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Gorakhpur News: मुख्यमंत्री के जिले में 56 हजार से अधिक बच्चे कुपोषित, कैसे जीतेंगे कोरोना की जंग

Gorakhpur News: सरकारी आंकड़ों के अनुसार गोरखपुर में 56 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। एक से 30 सितम्बर तक जिले में पोषण माह मनाया जा रहा है।

Purnima Srivastava
Written By Purnima SrivastavaPublished By Pallavi Srivastava
Published on: 1 Sept 2021 10:52 AM IST
Kuposhan
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कुपोषण से ग्रसित बच्चा (file photo) pic(social media)

Gorakhpur News: एम्स से लेकर देश के प्रतिष्ठित संस्थाओं के विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर में सर्वाधिक शिकार बच्चे होंगे। बच्चों के लिए कोरोना की वैक्सीन की उपलब्धता नहीं होनी बड़ी वजह बनेगी। ऐसे में सरकार द्वारा कुपोषण को दूर करने की योजनाओं का फिसड्डी परिणाम चिंताएं बढ़ा रहा है। मुख्यमंत्री के जिले में ही बच्चों की सेहत ठीक नहीं है। सरकारी आकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि गोरखपुर में 56 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

एक से 30 सितम्बर तक जिले में पोषण माह मनाया जा रहा है। इस दौरान बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की तरफ से कुपोषण के खात्मे और एनीमिया प्रबंधन संबंधित विविध कार्यक्रम चलाए जाएंगे। जिले में वजन के हिसाब से 7090 बच्चे अति कुपोषित हैं। कुल 56175 बच्चे कुपोषित हैं। इन कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों में से 5589 बच्चे तीव्र कुपोषित हैं, जबकि 1014 बच्चे अति तीव्र कुपोषित हैं।

बच्चों में कुपोषण के ज्यादा मामले(File Photo) pic(social media)

छह माह से पांच साल उम्र के बच्चे सर्वाधिक कुपोषित

जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह ने बताया कि जिले में एनीमिया (खून की कमी) की स्थिति भी ठीक नहीं है। बीते पांच अगस्त को जिलाधिकारी की समीक्षा बैठक में यह जानकारी दी गयी कि छह माह से पांच साल तक के 59.9 फीसदी बच्चे, 52 फीसदी 15 से 49 आयुवर्ग की महिलाएं, 45.6 फीसदी इसी आयुवर्ग की गर्भवती और 21.8 फीसदी इसी आयु वर्ग के पुरुष एनीमिया की समस्या से ग्रसित हैं। अगर किशोर स्वास्थ्य और गर्भावस्था के दौरान पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाए तो इन स्थितियों में सुधार हो सकता है ।

60 फीसदी ग्रामीण बच्चों में खून की कमी

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 (वर्ष 2015-2016) के अनुसार गोरखपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पांच वर्ष से कम उम्र के 37.1 फीसदी बच्चे अल्प वजन वाले मिले। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र के 35 फीसदी बच्चे अल्प वजन वाले मिले। छह से 59 माह के बीच के 62.3 फीसदी ग्रामीण बच्चे जबकि 59.9 फीसदी ग्रामीण बच्चे हीमोग्लोबिन की कमी वाले पाए गये।

कुपोषण के अभियान को लेकर प्रतीकात्मक तस्वीर pic(social media)

कहां जा रहा दूध-अंडा और नकद?

जिले के बीआरडी मेडिकल कालेज में पोषण पुनर्वांस केंद्र (एनआरसी) का संचालन हो रहा है, जहां तीव्र कुपोषित बच्चों को भर्ती कर सुपोषित बनाया जाता है। लोग बच्चों के साथ वहां जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं, जबकि वहां बच्चों के लिए ढेर सारी सुविधाएं हैं। एनआरसी की सभी सुविधाएं निशुल्क हैं। बच्चों के इलाज के अलावा दोनों समय भोजन और एक केयर टेकर को भी निशुल्क भोजन मिलता है। भर्ती बच्चों को दोनों समय दूध और अंडा दिया जाता है। जो अभिभावक बच्चे के साथ रहते हैं उन्हें 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उनके खाते में दिए जाते हैं। केंद्र में भर्ती कराने से बच्चे को नया जीवन मिलता है। केंद्र में प्रशिक्षित चिकित्सक और स्टाफ नर्स बच्चों की देखभाल करती हैं।

दस सूत्र से दूर कर सकते हैं कुपोषण

शहरी परियोजना अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि सिर्फ दस बातों का ध्यान रखा जाए तो सुपोषण की राह आसान हो जाती है। इनके लिए व्यवहार परिवर्तन करना होगा। बच्चे के पोषण की नींव मां के गर्भ में ही पड़ जाती है। एक किशोरी ही भविष्य की मां है और अगर वह कुपोषित होती है तो एक सुपोषित बच्चे के जन्म की संभावनाएं क्षीण हो जाती हैं। इसी प्रकार अगर बच्चे के पोषण का ख्याल मां के गर्भ से रखा जाए तो बच्चा भी सुपोषित होगा।

बाल विकास परियोजना अधिकारी कहते हैं कि अति तीव्र कुपोषित बच्चों को चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है और उन्हें विलेज हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डे (वीएचएनडी) पर चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। प्रदीप कुमार ने बताया कि पोषण माह में जिलाधिकारी विजय किरण आनंद और जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह से प्राप्त दिशा-निर्देशों के अनुसार दस हस्तक्षेप के जरिये लोगों को व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाएगा ।

छह माह तक सिर्फ स्तनपान pic(social media)

सुपोषण के दस मंत्र

1- जन्म के दो घंटे के भीतर मां का गाढ़ा पीला दूध

2-छह माह तक सिर्फ स्तनपान

3- छह माह बाद ऊपरी आहार की शुरूआत

4- छह माह से दो वर्ष तक ऊपरी आहार के साथ स्तनपान

5- विटामिन ए, आयरन, आयोडिन, जिंक और ओआरएस का सेवन

6- साफ-सफाई और खासतौर से हाथों की स्वच्छता

7- बीमार बच्चों की देखरेख

8- कुपोषित बच्चों की पहचान

9- किशोरियों की देखभाल खासतौर से हीमोग्लोबिन की कमी न हो

10- गर्भवती की देखभाल और उन्हें चिकित्सक के परामर्श के अनुसार आयरन-फोलिक का सेवन के लिए प्रेरित करना

कुपोषण के लक्षण

- उम्र के अनुसार शारीरिक विकास न होना

- हमेशा थकान महसूस होना

- कमजोरी लगना

- अक्सर बीमार रहना

- खाने-पीने में रुचि न रखना



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Pallavi Srivastava

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