिटना वीरभूमि चित्तौड़ के लोगों की फितरत होती है। वहां की माटी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि वहां पैदा होने वाले इरादे से बेहद मजबूत होते हैं। हालात चाहे जितने विषम हों, जिस काम को ठान लिया बिना नतीजे की फिक्र किए उसे करेंगे ही। 1930 से 1950 का वह दौर, जब देश में कांग्रेस की तूती बोलती थी। तब हिंदुत्व की बात करने और राम मंदिर के बारे में सोचने वालों को रुढ़िवादी और प्रतिगामी माना जाता था। तब हिंदुत्व का विरोध ही धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी कसौटी थी। उस समय गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जिनका ताल्लुक चित्तौड़ से था, उन्होंने सड़क से लेकर संसद और विधानसभा तक हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे को पूरी दमदारी से उठाया। सच तो यह है कि करीब 500 वर्षों से राम मंदिर के आंदोलन 1934 से 1949 के दौरान आंदोलन चलाकर एक बेहद मजबूत बुनियाद और आधार देने का काम उन्होंने ही किया था। आज उनके संघर्षों के नतीजा सबके सामने है।
मजबूत इरादा और आत्मसम्मान से समझौता न करने जैसी खूबियां नान्हू सिंह (दिग्विजयनाथ का बचपन का नाम) को उस माटी से मिली थी, जहां के वे मूलत: थे। वे चित्तौड़ मेवाड़ ठिकाना ककरहवां में वैशाखी पूर्णिमा के दिन 1894 में पैदा हुए थे। पांच साल की उम्र में गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। 1931 में जब कांग्रेस की नीतियों से असहमत होकर वह हिंदू महासभा में शामिल हो गए।1932 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के शैक्षिक पुनर्जागरण के लिए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की पौध लगाई जो आज वटवृक्ष का रूप ले चुका है। महंत दिग्विजयनाथ 1967 में गोरखपुर संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुए। इस रूप में वह लगातार हिंदुत्व और राम मंदिर की पैरोकारी करते। यह क्रम सितंबर 1969 में चिरसमाधि लेने तक जारी रहा।
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने डोमराजा के यहां भोजन कर दिया था संदेश
मूलत: धर्माचार्य। देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय ब्रह्ललीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से खासे आहत हुए थे। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने चार बार (1970, 1989,1991 व 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट और पांच बार (1962, 1967, 1969, 1974 व 1977) मानीराम विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। 1984 में शुरु रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार महंत अवेद्यनाथ आजीवन श्रीरामजन्म भूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व रामजन्म भूमि न्यास समिति के सदस्य रहे।
योग और दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना था। बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के यहां भोजन भी किया था। दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन की पहली ईंट उनके ही प्रयासों से रखवाई गई थी। बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए वह भगवान श्रीराम को आदर्श मानते थे। उस राम को जिन्होंने निषाद राज को गले लगाया। गिद्धराज का अंतिम संस्कार अपने हाथों किया। शबरी के झूठे बेर खाए। वनवास के दौरान कोल-भीलों से दोस्ती की। अपने हर संबोधन में अनिवार्य रूप से महंत अवेद्यनाथ रामचरितमानस मानस के इन प्रसंगों का अनिवार्य रूप से जिक्र भी करते थे। समाज को जोड़ने के लिए उन्होंने सामूहिक सहभोजों का सिलसिला चलाया। उनके उत्तराधिकारी के रूप में यही काम योगीजी ने भी किया। अब मुख्यमंत्री के रूप में वह वही काम व्यापक फलक पर कर रहे हैं।
शबरी के झूठे बेर खाए। वनवास के दौरान कोल-भीलों से दोस्ती की। अपने हर संबोधन में अनिवार्य रूप से वह रामचरितमानस मानस के इन प्रसंगों का अनिवार्य रूप से जिक्र भी करते थे। समाज को जोड़ने के लिए उन्होंने सामूहिक सहभोजों का सिलसिला चलाया। उनके उत्तराधिकारी के रूप में यही काम योगी आदित्यनाथ ने भी किया। अब मुख्यमंत्री के रूप में वही काम व्यापक फलक करते हुए दिख रहे हैं।